Nitish Model: सरकार के इस ‘मॉडल’ ने अपराधियों और बाहुबलियों की तोड़ी कमर, क्राइम का ग्राफ तेजी से गिरा नीचे, हाईटेक सुविधाओं से लैस हुई पुलिस
Nitish Model: नीतीश सरकार के ‘क्राइम कंट्रोल मॉडल’ ने अपराधियों और बाहुबलियों की कमर तोड़ दी, क्राइम का ग्राफ तेजी से नीचे आया और बिहार पुलिस को हाईटेक सुविधाओं से लैस कर सुशासन की मजबूत नींव रखी गई।
Nitish Model: नब्बे के दशक में भय, भ्रष्टाचार और अपराधियों के आतंक से बिहार की जनता कराह रही थी। जातीय संघर्ष से गांव-गांव में आपसी तनाव चरम पर था। फिरौती के लिए स्कूली बच्चों और डॉक्टरों का अपहरण आम हो गया था। आए दिन अपराध की खबरें अखबार की सुर्खियां बनतीं। तत्कालीन सरकार लोगों की सुरक्षा करने में विफल साबित हुई। आम-अवाम और उस वक्त की प्रमुख सियासी पार्टियां दोनों नये राजनीतिक विकल्प की तलाश में थीं। बिहार की राजनीति तेजी से करवट ले रही थी और कई कद्दावर राजनेताओं के बीच एक उभरता हुआ लोकप्रिय चेहरा नीतीश कुमार के रूप में सामने आया।
नवंबर, 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार की ताजपोशी हुई। सत्ता संभालते ही उन्होंने सबसे पहले ऑर्गेनाइज्ड क्राइम पर प्रहार किया और 'स्पीडी ट्रायल' नामक अचूक तीर चलाकर अपराधियों और बाहुबलियों को सलाखों के पीछे धकेला। उन्होंने अपनी प्रशासनिक क्षमता का परिचय देते हुए ‘स्पीडी ट्रायल मॉडल’ से बिहार में सुशासन का राज कायम किया। यह बिहार में सत्ता के बदलाव का असर ही था कि क्राइम का ग्राफ तेजी से नीचे गिरने लगा। वर्ष 2005 में जहां 3,423 हत्या की वारदातें हुईं वहीं क्रमशः वर्ष 2006 और वर्ष 2007 में यह संख्या घटकर 3,225 और 2,963 पर पहुंच गई। पुलिस का इकबाल लगातार बढ़ रहा था। अपराधी या तो अपनी मांद में जा छिपे थे या फिर बिहार से बाहर दूसरे प्रदेशों में नया ठिकाना बनाने को मजबूर थे। वर्ष 2011 में क्राइम का ग्राफ तेजी से नीचे गिरा और हत्या की महज 501 घटनाएं हुईं। इसी तरह अपहरण, बैंक डकैती, लूट और चोरी की घटनाओं में भी काफी कमी आई। एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2006 से वर्ष 2012 के बीच कुल 70 हजार 426 लोगों को स्पीडी ट्रायल के तहत सजा दिलाई गई जिसमें 47 हजार ऐसे आरोपी थे जिन्हें दो वर्ष या उससे अधिक की सजा हुई जिसके कारण वे सरकारी नौकरी या चुनाव लड़कर जनप्रतिनिधि बनने से वंचित कर दिए गए।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्पीडी ट्रायल की मुहिम को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता में रखा। हर महीने की 30 तारीख को सभी जिलों के एस0पी0 की रिपोर्ट मुख्यालय पहुंचने के बाद सी0एम0 खुद उसकी मॉनीटरिंग करते। समय पर रिपोर्ट नहीं देने वाले एस0पी0 को फटकार भी लगती। ये रिपोर्ट सार्वजनिक होती थी ताकि समाज में यह संदेश जाए कि कानून का उल्लंघन करने वाले नीतीश सरकार में बख्शे नहीं जाएंगे।
पटना हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट राजकुमार ने बताया कि 90 के दशक को याद कर आज भी लोग सिहर उठते हैं। अपराध का ग्राफ इतना बढ़ गया था कि पटना हाईकोर्ट ने तत्कालीन सरकार को लेकर कठोर टिप्पणी की थी। सीनियर एडवोकेट राजकुमार ने बताया कि 5 अगस्त, 1997 को एक याचिका पर सुनवाई के दौरान पटना हाईकोर्ट ने पहली बार ‘जंगलराज शब्द का प्रयोग किया। पटना हाईकोर्ट ने तब एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा था, 'बिहार में सरकार नहीं है। बिहार में जंगलराज कायम हो गया है।’
बिहार में लालटेन राज के खत्म होने और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के 2019 तक के शासनकाल में क्राइम रेट की तुलना की जाए तो कुछ चौंकाने वाले आंकड़े मिलते हैं।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक फिरौती के लिए होने वाली किडनैपिंग में काफी कमी आई। 2004 में फिरौती के लिए होने वाले अपहरणों की संख्या 411 थी, वहीं 2019 में इनकी संख्या मात्र 43 रह गई।
एनसीआरबी के डेटा के मुताबिक 2004 में बिहार में हत्या के 3,861 केस दर्ज हुए थे, वहीं 2019 में हत्या के 3,138 मामले दर्ज किए गए यानी करीब 18 फीसदी की कमी आई। डकैती-लूट की घटनाओं में 2004 के मुकाबले 2019 में भारी कमी देखी गई। जहां 2004 में राज्य में 1,297 डकैती के केस दर्ज हुए, वहीं 2019 में ऐसे सिर्फ 391 केस ही आए यानी कुल 69 फीसदी की कमी आई। दुष्कर्म के दर्ज मामलों की बात करें तो 2004 में ऐसे केस की संख्या 1,390 थी, वहीं 2019 में दुष्कर्म के 730 मामले दर्ज किए गए। डकैती की घटनाओं में 80.36 प्रतिशत की कमी आई है। लूट की घटनाओं में 16.84 प्रतिशत की कमी आई। फिरौती हेतु अपहरण की घटनाओं में 79.28 प्रतिशत की कमी आई।
बेहतर पुलिसिंग के लिए नीतीश सरकार में थानों और पुलिस वाहनों की संख्या भी बढ़ाई गई। वर्ष 2005 के समय थानों की संख्या 817 थी, जिसे बढ़ाकर अब 1380 कर दी गई है। इन थानों में से जिनके पास उचित भवन नहीं था ऐसे 675 थानों के नये भवनों का निर्माण कराया जा चुका है। इसके अतिरिक्त 336 अन्य थानों के भी नये भवन के निर्माण की कार्रवाई चल रही है। पुलिस वाहनों की संख्या जो पहले 4,008 थी, उसे बढ़ाकर अब 12 हजार 84 कर दी गई है। पुलिस के पदाधिकारी एवं कर्मियों के प्रशिक्षण के लिए वर्ष 2018 में बिहार पुलिस अकादमी, राजगीर की स्थापना की गई। 20 वर्ष पूर्व पुलिस प्रशासन के पास उपलब्ध हथियारों की संख्या मात्र 75 हजार 602 थी जो अब बढ़कर 1 लाख 55 हजार 857 हो गई है।
अपराध पर अंकुश लगाने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार पुलिस को हाईटेक बनाने की कवायद शुरू की। इसके तहत राजधानी पटना में डायल 100 को नई टेक्नोलॉजी के साथ लॉन्च किया गया। वर्ष 2014 में ये सुविधा केवल पटना शहर के लिए थी जबकि अब पूरे बिहार में इसकी सेवा ली जा सकती है। इसके लिए पटना में एक केंद्रीय कक्ष बनाया गया जिसमें राज्य के किसी भी कोने से फोन कर वारदात के बारे में जानकारी दी जा सकती है। वारदात की जानकारी मिलने के बाद कंट्रोल रूम से उस इलाके के संबंधित पुलिस अफसर को सूचना भेजी जाती है और समुचित कार्रवाई करने के लिए कहा जाता है।
हालांकि वर्तमान समय में डायल 100 की जगह डायल 112 की शुरुआत की गई है। अब इमरजेंसी के लिए एक ही नंबर 112 पर डायल करने से पुलिस, अग्निशमन, एंबुलेंस और ट्रैफिक से जुड़ी सेवा प्राप्त की जा सकती है। इसके तहत किसी भी तरह की इमरजेंसी पर पुलिस द्वारा क्विक रेस्पॉन्स दिया जाता है।
आम-अवाम की सुरक्षा सरकार की प्राथमिकता में शामिल है, इसके लिए समय-समय पर इमरजेंसी सेवाओं को आधुनिक बनाने के साथ-साथ उसे पीपुल फ्रेंडली भी बनाया जा रहा है। हाल ही में राजधानी पटना के प्रमुख चौक-चौराहों मसलन कारगिल चौक, डाकबंगला, कोतवाली थाना, गायत्री मंदिर कंकड़बाग, एक्जीबिशन रोड, पुलिस लाइन, चिल्ड्रेन पार्क, आयकर गोलंबर, जीपीओ गोलंबर, दीघा घाट, हाईकोर्ट मोड़ और अन्य जगहों पर हाईटेक प्रणाली वाले इमरजेंसी हेल्प बॉक्स लगाए गए हैं जिसमें हेल्प बटन दिए गए हैं। जैसे ही आप इस बटन को दबाएंगे दो बीप के बाद सीधे आपकी कॉल आई0सी0सी0सी0 कंट्रोल रूम में कनेक्ट हो जाएगी और कंट्रोल रूम में मौजूद सदस्य आपसे जुड़कर आपको त्वरित मदद पहुंचाएंगे। कॉल कनेक्ट होते ही आपका लोकेशन वहां दिखने लगेगा क्योंकि जहां-जहां इमरजेंसी बटन लगाए गए हैं वहां पहले से ही कैमरे भी फिट किए गए हैं। कंट्रोल रूम में काम करनेवाले कर्मचारियों और अधिकारियों को इसके लिए पर्याप्त ट्रेनिंग दी गई है। इसके अलावे पटना में 3300 कैमरे लगाए जाने हैं जिसमें 2100 कैमरे लगाए जा चुके हैं। अभी इन्हीं कैमरों से पटना के हर एक क्षेत्र की निगरानी की जा रही है।
क्राइम कंट्रोल के लिए मुख्यमंत्री के दिशा-निर्देश पर हर महीने मुख्यालय स्तर पर मुख्य सचिव, डीजीपी, गृह सचिव और जिलों में जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक 15 दिन में एक बार बैठक करते हैं। पुलिस की पेट्रोलिंग के लिए सरकार ने हर थाने में दो नई गाड़ी मुहैया कराई और कहा गया कि अफसर इस गाड़ी का इस्तेमाल अपने निजी काम के लिए न करें। पेट्रोलिंग के लिए काफी ठोस व्यवस्था की गई है। अब शहर में किसी भी आपराधिक वारदात वाली जगह पर पुलिस 15 से 20 मिनट में पहुंच जाती है हालांकि गांव के लिए यह समय सीमा 30 से 35 मिनट रखी गई है। कांड के अनुसंधान के लिए भी समय सीमा का निर्धारण किया गया है। 60 दिनों के अंदर किसी भी कांड का अनुसंधान पूरा कर लेना है।
बिहार में कानून का राज कायम रखने के लिए पुलिस की कार्य संस्कृति को दो हिस्सों में बांटा गया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल पर पुलिस के दायित्व को दो हिस्सों में बांटा गया है। एक अनुसंधान का काम करेगा तो दूसरा लॉ एंड ऑर्डर देखेगा। पहले पुलिसकर्मियों को दोनों काम एक साथ करना पड़ता था लिहाजा अनुसंधान के कार्य में सुस्ती आ जाती थी लेकिन अब नई कार्य संस्कृति से अनुसंधान का काम भी तेज गति से होगा और विधि-व्यवस्था की समस्या भी उत्पन्न नहीं होगी। खपरैल थाना भवनों की जगह पर नये और उन्नत थाना भवन बनाए गए हैं। सीमित क्षेत्रफल और आबादी को ध्यान में रखते हुए प्रति एक लाख की जनसंख्या पर 150 से 160 की संख्या में पुलिसबल की तैनाती का प्रस्ताव है। थाना में महिला पुलिस की बहाली को देखते हुए महिला शौचालय एवं स्नानागार की सुविधा उपलब्ध कराई गई है।
बिहार सरकार ने पुलिसिंग को दुरुस्त करने के लिए बिहार पुलिस सेवा में स्टाफ अफसर के 15, अपर पुलिस अधीक्षक के 12, वरीय पुलिस उपाधीक्षक के 114 और पुलिस उपाधीक्षक स्तर के 40 पदों के साथ-साथ कुल 181 पदों के सृजन को मंजूरी दे दी है। अब पटना जिले के अलावा गया, मुजफ्फरपुर, पश्चिम चंपारण, सारण, रोहतास, सहरसा, पूर्णिया, दरभंगा, भागलपुर, बेगूसराय और मुंगेर में ग्रामीण एसपी का पद होगा। अभी केवल पटना जिले में ही ग्रामीण एसपी का पद है।
बिहार पुलिस में महिलाओं की संख्या नगण्य देखते हुए वर्ष 2013 में बिहार पुलिस की बहाली में महिलाओं को 35 प्रतिशत का आरक्षण दिया गया। अब पुलिस बल में बड़ी संख्या में महिलाओं की भर्ती हो रही है। 25.30 प्रतिशत भागीदारी के साथ बिहार महिला पुलिस देश में अव्वल है। सूबे में 28 हजार से ज्यादा महिलाएं पुलिस सेवा में कार्यरत् हैं। बिहार में जहां 25.30 प्रतिशत महिला पुलिसकर्मी हैं वहीं दिल्ली में केवल 12.30 प्रतिशत महिला पुलिसकर्मी हैं।
बिहार में बढ़ते साइबर अपराध पर रोकथाम के लिए बिहार पुलिस मुख्यालय के द्वारा नेशनल साइबर क्राइम पोर्टल तथा हेल्पलाइन नंबर 1930 जारी किया गया है। एक कॉल सेंटर बनाया गया जहां कुल 150 पुलिस पदाधिकारी 24 घंटे काम करते हैं। बिहार के 40 पुलिस जिलों और चार रेल जिलों में 44 नये साइबर पुलिस थाने का गठन किया गया। अब साइबर अपराध से पीड़ित कोई भी व्यक्ति सामान्य पुलिस थानों के साथ ही इन साइबर थानों में भी प्राथमिकी दर्ज करा सकेगा।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी प्रशासनिक क्षमता का परिचय देते हुए बिहार में अपराध पर अंकुश लगाने के साथ ही बिहार पुलिस को हाईटेक सुविधाओं से लैस किया। महिलाओं को पुलिस सेवा में आरक्षण देकर उन्होंने एक नई मिसाल पेश की। पहले जहां थाना में महिलाओं को अपनी शिकायत दर्ज कराने में परेशानी महसूस होती थी वहीं अब थाना में महिला पुलिस की नियुक्ति होने से महिलाएं खुलकर अपनी परेशानी को बयां करती हैं और शिकायत दर्ज कराती हैं।