Bihar Murder:बिहार में 48 घंटे में बैक-टू-बैक 4 हत्याओं से सियासत में मचा बवाल, लॉ एंड ऑर्डर पर तनी तलवार
पिछले दो दिनों में हुई लगातार हत्याओं ने न सिर्फ़ राज्य की कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि चुनावी माहौल में जंगलराज का जिन्न भी बोतल से बाहर आ गया है।
Bihar Murder:बिहार की सरजमीं पर एक बार फिर ख़ौफ़ और सियासत का घालमेल देखने को मिल रहा है। पिछले कुछ दिनों में हुई लगातार हत्याओं ने न सिर्फ़ राज्य की कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि चुनावी माहौल में जंगलराज का जिन्न भी बोतल से बाहर आ गया है। दरोगा से लेकर कारोबारी तक, कोई महफ़ूज़ नहीं दिख रहा। विपक्ष जहां नीतीश सरकार पर कानून-व्यवस्था के पतन का इल्ज़ाम लगा रहा है, वहीं सत्ता पक्ष पुराने दौर की याद दिलाकर लालू राज को असल जंगलराज बता रहा है।
29 अक्टूबर की रात सीवान के खेतों में दरोगा अनिरुद्ध कुमार की गला रेतकर हत्या कर दी गई एक पुलिस अफसर का इस तरह मारा जाना पूरे महकमे के लिए सदमे जैसा है। अगले ही दिन, 30 अक्टूबर को मोकामा में दुलारचंद यादव को दिनदहाड़े गोलियों से छलनी कर दिया गया। और 31 अक्टूबर की सुबह, आरा में प्रमोद महतो और उनके बेटे प्रियांशु महतो को सरेआम गोली मार दी गई। यानी महज़ दो दिनों में चार हत्याएं वो भी पहले चरण की वोटिंग से कुछ ही दिन पहले। अब इन वारदातों को लेकर जातीय एंगल भी सामने आने लगा है।
सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में दुलारचंद यादव की हत्या से जुड़ी झलकियां दिख रही हैं। तीन गाड़ियां सड़क किनारे रुकी नज़र आती हैं, कुछ लोग आगे भागते हुए और पीछे से ईंट-पत्थर बरसाते हुए दिखते हैं। दावा किया जा रहा है कि इस भिड़ंत में दुलारचंद खुद मौजूद था और हमला पुरानी रंजिश के चलते हुआ।
मगर राजनीति में मामला सिर्फ अपराध नहीं, समीकरणों का खेल भी है।हर रैली में जंगलराज की गूंज है सरकार कहती है ये पुराना जंगलराज नहीं लौटेगा, तो विपक्ष तंज कसता है कि अब सुशासन बाबू का राज भी सुर्खियों में है, कानून नहीं चल रहा, गोली चल रही है।
कुल मिलाकर, बिहार की सियासत फिर उसी पुराने मोड़ पर आ खड़ी है जहां मौत भी वोट में तब्दील हो जाती है और अपराध, चुनावी मुद्दा बनकर अख़बारों की सुर्ख़ियों में बदल जाता है।