सिकटा विधानसभा: कभी कांग्रेस-वाम का गढ़, अब त्रिकोणीय मुकाबलों का केंद्र

पश्चिम चंपारण जिले की सिकटा विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 09) बिहार की राजनीति में एक दिलचस्प और उतार-चढ़ाव भरा इतिहास समेटे हुए है। कभी कांग्रेस और वाम दलों का गढ़ रही यह सीट आज तीन मुख्य ध्रुवों – भारतीय जनता पार्टी, जदयू और वाम दलों (सीपीआईएमएल) – के बीच कड़ी टक्कर का मैदान बन चुकी है।
राजनीतिक इतिहास:
1950 और 60 के दशक में कांग्रेस ने इस सीट पर मजबूत पकड़ बनाई थी। 1962 को छोड़कर, जब स्वतंत्र पार्टी ने जीत दर्ज की, कांग्रेस ने लगातार पांच बार यहां पर विजय प्राप्त की। 1980 और 1985 में जनता पार्टी ने बाजी मारी, तो 1990 में फैयाजुल आजम ने निर्दलीय के रूप में जीत दर्ज की। 1991 से 2010 के बीच दिलीप वर्मा का सिकटा की राजनीति में वर्चस्व रहा — वे कभी निर्दलीय, कभी बीजेपी और कभी समाजवादी पार्टी के टिकट पर जीतते रहे। 2008 के परिसीमन के बाद सीट की सीमाएं बदलीं, जिससे जातीय और भौगोलिक समीकरण में भी बदलाव आया।
हालिया चुनावी समीकरण:
2020:
विजेता: वीरेंद्र प्रसाद गुप्ता (CPIML) – 49,075 वोट (28.85%)
उपविजेता: दिलीप वर्मा (निर्दलीय) – 46,773 वोट (27.5%)
कुल मतदान: 62.03%
2015:
विजेता: खुर्शीद उर्फ फिरोज अहमद (JDU) – 69,870 वोट (43.48%)
उपविजेता: दिलीप वर्मा (BJP) – 67,035 वोट (41.71%)
कुल मतदान: 66.02%
2010:
विजेता: दिलीप वर्मा (निर्दलीय) – 49,229 वोट (39.40%)
उपविजेता: खुर्शीद (JDU) – 40,450 वोट (32.37%)
कुल मतदान: 62.63%
यहां दिलीप वर्मा की लोकप्रियता, चाहे वे किसी भी पार्टी से लड़ें या निर्दलीय, हमेशा निर्णायक रही है।
सिकटा में मुस्लिम (30.2%) और यादव मतदाता बड़ी भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा रविदास, कोइरी और ब्राह्मण समुदाय भी यहां समीकरण को प्रभावित करते हैं। यही कारण है कि कोई भी पार्टी जातीय संतुलन साधे बिना जीत की उम्मीद नहीं कर सकती। यह क्षेत्र हर साल नेपाल से आने वाली नदियों की बाढ़ और कटाव की मार झेलता है। बरसात के मौसम में गांवों का संपर्क टूट जाता है, जिससे मतदाताओं में नाराजगी बढ़ती है। सड़क, जल निकासी और आपदा राहत व्यवस्था चुनावी एजेंडे का अहम हिस्सा बनती रही हैं, लेकिन अब तक कोई स्थायी समाधान नहीं निकल सका है।
सिकटा विधानसभा सीट पर जीतना अब किसी एक पार्टी के लिए आसान नहीं रहा। जातीय समीकरणों के साथ-साथ व्यक्ति विशेष की लोकप्रियता और स्थानीय समस्याओं पर पकड़ रखने वाला उम्मीदवार ही यहां बाजी मार सकता है। 2025 में यह सीट किसके खाते में जाएगी, यह देखना दिलचस्प होगा, खासकर जब दिलीप वर्मा जैसे मजबूत निर्दलीय चेहरे और वाम दलों की जनाधार वाली राजनीति फिर से सक्रिय हो रही है।