Dharmendra Death: धर्मेंद्र का राजनीतिक सफर! बीकानेर से मिली बड़ी जीत, लेकिन क्यों राजनीति से हमेशा के लिए दूर हो गए ‘ही-मैन’?

Dharmendra Death: धर्मेंद्र ने 2004 में बीकानेर से बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीतकर राजनीति में कदम रखा, लेकिन 5 साल बाद ही राजनीति छोड़ दी। सनी देओल ने बताया क्यों उन्होंने जीवनभर दोबारा चुनाव न लड़ने की कसम खाई।

धर्मेंद्र का राजनीतिक करियर- फोटो : social media

Dharmendra Death: बॉलीवुड के दिग्गज धर्मेंद्र का 89 साल की उम्र में निधन हो गया है। हालांकि, उन्हें लोग एक्शन, रोमांस और सादगी के प्रतीक के रूप में जानते हैं, लेकिन उनकी ज़िंदगी का एक अध्याय ऐसा भी है जिसे अक्सर लोग भूल जाते हैं—उनका छोटा लेकिन चर्चित राजनीतिक सफर। फिल्मों में शानदार सफलता हासिल करने के बाद साल 2004 में उन्होंने भारतीय राजनीति में कदम रखा। उस दौर में बीजेपी का “शाइनिंग इंडिया” अभियान पूरे देश में चर्चा में था और इसी अभियान ने धर्मेंद्र को राजनीति की ओर खींच लिया। शत्रुघ्न सिन्हा के साथ उनकी एल.के. आडवाणी से मुलाकात हुई और यहीं से उन्होंने चुनावी मैदान में उतरने का फैसला कर लिया।

बीकानेर से जबरदस्त जीत

बीजेपी ने धर्मेंद्र को राजस्थान की बीकानेर लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया।उनकी लोकप्रियता इतनी भारी थी कि वे पहले ही चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार रमेश्वर लाल डूडी को लगभग साठ हज़ार वोटों से हराकर संसद पहुंच गए। बीकानेर की गलियों में उनकी जीत को एक फिल्मी विजय की तरह देखा गया—जैसे पर्दे का हीरो असल जिंदगी में भी जनता के दिलों पर राज करने आया हो।शुरुआत देखकर लगा कि धर्मेंद्र राजनीति में भी उतने ही मज़बूत साबित होंगे जितने फिल्मों में रहे। लेकिन आने वाले सालों में तस्वीर बिल्कुल बदल गई।

संसद में कम हाज़िरी और क्षेत्र से दूरी

धर्मेंद्र का राजनीतिक करियर उनकी उम्मीदों के उलट निकलने लगा।फिल्मी व्यस्तताओं, मुंबई में रहन-सहन और शूटिंग शेड्यूल के कारण वे बीकानेर में कम ही दिखाई दिए।संसद में भी उनकी उपस्थित‍ि बेहद कम रही, और यही उनकी सबसे बड़ी आलोचना बन गई।

बीकानेर के लोग यह महसूस करने लगे कि उनका सांसद उनके बीच नहीं है।

यह दूरी धीरे-धीरे नाराज़गी में बदली और सोशल व राजनीतिक हलकों में यह चर्चा चलने लगी कि धर्मेंद्र राजनीति को गंभीरता से नहीं ले पा रहे हैं।चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने शोले के अंदाज़ में जोश दिखाते हुए कहा था कि अगर सरकार उनकी नहीं सुनेगी तो वे संसद की छत पर चढ़ जाएंगे।लेकिन जनता जिसे फिल्मी जोश समझकर खुश हुई थी, वही बात बाद में व्यंग्य और आलोचना का कारण बन गई क्योंकि किए गए कई वादे पूरे नहीं हो पाए।कुछ लोग यह जरूर कहते रहे कि प्रशासनिक स्तर पर उन्होंने काफी काम करवाए, लेकिन जनता से संवाद की कमी उनकी छवि के खिलाफ जाती रही।

पापा को राजनीति रास नहीं आई—सनी देओल का साफ बयान

कई साल बाद उनके बेटे सनी देओल ने एक इंटरव्यू में खुलकर बताया कि धर्मेंद्र राजनीति में सहज नहीं थे।सनी के मुताबिक उनके पिता अक्सर कहा करते थे कि वे मेहनत तो करते हैं, पर श्रेय दूसरों के खाते में चला जाता है।धर्मेंद्र खुद भी एक बातचीत में यह बात स्वीकार कर चुके थे कि राजनीति की दुनिया उन्हें अपने स्वभाव के बिल्कुल विपरीत लगती थी।धीरे-धीरे उनके भीतर राजनीति को लेकर हताशा बढ़ी और उन्होंने तय कर लिया कि वे दोबारा चुनाव नहीं लड़ेंगे। साल 2009 के बाद उन्होंने इस दुनिया से पूरी तरह दूरी बना ली, जबकि आगे चलकर उनके बेटे सनी देओल ने 2019 और 2024 में चुनाव लड़े और राजनीति में सक्रिय बने रहे।