राजपूतों के सबसे बड़े नेता बनने की तैयारी में आनंद मोहन... अब नवंबर में पटना में दिखाएंगे जातीय ताकत, 10 लोकसभा सीटों पर नजर
पटना. बाहुबली आनंद मोहन ने मई 2023 में घोषणा की थी कि वे नवंबर में पटना में बड़ी रैली करेंगे. उन्होंने दावा किया है कि उनकी पटना रैली में 10 लाख लोगों की भीड़ जुटेगी. इसे लेकर आनंद मोहन पिछले करीब 4 महीने से बिहार के अलग अलग जिलों में दौरा कर रहे हैं. विशेषकर राजपूत समाज के लोगों के बीच लगातार वे अपना सम्पर्क बढ़ा रहे हैं. माना जा रहा है कि आनंद मोहन का राजपूतों के बीच तेजी से सम्पर्क बढ़ाने के पीछे एक बड़ा कारण नवंबर में प्रस्तावित उनकी पटना रैली में जिसमें वे शक्ति प्रदर्शन दिखाएंगे.
हालांकि नवंबर की रैली के पहले ही आनंद मोहन ने अपनी ताकत का अहसास कराना शुरू कर दिया है. राजद सांसद मनोज झा द्वारा संसद में 'ठाकुर का कुआं' कविता पढने के विरोध में आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद ने जिस तरह से मोर्चा खोला वह हैरान करने वाला है. दरअसल, मनोज झा की पहचान राजद सुप्रीमो लालू यादव के सबसे खास और निकटस्थ के रूप में है. यहां तक कि लालू और उनके बेटे तेजस्वी यादव के देश के अलग अलग राज्यों के दौरे के समय जो नेता उनके साथ हर मंच पर दिखते हैं वे मनोज झा ही रहते हैं. संसद में राजद का पक्ष प्रभावी तरीके से रखने के लिए भी मनोज झा जाने जाते है. यह सब जानते हुए चेतन आनंद का मनोज झा को चुनौती देना किसी बड़ी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है.
राजनीतिक जानकारों की मानें तो मौजूदा समय में बिहार में राजपूतों का कोई ऐसा बड़ा नेता नहीं है जो समस्त जाति के बीच प्रभाव रखता हो. यानी राजपूतों का कोई सर्वमान्य नेता नहीं है. वहीं अन्य जातियों में देखें तो मुसहर में जीतनराम मांझी, मल्लाह में मुकेश सहनी, यादव में लालू यादव, कुशवाहा में उपेंद्र कुशवाहा, कुर्मी में नीतीश कुमार, पासवान में चिराग पासवान जैसे चेहरे है. इन सबके मुकाबले किसी भी सवर्ण जाति में कोई भी ऐसा नेता नहीं दिखता जो अपनी जाति का प्रतिनिधित्व करने का दावा करता हो. वहीं आनंद मोहन के इतिहास को देखें तो उन्होंने 1990 के दशक में लालू यादव का विरोध कर खुद को सवर्ण समाज के एक बड़े वर्ग का प्रतिनिधि चेहरा साबित किया था. ऐसे में आनंद मोहन की नवंबर में होने वाली पटना रैली के पहले उनका लालू यादव के सबसे चहेते मनोज झा के खिलाफ मोर्चा खोलना एक बड़ी रणनीति मानी जा रही है.
माना जा रहा है कि यह एक दवाब की राजनीति का हिस्सा हो. अगले लोकसभा चुनाव के पहले आनंद मोहन खुद को एक बड़े वर्ग का नेता बताने की कोशिश में लगे हों. इसका आकलन नवंबर में होने वाली पटना रैली में लग सकता है. अगर उस रैली में 10 लाख लोगों को जुटाने का लक्ष्य आनंद मोहन पूरा कर लेते हैं तो यह किसी एक नेता द्वारा की गई अब तक की सबसे बड़ी रैली हो सकती है. बिहार में राजपूत जनसंख्या करीब 5 से 6 फीसदी के बीच मानी जाती है. राजपूतो का वोट भी करीब करीब सभी दलों में बंटकर जाता है. इस कारण राजपूत समाज का कोई एक चेहरा पूरी जाति का प्रतिनिधित्व नहीं करता.
आनंद मोहन इसे पाटने की कोशिश कर सकते हैं. बिहार में करीब 10 लोकसभा सीटें हैं जहाँ राजपूत वोट निर्णायक माना जाता है. इसमें महाराजगंज, औरंगाबाद, पूर्वी चंपारण, वैशाली, शिवहर, बक्सर, आरा, बांका की सीटों पर राजपूत वोटों की अच्छी खासी संख्या है. ऐसे में आनंद मोहन और उनके बेटे चेतन आनंद का मनोज झा पर टिप्पणी कर राजपूतों में पैठ ज़माने का यह एक बड़ा दांव हो सकता है. फ़िलहाल आनंद मोहन का यह दांव सफल होता भी दिख रहा है क्योंकि उनके विरोध के बाद कई राजपूत नेता और संगठन मुखर हुए. बिहार में एक लम्बे अरसे के बाद आनंद मोहन ने राजपूतों को इस प्रकार किसी एक मुद्दे पर एकजुट करने का करिश्मा तो कर दिखाया है. अब अगर उनके यही तेवर रहे और नवंबर 2023 में प्रस्तावित उनकी पटना रैली सफल रहती है तो एक बार फिर से वे लोकसभा चुनाव के पहले राजपूतों के नाम पर खुद की सियासी जमीन मजबूत कर सकते हैं.