One Nation One Election: क्या है वन नेशन-वन इलेक्शन, जानिए इसके फायदे और नुकसान

One Nation One Election: क्या है वन नेशन-वन इलेक्शन, जानिए इसके फायदे और नुकसान

देश में एक बार फिर 'वन नेशन-वन इलेक्शन' की चर्चा जोरों पर है। सूत्रों के मुताबिक केंद्र की मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में इसे लागू करने की तैयारी में है और इसके लिए संसद में बिल लाने की योजना बनाई जा रही है। जल्द ही इसे लेकर कोई बड़ा कदम उठाया जा सकता है। 'वन नेशन-वन इलेक्शन' को लेकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित समिति ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी 18,626 पन्नों की रिपोर्ट पहले ही सौंप दी है। आइए जानते हैं क्या है 'वन नेशन-वन इलेक्शन' और इसके लागू होने से क्या फायदे और नुकसान होंगे. 


क्या है 'वन नेशन-वन इलेक्शन' का कॉन्सेप्ट? 

भारत में 'वन नेशन-वन इलेक्शन' का मतलब है कि लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं। साथ ही स्थानीय निकायों के चुनाव भी एक ही दिन या एक तय समय सीमा में कराए जाएं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने पर जोर दिया है, ताकि चुनावों में खर्च कम हो और प्रशासनिक मशीनरी पर बोझ न बढ़े। भारत के लिए यह कोई नया कन्सेप्ट नहीं है देश में आजादी के बाद से 1967 तक लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए गए थे। 1952, 1957, 1962 और 1967 में दोनों चुनाव एक साथ हुए थे, लेकिन राज्यों के पुनर्गठन और अन्य कारणों से चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे।

विरोध और समर्थन: अलग-अलग विचार 

वन नेशन-वन इलेक्शन पर राजनीतिक दलों की राय बंटी हुई है। जहां राष्ट्रीय दल इसे समर्थन दे रहे हैं, वहीं क्षेत्रीय दल इसके खिलाफ हैं। क्षेत्रीय दलों का मानना है कि इस व्यवस्था से राष्ट्रीय मुद्दों के सामने राज्य के स्थानीय मुद्दे दब सकते हैं, जिससे उनका विकास प्रभावित होगा। इसी कारण इस मुद्दे पर अभी तक एक राय नहीं बन पाई है।


वन नेशन-वन इलेक्शन के फायदे और चुनौतियां 

 एक साथ चुनाव कराने से सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि चुनावी खर्च में भारी कटौती होगी। हर बार चुनाव कराने पर करोड़ों रुपये खर्च होते हैं, जो कि कम हो सकते हैं। इसके अलावा प्रशासन और सुरक्षा बलों पर चुनावी ड्यूटी का बोझ भी कम होगा। साथ ही सरकारें बार-बार चुनावी मोड में जाने की बजाय विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगी। वोटर टर्नआउट भी बढ़ने की उम्मीद है, क्योंकि बार-बार चुनाव से लोग ऊब जाते हैं और मतदान में रुचि नहीं दिखाते। एक ही दिन में चुनाव होने से जनता अधिक उत्साहित होकर वोट देने आएगी। इसे लागू करने में कुछ चुनौतियां भी हैं, जैसे वन नेशन-वन इलेक्शन लागू करने के लिए संविधान में संशोधन करना पड़ेगा, जो सबसे बड़ी चुनौती है। राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल लोकसभा से मेल नहीं खाता, इसलिए इन्हें एक साथ लाने के लिए संवैधानिक बदलाव जरूरी है। इसके अलावा ईवीएम और वीवीपैट मशीनों की संख्या बढ़ाने और पर्याप्त सुरक्षा बलों की व्यवस्था भी एक चुनौती होगी।


रामनाथ कोविंद कमेटी की सिफारिशें 

2023 में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई थी, जिसने इस साल राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को 18,626 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी है। इस रिपोर्ट में सभी विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 तक बढ़ाने की सिफारिश की गई है, ताकि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जा सकें। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि हंग असेंबली या नो कॉन्फिडेंस मोशन की स्थिति में आंशिक चुनाव कराए जा सकते हैं। इस रिपोर्ट में चुनाव आयोग से एकसमान वोटर लिस्ट तैयार करने और सुरक्षा बलों व प्रशासनिक अधिकारियों की प्लानिंग एडवांस में करने की भी सिफारिश की गई है।

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