बगहा विधानसभा सीट: इतिहास, जातीय समीकरण और अधूरी उम्मीदों के बीच 2025 का मुकाबला दिलचस्प

बगहा, पश्चिम चंपारण | बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियों के बीच पश्चिम चंपारण की बगहा विधानसभा सीट एक बार फिर राजनीतिक चर्चाओं में है। विधानसभा क्षेत्र संख्या 04 — बगहा — का राजनीतिक इतिहास जितना पुराना है, उतना ही बदलावों से भरपूर भी रहा है। 1957 में पहले चुनाव के बाद से यह सीट बिहार की सियासत में निर्णायक भूमिका निभाती रही है। 1957 से लेकर 1985 तक बगहा सीट कांग्रेस का अभेद्य किला मानी जाती थी। नरसिंह भाटिया ने यहां से छह बार जीत दर्ज कर एक लंबा राजनीतिक प्रभाव छोड़ा। लेकिन 1990 में यह सिलसिला टूट गया जब जनता दल के पूर्णमासी राम ने कांग्रेस को पराजित कर राजनीतिक फलक बदल दिया। पूर्णमासी राम ने 2005 तक अलग-अलग दलों के टिकट पर लगातार पांच बार जीत हासिल की।
2008 में परिसीमन के बाद बगहा सीट वाल्मीकि नगर लोकसभा क्षेत्र में शामिल हो गई और अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित से सामान्य वर्ग की सीट बन गई। इसके बाद 2010 में जेडीयू के प्रभात रंजन सिंह ने सामान्य वर्ग से पहली जीत हासिल की। 2015 में भाजपा के राघव शरण पांडे ने जीत दर्ज की और 2020 में भाजपा के राम सिंह ने कांग्रेस के जयेश मंगलम सिंह को हराकर भाजपा की पकड़ को और मजबूत किया। 2020 के चुनावों में राम सिंह को 90,013 वोट (49.51%) मिले, जबकि कांग्रेस के जयेश मंगलम सिंह को 59,993 वोट (33%) प्राप्त हुए। यह जीत न सिर्फ भाजपा की वापसी थी, बल्कि इस बात का संकेत भी कि कांग्रेस अभी भी अपनी खोई हुई जमीन पूरी तरह वापस नहीं पा सकी है। हालांकि 46.6% मतदान दर ने यह भी दिखाया कि मतदाता अपेक्षाओं को लेकर सतर्क हैं।
बगहा विधानसभा क्षेत्र में जातीय विविधता निर्णायक भूमिका निभाती है। ब्राह्मण, राजपूत, यादव, वैश्य, महादलित और मुस्लिम मतदाता यहां की सियासी दिशा तय करते हैं। 2020 में एनडीए द्वारा पश्चिम चंपारण की किसी भी सीट से ब्राह्मण उम्मीदवार को टिकट न देने से यह वर्ग नाराज हुआ था, जो परंपरागत रूप से एनडीए का समर्थक माना जाता रहा है। इस बार क्या भाजपा इस नाराजगी को दूर कर पाएगी, यह देखना दिलचस्प होगा। बगहा की लगभग 3.5 लाख की आबादी, जिनमें से अधिकांश लोग कृषि पर निर्भर हैं, आज भी कई बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। 2020 में विकास, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और गन्ना मूल्य भुगतान जैसे मुद्दों पर चुनावी बहस छाई रही। साथ ही, बगहा को राजस्व जिला न बनाए जाने को लेकर भी जनता में नाराजगी रही।
बगहा में एक तरफ भाजपा अपने गढ़ को बनाए रखने के लिए सक्रिय है, वहीं विपक्ष यहां बदलाव की संभावनाएं तलाश रहा है। विकास के वादों और जातीय संतुलन की बिसात पर टिकी यह लड़ाई 2025 के चुनाव में बगहा को फिर से चर्चा का केंद्र बना सकती है।
बगहा की जनता अब तय करेगी — क्या यह सीट फिर इतिहास दोहराएगी या बदलाव का नया अध्याय लिखेगी?