नरकटियागंज: जातीय समीकरण और अधूरी उम्मीदों के बीच दिलचस्प होता चुनावी मुकाबला

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की दस्तक के साथ पश्चिम चंपारण की नरकटियागंज सीट एक बार फिर सियासी चर्चाओं के केंद्र में आ गई है। 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई इस सीट ने अब तक जितने भी चुनाव देखे हैं, उनमें लगातार बदलते समीकरणों और कड़े मुकाबलों ने इसे एक 'हॉट सीट' बना दिया है।
यह क्षेत्र न सिर्फ सिनेमा प्रेमियों के लिए अभिनेता मनोज बाजपेयी का घर है, बल्कि भाजपा नेता सतीश चंद्र दुबे जैसे कद्दावर नेता भी यहां की राजनीति को दिशा दे चुके हैं।2010 में भाजपा के सतीश चंद्र दुबे ने कांग्रेस के आलोक वर्मा को हराकर सीट पर कब्जा जमाया। लेकिन 2015 में कांग्रेस ने वापसी की और विनय वर्मा ने भाजपा की रेणु देवी को मात दी। 2020 के चुनावों में कहानी ने फिर करवट ली — भाजपा की रश्मि वर्मा ने 45.85% वोट हासिल कर कांग्रेस के विनय वर्मा को शिकस्त दी। यह जीत भाजपा की पुनः पकड़ को दर्शाती है, लेकिन यह भी साफ है कि मुकाबला एकतरफा कभी नहीं रहा। हर चुनाव में तीसरे मोर्चे, विशेष रूप से निर्दलीय प्रत्याशियों, ने भी समीकरणों को उलझाया है और यह इस सीट को अन्य सीटों से अलग बनाता है।
नरकटियागंज की राजनीति को समझना हो तो जातीय गणित पर गौर करना जरूरी है। राजपूत, भूमिहार, कुर्मी, ब्राह्मण और यादव मतदाताओं की निर्णायक मौजूदगी यहां किसी एक समुदाय को सत्ता का फॉर्मूला नहीं देती। यही कारण है कि गठबंधन, प्रत्याशी का सामाजिक जुड़ाव और रणनीतिक मतदान इस सीट पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। जैसे-जैसे 2025 के चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं, नरकटियागंज में भी हलचल तेज हो गई है। जनता के बीच अधूरी उम्मीदें और क्षेत्रीय विकास के अधूरे वादे चर्चा में हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है — क्या मतदाता इस बार बदलाव की राह चुनेंगे या फिर एक बार फिर किसी परिचित चेहरे को दोहराएंगे?