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बिहार में 6000 करोड़ की परियोजनाओं पर लगा ग्रहण, जानिए क्यों अटके हैं कई सड़क प्रोजेक्ट

बिहार में 6000 करोड़ रुपये की लागत वाली कई राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाएं भूमि अधिग्रहण की समस्या के कारण अटकी हुई हैं। जमीन मालिकों की आपत्तियां और मुआवजे को लेकर विवाद मुख्य कारण हैं।

बिहार में 6000 करोड़ की परियोजनाओं पर लगा ग्रहण, जानिए क्यों अटके हैं कई सड़क प्रोजेक्ट

बिहार राज्य में कई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच) परियोजनाएं भूमि अधिग्रहण की समस्या के कारण ठप पड़ी हैं। ये परियोजनाएं राज्य की सड़क नेटवर्क को मजबूती देने और बेहतर कनेक्टिविटी के लिए बेहद जरूरी मानी जा रही हैं। इनकी अनुमानित लागत करीब 6000 करोड़ रुपये है, और कई परियोजनाओं का टेंडर हो चुका है या टेंडर की प्रक्रिया अंतिम चरण में है। लेकिन, इन परियोजनाओं की शुरुआत जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही हो सकेगी, और फिलहाल इस प्रक्रिया में गंभीर अड़चने आ रही हैं। राज्य सरकार और केंद्र सरकार के अधिकारियों के बीच भूमि अधिग्रहण की इस जटिल समस्या को सुलझाने के लिए कई बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन अब तक किसी भी समाधान पर पहुंचने में सफलता नहीं मिली है। परियोजनाओं की सुस्त प्रगति और समय पर काम शुरू न होने से राज्य के बुनियादी ढांचे में सुधार की योजनाओं को गहरा झटका लग रहा है। अब यह चर्चा जोरों पर है कि राज्य सरकार विशेष पहल कर भूमि अधिग्रहण की बाधाओं को दूर करने के लिए कदम उठा सकती है।


इन एनएच परियोजनाओं में फंसी है जमीन अधिग्रहण की अड़चन

  1. एनएच-131ए (पश्चिम बंगाल बॉर्डर-अमदाबाद-मनिहारी)

    • लंबाई: 23.94 किमी
    • लागत: 353.27 करोड़ रुपये
    • यह परियोजना बिहार को पश्चिम बंगाल के बॉर्डर से जोड़ने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इसका टेंडर हो चुका है और निर्माण एजेंसी का चयन भी हो गया है। लेकिन, जमीन अधिग्रहण की समस्या के कारण अब तक एप्वाइंटमेंट डेट नहीं मिल पाई है, जिससे निर्माण कार्य में देरी हो रही है।
  2. एनएच-527बी (दरभंगा-दिल्ली मोड़-बनवारी पट्टी)

    • लंबाई: 14.95 किमी
    • लागत: 991.88 करोड़ रुपये
    • इस परियोजना का काम 20 सितंबर 2024 को एजेंसी को सौंपा गया था। हालांकि, फॉरेस्ट क्लीयरेंस और भूमि अधिग्रहण की वजह से निर्माण एजेंसी ने जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया है। यह प्रोजेक्ट दरभंगा की कनेक्टिविटी को सुधारने के लिए अहम है, लेकिन भूमि अधिग्रहण की अनिश्चितता इसकी प्रगति में बड़ा रोड़ा बन गई है।

परियोजनाओं की गति पर गहरा असर

इन परियोजनाओं का विकास बिहार के बुनियादी ढांचे के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण है। सरकार के स्तर पर समय-समय पर योजनाओं की समीक्षा की जा रही है, लेकिन जमीन अधिग्रहण की अड़चनों के चलते इनके काम में लगातार देरी हो रही है। यदि यह समस्या जल्द हल नहीं होती, तो परियोजनाओं की लागत और भी बढ़ सकती है और राज्य के विकास में देरी का असर सीधा स्थानीय जनता और व्यवसायिक गतिविधियों पर पड़ेगा। भूमि अधिग्रहण की समस्या का मुख्य कारण जमीन मालिकों की आपत्तियां और मुआवजे से जुड़े विवाद हैं। कई क्षेत्रों में किसान और जमीन मालिक अपनी जमीन को छोड़ने से हिचकिचा रहे हैं क्योंकि उन्हें मुआवजे की राशि या उसकी प्रक्रिया पर संतुष्टि नहीं है। इसके साथ ही, कई परियोजनाएं वन क्षेत्र से भी होकर गुजरती हैं, जिसके लिए फॉरेस्ट क्लीयरेंस अनिवार्य है।


क्या हो सकती है विशेष पहल?

सरकार के पास अब सीमित विकल्प बचे हैं, लेकिन इन परियोजनाओं को गति देने के लिए राज्य सरकार को भूमि अधिग्रहण के मामले में विशेष पहल करनी होगी। संभावित विकल्पों में जमीन मालिकों के साथ समझौता, बेहतर मुआवजा नीति, और वन विभाग से तेजी से मंजूरी लेना शामिल हो सकता है। अगर इन एनएच परियोजनाओं का काम समय पर शुरू हो जाता है, तो बिहार को बेहतर सड़क कनेक्टिविटी का फायदा मिल सकता है। ये परियोजनाएं राज्य के दूर-दराज के क्षेत्रों को बड़े शहरों से जोड़ेंगी और व्यापार, परिवहन, और आवागमन में सुधार करेंगी। इसके अलावा, परियोजनाओं के पूरा होने से राज्य के विकास की रफ्तार को भी बढ़ावा मिलेगा और लोगों के रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे। हालांकि, जमीन अधिग्रहण की समस्या के समाधान में जितनी देरी होगी, उतना ही राज्य के विकास पर इसका प्रतिकूल असर होगा। अब सरकार की रणनीति और प्रयास ही तय करेंगे कि बिहार की इन महत्वपूर्ण परियोजनाओं को कब तक अमली जामा पहनाया जा सकेगा।

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