Bihar Politics: हार के बाद राजद में पोस्ट-पॉलिटिक्स की जंग, तिवारी बाबा बनाम लालू यादव के मुंहबोले साले सुनील सिंह का सियासी संग्राम, फेसबुक पर जूतम पैजार
मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे तेजस्वी यादव की हार ने न सिर्फ उनकी सियासी नैया डुबोई, बल्कि महागठबंधन की सहयोगी कांग्रेस को भी ले डूबा। चुनावी पराजय के बाद पार्टी के भीतर जो उबाल था, वह अब खुलकर सोशल मीडिया की सियासत में फूट पड़ा है।...
Bihar Politics: बिहार विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद राष्ट्रीय जनता दल के भीतर आत्ममंथन की जगह आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है। मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे तेजस्वी यादव की हार ने न सिर्फ उनकी सियासी नैया डुबोई, बल्कि महागठबंधन की सहयोगी कांग्रेस को भी ले डूबा। चुनावी पराजय के बाद पार्टी के भीतर जो उबाल था, वह अब खुलकर सोशल मीडिया की सियासत में फूट पड़ा है।
राजद के वरिष्ठ नेता और वैचारिक स्तंभ माने जाने वाले शिवानंद तिवारी ने तेजस्वी यादव को आईना दिखाते हुए फेसबुक पोस्ट के ज़रिए फटकार लगाई। उन्होंने विधानसभा सत्र के बीच पत्नी के साथ विदेश यात्रा पर गए तेजस्वी पर तीखा हमला बोला और कहा कि हार के बाद मैदान छोड़ देना नेतृत्व की कमजोरी दर्शाता है। तिवारी की नसीहत थी हार जीत राजनीति का हिस्सा है, लेकिन नेता वही होता है जो पराजय में भी कार्यकर्ताओं के बीच खड़ा दिखे।
इस पोस्ट ने राजद के भीतर सियासी भूचाल ला दिया। तेजस्वी की मां, पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के मुंहबोले भाई और राजद एमएलसी सुनील सिंह भड़क उठे। उन्होंने शिवानंद तिवारी को फेसबुक पर जवाब देते हुए अवसरवादी तिवारी बाबा कह डाला। पूरा नाम तक न लिखकर सिर्फ तिवारी बाबा कहना भी एक सियासी संदेश था सम्मान अब सवालों के घेरे में है।
सुनील सिंह ने तिवारी पर आरोप लगाया कि जब तक जदयू या भाजपा से कोई पद या आश्वासन नहीं मिलेगा, तब तक वे राजद के खिलाफ रूदाली विलाप करते रहेंगे। यानी, मुद्दा विचारधारा का नहीं, मौके की तलाश का है ऐसा उनका इशारा था।
शिवानंद तिवारी ने अपने पोस्ट में तेजस्वी पर यह भी आरोप लगाया कि उनके आसपास के कुछ लोगों ने उन्हें झूठी हरियाली दिखाई और फायदा उठाकर किनारे हो गए। उन्होंने तेजस्वी को सलाह दी कि तुरंत बिहार लौटें, कार्यकर्ता की तरह घूमें, साहब की तरह नहीं वरना भविष्य अंधकारमय होगा।
इस पूरी लड़ाई ने राजद की अंदरूनी सच्चाई उजागर कर दी है। एक तरफ बुजुर्ग नेता हैं, जो हार के बाद नेतृत्व की भूमिका पर सवाल उठा रहे हैं, तो दूसरी तरफ परिवार और करीबी रिश्तों की राजनीति है, जो आलोचना को दुश्मनी मान बैठी है।
हार के बाद विपक्ष को मजबूत करने की बजाय राजद आज फेसबुक पोस्ट की जंग में उलझा दिख रहा है। सवाल यही है क्या तेजस्वी इस सियासी संग्राम से सबक लेकर नेतृत्व की नई इबारत लिखेंगे, या फिर यह कलह राजद को और कमजोर करेगी? बिहार की राजनीति में इसका जवाब आने वाला वक्त देगा।