Bihar Politics:बीजेपी की बिसात पर नया मोहरा, मंगल पांडेय की जगह दीपक प्रकाश, उपेंद्र कुशवाहा के सामने सदस्यता बचाने की चुनौती
Bihar Politics: बिना किसी सदन का सदस्य बने मंत्री पद की शपथ लेने वाले दीपक प्रकाश अब भाजपा कोटे से विधान परिषद पहुंचेंगे।...
Bihar Politics: बिहार की राजनीति में एक बार फिर कुर्सी, कोटा और क़िस्मत की तिकड़ी चर्चा में है। बिना किसी सदन का सदस्य बने मंत्री पद की शपथ लेने वाले दीपक प्रकाश अब भाजपा कोटे से विधान परिषद पहुंचेंगे। मंगल पांडेय के विधायक बनने से खाली हुई एमएलसी सीट पर दीपक प्रकाश का नाम लगभग तय माना जा रहा है। इस मसले पर भाजपा और उसके सहयोगी दलों के बीच रज़ामंदी बन चुकी है।
दीपक प्रकाश, राष्ट्रीय लोक मोर्चा के प्रमुख और राज्यसभा सांसद उपेंद्र कुशवाहा के बेटे हैं। ऐसे में सियासी गलियारों में यह सवाल गूंजने लगा है कि क्या बेटे की सियासी सेहत के लिए पिता अपनी राज्यसभा कुर्सी कुर्बान करेंगे? क्या अप्रैल 2026 के बाद उपेंद्र कुशवाहा किसी सदन के सदस्य नहीं रहेंगे?
दरअसल, लोकसभा चुनाव 2024 में हार के बाद भाजपा ने उपेंद्र कुशवाहा को विवेक ठाकुर की जगह राज्यसभा भेजा था। उनका कार्यकाल अप्रैल 2026 में खत्म हो रहा है, लेकिन भाजपा सूत्र साफ़ इशारा कर रहे हैं कि पार्टी उन्हें रिपीट करने के मूड में नहीं है। भाजपा की परंपरा रही है कि वह सहयोगियों को जरूरत के मुताबिक सदन भेजती है, मगर दोबारा मौका कम ही देती है।
विधानसभा चुनाव 2025 के बाद एनडीए के चार एमएलसी विधायक बन चुके हैं। ऐसे में विधान परिषद की खाली होती सीटें सियासी सौदेबाज़ी का मैदान बन गई हैं। मंगल पांडेय की सीट पर दीपक प्रकाश के आने से वह 2030 तक एमएलसी रहेंगे, यानी मंत्री पद पर बने रहने में कोई संवैधानिक अड़चन नहीं रहेगी।
उपेंद्र कुशवाहा को भाजपा ने सवर्ण खासतौर पर भूमिहार कोटे की राज्यसभा सीट से भेजा था। अब विधानसभा में उनकी राजनीतिक हैसियत मजबूत हो चुकी है। ऐसे में भाजपा इस सीट पर किसी अपने जमीनी सवर्ण चेहरे को आगे बढ़ाने की तैयारी में है। संदेश साफ़ है पार्टी अब अपने विस्तार और संतुलन पर फोकस कर रही है।
जदयू का दरवाज़ा कुशवाहा के लिए पहले ही बंद हो चुका है। सीट बंटवारे से लेकर मंत्रिमंडल गठन तक यह साफ दिखा कि भाजपा ही नियंता और निर्णायक है। कुशवाहा के पास भी अब भाजपा के अलावा कोई दूसरा सियासी सहारा नहीं बचा है।
लोकसभा चुनाव के दौरान हुई विधान परिषद की एक सीट की डील अब बेटे के जरिए पूरी होती दिख रही है। सवाल बस इतना है इस सौदे की कीमत क्या पिता को अपनी राज्यसभा कुर्सी देकर चुकानी होगी? बिहार की राजनीति में इसका जवाब वक्त ही देगा, लेकिन फिलहाल सियासी शतरंज में भाजपा ने चाल चल दी है।