PATNA : आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में अब कुछ महीने ही शेष बचे हैं। इसके मद्देनजर राजनीतिक पार्टियां अभी से चुनाव की तैयारियों में जुट गयी है। विशेष रूप से कांग्रेस की बात करें तो महागठबंधन में रहकर भी उसका 'कोल्ड वार' लगातार जारी है। शुरुआत रुझान से कयास लगाये जा रहे हैं की विधानसभा चुनाव में सीटों को लेकर दवाब बनाने के लिए कांग्रेस को खुद को मजबूत दिखाना होगा। इसके इतर राजद के नहीं मानने पर कांग्रेस खुद भी कुछ बड़ा फैसला कर सकती है। यहीं वजह है की विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस बिहार में कई बड़े कदम उठा रही है। इन कदमों को पार्टी को लालू के चंगुल से मुक्त करने की कवायद भी कहा जा सकता हैं। मिला जुलाकर अपने पैरों पर खुद खड़ा होने के लिए कांग्रेस ने सबसे पहले कृष्ण, कन्हैया और राम पर भरोसा जताया है। बात कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी कृष्णा अल्ल्वारु की करें तो वे पार्टी के युवा नेता हैं और राहुल गांधी के बेहद करीबी भी माने जाते हैं। पार्टी को चुस्त दुरुस्त बनाने के लिए उन्होंने जिलों में कार्यकर्ताओं में जोश भरने की शुरुआत की। कई बार वे बिहार आये, लेकिन अभी तक उनकी मुलाकात राजद सुप्रीमो से नहीं हो पाई है। यहीं नहीं पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह की लालू से नजदीकी भी उन्हें रास नहीं आई। उनके जेहन में कहीं न कहीं यह बात बैठी थी की कभी लालू यादव ने कहा था की सोनिया गाँधी से कहकर उन्होंने ने अखिलेश सिंह को राज्यसभा भिजवाया था। यहीं वजह है की कृष्णा अल्ल्वारू का शिकार प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह को होना पड़ा।
वहीँ कांग्रेस में नया जोश भरने के लिए पार्टी के तेज तर्रार और फायर ब्रांड नेता कन्हैया कुमार भी मैदान में उतर चुके हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की कर्मभूमि भितिहरवा आश्रम से उन्होंने पलायन रोको, नौकरी दो अभियान की शुरुआत की है। इस पदयात्रा के तहत कन्हैया नीतीश सरकार पर हमले बोल रहे हैं, जिसका समापन पटना में होगा। हालाँकि इस मुद्दे को नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव भी उठाते रहे हैं। वे लगातार में बिहार में नौकरियों के लिए अपनी पीठ थपथपाते नजर आते हैं। माना जा रहा है की इस यात्रा से एक ओर जहाँ कन्हैया ने तेजस्वी के मुद्दे को हाईजैक कर लिया। वहीँ नीतीश पर निशाना साध लिया।
उधर कांग्रेस के प्रदेश इकाई की कमान अखिलेश सिंह के हाथ से हटाए जाने के बाद आलाकमान ने दो बार विधायक रहे राजेश राम को जिम्मेवारी दी गयी है। इससे फायदा यह है की कांग्रेस में राजद के विश्वस्त माने जानेवाले अखिलेश सिंह से मुक्ति मिल गयी। वहीँ दलित वोट में सेंधमारी के लिए राजेश राम तुरुप का पत्ता साबित हो सकते हैं। जिसपर राजद का वर्चस्व माना जाता है।