बिहार को आज मिलेगी दोहरी सौगात, पीएम मोदी खोलेंगे विकास का नया पुल, बुद्ध सर्किट से जुड़ेगी आस्था की डोर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज यानी 22 अगस्त को गया की धरती से बिहार को दो ऐतिहासिक उपहार देने जा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब बिहार के मोकामा में गंगा नदी पर बने 1.86 किलोमीटर लंबे 6-लेन औंटा-सिमरिया पुल का उद्घाटन करेंगे..

,PM Modi in Bihar: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 22 अगस्त को बिहार के गया में जनसभा को संबोधित करेंगे. इस मौके पर आयोजित कार्यक्रम में बिहार को कई प्रमुख सौगातें देने जा रहे हैं. इसमें दो बेहद खास हैं, पहला, देश का सबसे चौड़ा पहला छह लेन पुल शामिल है. यह पुल औटा (मोकामा) से सिमरिया (बेगूसराय) के बीच बना एक्सपैंशन केबल तकनीक से बना हुआ है. दूसरा, बुद्ध सर्किट से जुड़ स्थलों को जोड़ता हुए एक ट्रेन शामिल है. यह ट्रेन वैशाली से शुरू होकर नालंदा, राजगीर, गयाजी होते हुए कोडरमा (झारखंड) तक जाएगी. बिहार और झारखंड में मौजूद बुद्ध से जुड़े सभी स्थलों को यह ट्रेन एक साथ जोड़ेगी.बेगूसराय जिला का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल सिमरिया धाम से शुरू होने वाला यह पुल पुराने दो लेन रेल सह सड़क पुल राजेंद्र सेतू के समानांतर बनाया गया है. सिमरिया धाम प्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्मस्थान भी है.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज यानी 22 अगस्त को गया की धरती से बिहार को दो ऐतिहासिक उपहार देने जा रहे हैं। पहला, गंगा की लहरों पर फैला देश का सबसे चौड़ा छह लेन का औंटा-सिमरिया पुल, जो न सिर्फ उत्तर-दक्षिण की दूरी घटाएगा बल्कि औद्योगिक प्रगति का सेतु बनेगा। यह पुल आधुनिक एक्सपैंशन केबल तकनीक का प्रतीक है और प्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की जन्मभूमि सिमरिया धाम को राष्ट्रीय पहचान से जोड़ता है। दूसरा, बिहार-झारखंड की सांस्कृतिक आत्मा को जोड़ने वाली “बुद्ध सर्किट ट्रेन” है, जो वैशाली से राजगीर, नालंदा, गया होते हुए कोडरमा तक धार्मिक और पर्यटन स्थलों को एक सूत्र में पिरोएगी। यह ट्रेन भारत की आध्यात्मिक कूटनीति को नई ऊर्जा देगी। मोदी की यह सौगात केवल ढांचागत निर्माण नहीं, बल्कि बिहार की ऐतिहासिक धरोहर और विकास यात्रा का संगम है।
भारत की राजनीति में अवसंरचना विकास हमेशा एक सशक्त और निर्णायक विमर्श का हिस्सा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब बिहार के मोकामा में गंगा नदी पर बने 1.86 किलोमीटर लंबे 6-लेन औंटा-सिमरिया पुल का उद्घाटन करेंगे, तो यह केवल एक पुल का शुभारंभ नहीं होगा, बल्कि यह बिहार के भविष्य को नई दिशा देने वाला कदम माना जाएगा।
करीब 1,870 करोड़ रुपये की लागत से बने इस आधुनिक पुल ने बिहार की राजनीति में विकास बनाम उपेक्षा की बहस को एक बार फिर तेज कर दिया है। यह पुल न सिर्फ मोकामा (पटना) और बेगूसराय को जोड़ेगा, बल्कि उत्तर और दक्षिण बिहार के बीच संपर्क, व्यापार और उद्योग के नए रास्ते खोलेगा। दशकों से जर्जर हो चुके राजेंद्र सेतु की विवशता के कारण भारी वाहनों को लंबी वैकल्पिक यात्रा करनी पड़ती थी। अब यह नया पुल उस ऐतिहासिक उपेक्षा की पीड़ा का उत्तर है।
राजनीतिक दृष्टि से देखें तो यह पुल मोदी सरकार की "कनेक्टिविटी ही विकास है" की नीति का प्रतीक है। उत्तर बिहार के सुपौल, मधुबनी, अररिया और पूर्णिया जैसे जिलों से लेकर दक्षिण बिहार के शेखपुरा, नवादा और लखीसराय तक, यह पुल आर्थिक प्रवाह को गति देगा। उद्योग और कृषि उत्पादों की निर्बाध आवाजाही से न केवल स्थानीय बाजार सशक्त होंगे, बल्कि बिहार की अर्थव्यवस्था में भी ऊर्जा का संचार होगा।
सबसे बड़ी राहत भारी वाहनों को मिलेगी, जिन्हें पहले 100 किलोमीटर अतिरिक्त दूरी तय करनी पड़ती थी। यह दूरी कम होने का सीधा अर्थ है—समय की बचत, ईंधन की बचत और परिवहन लागत में भारी कमी। यही नहीं, वैकल्पिक मार्गों पर जो हमेशा जाम की समस्या से लोग परेशान रहते थे, वहां भी अब सहजता आएगी।
गंगा पर यह सेतु दरअसल बिहार की विकास यात्रा और राजनीतिक संकल्प का प्रतीक है। एक ओर यह प्रधानमंत्री मोदी के विज़न को रेखांकित करता है कि बिना मजबूत अवसंरचना के कोई भी प्रदेश आर्थिक छलांग नहीं लगा सकता, वहीं दूसरी ओर यह सवाल भी छोड़ता है कि बिहार जैसे पिछड़े राज्य को ऐसे कदमों के लिए इतने लंबे इंतजार से क्यों गुजरना पड़ा।
आज जब यह पुल जनता को समर्पित होगा, तब यह केवल सीमेंट और स्टील का ढांचा नहीं रहेगा, बल्कि यह जन आकांक्षाओं का नया मार्ग बनेगा। यह पुल एक राजनीतिक संदेश भी है—कि विकास के बिना न तो कोई सत्ता स्थायी है और न ही जनता का विश्वास।
बहरहाल औंटा-सिमरिया पुल केवल दो जिलों को नहीं जोड़ेगा, बल्कि यह बिहार की जनता को विकास के नए विश्वास से जोड़ेगा। यह गंगा पर बना पुल, वास्तव में बिहार की समृद्धि की नई धारा का सेतु है।