Bihar Politics: क्या तेजप्रताप से डरकर लालू की राह पर लौटे तेजस्वी, खैनी-चूना की सियासत पर क्यों उतर आए नेता प्रतिपक्ष, समझिए पूरा राजनीतिक गणित

बिहार की राजनीति की सच्चाई यही है कि यहां जनता सिर्फ भाषण नहीं, बल्कि नेता की बोली, अंदाज और ज़मीनी जुड़ाव को तौलती है. लालू यादव की मौजूदगी और उनकी शैली अभी भी RJD के लिए सबसे बड़ी ताकत है....

Tej Pratap,  Tejashwi Yadav
क्या तेजप्रताप से डरकर लालू की राह पर लौटे तेजस्वी- फोटो : reporter

Bihar Politics:  बिहार की राजनीति में हमेशा से हास्य, व्यंग्य और तंज का अनोखा मेल देखने को मिलता रहा है. लेकिन इस बार सासाराम की सभा में जब तेजस्वी यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला करते हुए कहा – “मोदी जी बिहारियों को चूना लगाना चाहते हैं, लेकिन ये बिहार है, यहां खैनी के साथ चूना रगड़ा जाता है”  तो पूरा माहौल लालू प्रसाद यादव के पुराने दिनों की याद दिलाने लगा. यह बयान सिर्फ एक मज़ाकिया तंज नहीं था, बल्कि बिहार की देसी राजनीति में तेजस्वी यादव की नई या कहें पुरानी शैली का ऐलान था.

तेजस्वी यादव पिछले एक दशक से राजनीति में हैं. उन्होंने कई बार अपनी छवि को बदला।  2015 में उपमुख्यमंत्री बने तो खुद को एक आधुनिक, संयमित और विकासवादी नेता की तरह पेश किया. सोशल मीडिया पर सक्रियता, नीतीश कुमार के साथ गठबंधन में सधे हुए बयान, और बिहार के इंफ्रास्ट्रक्चर पर फोकस, उनकी नई शैली का हिस्सा था. लेकिन 2024 में जेडीयू के NDA में लौटने से महागठबंधन को झटका लगा, और तेजस्वी को अपनी रणनीति बदलनी पड़ी. अब वे वापस पिता लालू यादव की देसी-ठसक वाली शैली अपनाते दिख रहे हैं.

सवाल उठ रहा है कि तेजस्वी आखिर अपनी इस छवि में बदलाव क्यों ला रहे हैं? जवाब कई स्तरों पर छिपा है.सबसे बड़ा कारण है  2025 का विधानसभा चुनाव, जो तेजस्वी के लिए करो या मरो की लड़ाई है. बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर वे लगातार बीजेपी-जेडीयू सरकार को घेर रहे हैं. लेकिन आंकड़े और भाषण से कहीं ज्यादा असर करती है बिहारी अंदाज वाली राजनीति. लालू यादव ने इसी शैली से दशकों तक जनता का दिल जीता था. शायद यही वजह है कि तेजस्वी अब उस रास्ते पर लौट रहे हैं.

दूसरा पहलू है पारिवारिक राजनीति की आंतरिक चुनौती. हाल के दिनों में बड़े भाई तेज प्रताप यादव ने अप्रत्याशित रूप से अपनी सक्रियता बढ़ाई है. उनकी सभाओं और बयानों में भी लालू यादव वाली देसी शैली झलकती है, और कई बार जमीनी कार्यकर्ताओं के बीच उनका असर दिखने लगा है. तेजस्वी को डर है कि अगर वे सिर्फ गंभीर, आधुनिक छवि में रहेंगे तो RJD का पारंपरिक वोट बैंक तेज प्रताप की ओर झुक सकता है. इसलिए वे भी “लालू स्टाइल” का सहारा ले रहे हैं, ताकि पार्टी और वोटरों पर पकड़ मजबूत रहे.

सासाराम का “खैनी-चूना” तंज इस रणनीति का प्रतीक है. यह न केवल जनता के बीच सीधी कनेक्टिविटी का संकेत देता है, बल्कि यह भी बताता है कि तेजस्वी अपने पिता की विरासत को ही अब चुनावी पूंजी बनाने वाले हैं. उनके बयानों में अब व्यंग्य, हास्य और देसी ठसक का मिश्रण ज्यादा दिखेगा.

हालांकि चुनौती कम नहीं है. एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी का आक्रामक चुनावी तंत्र है, तो दूसरी तरफ नीतीश कुमार की शालीन छवि और सुशासन मॉडल की कहानी. ऐसे में तेजस्वी का लालू स्टाइल अपनाना जोखिम भी है. अगर जनता को यह “कॉपी” लगे तो उल्टा असर हो सकता है.

फिर भी, बिहार की राजनीति की सच्चाई यही है कि यहां जनता सिर्फ भाषण नहीं, बल्कि नेता की बोली, अंदाज और ज़मीनी जुड़ाव को तौलती है. लालू यादव की मौजूदगी और उनकी शैली अभी भी RJD के लिए सबसे बड़ी ताकत है. तेजस्वी का यह नया-पुराना अवतार बताता है कि वे न सिर्फ अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाना चाहते हैं, बल्कि पार्टी के अंदरूनी खतरों से भी निपटना चाहते हैं.

बहरहाल सासाराम का खैनी-चूना तंज सिर्फ एक लाइन नहीं, बल्कि बिहार की 2025 की सियासत का संकेत है जहां तेजस्वी यादव लालू के अंदाज में जनता से जुड़कर RJD को एकजुट करना चाहते हैं. लेकिन असली लड़ाई होगी,  क्या यह देसी अंदाज उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी तक ले जाएगा या बीजेपी-जेडीयू की जोड़ी फिर बाज़ी मार लेगी?