Bihar Land Survey: टोपोलैंड तमाशा, सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को दिखाया आईना, नक्शा विवाद में मिली करारी हार, क्या होगा असर, जानिए

Bihar Land Survey: बिहार के छपरा में टोपोलैंड का तमाशा अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया, और वहां भी सरकार और नगर निगम को मुंह की खानी पड़ी!

Topoland drama , Bihar Land Survey
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को दिखाया आईना- फोटो : Hiresh

Bihar Land Survey:  छपरा में टोपोलैंड का तमाशा अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया, और वहां भी सरकार और नगर निगम को मुंह की खानी पड़ी! सुप्रीम कोर्ट ने 29 अप्रैल 2025 को डायरी संख्या 7161/2025 के तहत ऐसा फैसला सुनाया कि छपरा नगर निगम और बिहार सरकार के होश उड़ गए। कोर्ट ने साफ-साफ कह दिया कि हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने के लिए कोई "गुड ग्राउंड" नहीं है, यानी कोई ठोस वजह ही नहीं दी गई! बस, इसके साथ ही याचिका को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया, और याचिकाकर्ताओं के साथ-साथ छपरा के आम लोगों ने राहत की सांस ली। लेकिन ये ड्रामा यहीं खत्म नहीं होता—इसका असर पूरे बिहार में गूंज सकता है।

हाईकोर्ट ने पहले ही बजा दिया था डंका

पटना हाईकोर्ट ने पहले ही बिहार सरकार और छपरा नगर निगम को सबक सिखाया था। कोर्ट ने कहा था कि टोपोलैंड के नाम पर नक्शा पास करने से इंकार करना सरासर बकवास है। कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश आशुतोष कुमार और न्यायमूर्ति पार्थ सारथी की खंडपीठ ने साफ शब्दों में कहा था कि अगर जमीन आवेदक की है और नियम-कायदों के हिसाब से निर्माण हो रहा है, तो टोपोलैंड का रोना रोकर नक्शा खारिज नहीं किया जा सकता। लेकिन नगर निगम और सरकार ने हाईकोर्ट के इस फैसले को हल्के में लिया और सुप्रीम कोर्ट में दौड़ लगा दी। नतीजा? सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट की बात पर मुहर लगा दी और सरकार को फिर से लताड़ लगाई।

टोपोलैंड का टंटा: आखिर ये माजरा क्या है?

अब जरा इस टोपोलैंड के चक्कर को समझिए। बिहार में नदियों के जलस्तर घटने या मृत हो जाने से जो जमीनें निकलीं, उन्हें अंग्रेजों ने 1905 से 1915 के बीच सर्वे नहीं किया। इन जमीनों को "टोपोलैंड" का तमगा दे दिया गया, यानी सरकारी जमीन। सरकार का कहना था कि इस पर न तो खरीद-बिक्री हो सकती है, न मकान बन सकता है, और न ही नक्शा पास हो सकता है। छपरा नगर निगम क्षेत्र का 25% हिस्सा इसी टोपोलैंड के दायरे में आता है। 20 जुलाई 2017 को सरकार ने इसकी खरीद-फरोख्त पर पूरी तरह रोक लगा दी थी। लेकिन कोर्ट ने 11 फरवरी 2022 को इस आदेश को पलटते हुए कहा कि रजिस्ट्री का मतलब मालिकाना हक नहीं, इसलिए खरीद-बिक्री पर रोक नहीं लगाई जा सकती। फिर 16 अगस्त 2022 को सरकार ने अपना आदेश वापस ले लिया। लेकिन क्या ये इतना आसान था?

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सरकार की चालबाजी और कोर्ट की फटकार

सरकार ने हार नहीं मानी और 29 अगस्त 2022 को नया पेंच फंसाया। नए आदेश में कहा गया कि टोपोलैंड की खरीद-बिक्री तो हो सकती है, लेकिन जमाबंदी, लैंड पजेशन सर्टिफिकेट, या नक्शा पास नहीं होगा। ये तो वही बात हुई कि "खाना खाओ, लेकिन पेट मत भरो!" मामला फिर कोर्ट पहुंचा, और 1 अप्रैल 2024 को कोर्ट ने सरकार को फिर फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि जब खरीद-बिक्री पर रोक नहीं है, तो जमाबंदी और नक्शा पास करने पर रोक कैसे लगा सकते हो? सरकार बैकफुट पर आई और कोर्ट को सफाई दी कि "हमने तो किसी नगर पालिका को नक्शा पास करने से रोका ही नहीं!" लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस बहानेबाजी को सिरे से खारिज कर दिया।

छपरा से बिहार तक: क्या होगा असर?

इस फैसले का असर सिर्फ छपरा तक सीमित नहीं है। बिहार के कई इलाकों में टोपोलैंड का मसला लोगों के लिए सिरदर्द बना हुआ है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से अब उन तमाम लोगों को राहत मिल सकती है, जो टोपोलैंड के नाम पर नक्शा पास कराने के लिए दर-दर भटक रहे थे। लेकिन सवाल ये है कि क्या बिहार सरकार अब भी कोई नया पेंच फंसाएगी, या इस बार सबक सीख लेगी? फिलहाल तो सरकार और नगर निगम की किरकिरी हो चुकी है, और कोर्ट ने साफ कर दिया कि टोपोलैंड के नाम पर जनता को परेशान करना अब नहीं चलेगा।

तमाशा जारी, लेकिन जनता को राहत

तो ये थी टोपोलैंड के तमाशे की कहानी, जिसमें सरकार और नगर निगम ने बार-बार कोशिश की, लेकिन हर बार कोर्ट ने उनकी हवा निकाल दी। सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला न सिर्फ छपरा के लिए, बल्कि पूरे बिहार के लिए एक मिसाल बन सकता है। अब देखना ये है कि सरकार इस फैसले को कितनी शिद्दत से लागू करती है, या फिर कोई नया "मास्टरस्ट्रोक" लेकर आती है। तब तक, छपरा के लोग इस जीत का जश्न मना सकते हैं, और बाकी बिहार को उम्मीद है कि टोपोलैंड का टंटा जल्द खत्म होगा!

हीरेश कुमार की विशेष रिपोर्ट