डायबिटीज का इलाज अब एक नई दिशा में बढ़ता दिख रहा है। भारत में टाइप-2 डायबिटीज के इलाज के लिए 'एमपेग्लिफ्लोजिन' नामक दवा का सस्ता विकल्प अब तेजी से उपलब्ध हो रहा है, जिससे लाखों मरीजों के लिए राहत का नया रास्ता खुल गया है। इस नई दवा के बाजार में आगमन के साथ, विदेशी दवा कंपनियों के खिलाफ एक 'प्राइस वॉर' की शुरुआत हो चुकी है।
भारतीय कंपनियों ने दिखाया दम
भारत में डायबिटीज मरीजों की संख्या 10.1 करोड़ से भी अधिक है, और इसमें हर दिन वृद्धि हो रही है। इस विशाल बाजार में भारतीय कंपनियां अब 'एमपेग्लिफ्लोजिन' के सस्ते वर्जन पेश कर रही हैं, जिससे विदेशी कंपनियों के लिए चुनौती बढ़ गई है। बोह्रिंगर इंगेलहाइम और एली लिली की दवा का पेटेंट खत्म होते ही, भारतीय कंपनियों ने इस मौके का पूरा फायदा उठाया और नए विकल्पों के साथ बाजार में कदम रखा। इससे 'जारडिएंस' ब्रांड की दवा की कीमत में 80% तक की गिरावट आई है।
क्या बदलाव लाएगी यह सस्ती दवा?
पहले जहां 'जारडिएंस' के 10 mg टैबलेट की कीमत 58-60 रुपये और 25 mg टैबलेट की कीमत 65-70 रुपये थी, वहीं अब मैनकाइंड फार्मा, ग्लेनमार्क और एल्केम जैसी कंपनियां इसे बेहद सस्ती कीमतों पर बेच रही हैं। मैनकाइंड फार्मा ने 'एमपेग्लाइड' और 'एमपेग्रेट' 10 mg टैबलेट 5.49 रुपये और 25 mg टैबलेट 9.90 रुपये में उपलब्ध कराई हैं। ग्लेनमार्क की 'ग्लेम्पा' 8.50-10 रुपये में उपलब्ध है, और एल्केम की 'एम्पेनॉर्म' की कीमत और भी सस्ती हो सकती है। यह बदलाव न केवल मरीजों के लिए एक वरदान है, बल्कि दवा उद्योग के परिदृश्य को भी बदलने वाला है।
कंपनियों की रणनीति और भविष्य
भारतीय कंपनियां केवल सस्ती दवाओं को बाजार में नहीं उतार रही हैं, बल्कि अपने ब्रांडों की कीमतों में भी बड़ी कमी कर रही हैं। ग्लेनमार्क ने 'ग्लेम्पा' ब्रांड के तहत 10 mg और 25 mg टैबलेट के साथ साथ 'ग्लेम्पा-L' (एमपेग्लिफ्लोजिन + लिनैग्लिप्टिन) और 'ग्लेम्पा-M' (एमपेग्लिफ्लोजिन + मेटफॉर्मिन) जैसे FDC (फिक्स्ड-डोज कॉम्बिनेशन) लॉन्च किए हैं। कंपनी का कहना है कि ये दवाएं उच्च गुणवत्ता के साथ कम कीमत में मरीजों को उपलब्ध कराई जा रही हैं।
मैनकाइंड फार्मा ने भी अपनी तरफ से कई ब्रांड जैसे 'एमपेग्लाइड', 'एमपेग्रेट' और 'डायनाडुओ' लॉन्च किए हैं। कंपनी का लक्ष्य है कि जरूरी दवाओं की कीमत कभी भी मरीजों के इलाज में रुकावट न बने।
एल्केम ने दिया बुजुर्गों के लिए भी एक तोहफा
एल्केम लैबोरेटरीज ने 'एम्पेनॉर्म' को असली ब्रांडेड दवाओं से 80% सस्ता रखा है। इसके साथ ही, कंपनी ने बुजुर्ग मरीजों के लिए टैबलेट का आकार छोटा किया है, जिससे वे इसे आसानी से ले सकें। इसके अलावा, कंपनी ने एंटी-काउंटरफीट सिक्योरिटी बैंड भी पेश किए हैं, ताकि मरीजों को नकली दवाओं से बचाया जा सके।
विशेषज्ञों की राय और बाजार का भविष्य
फोर्टिस C-DOC हॉस्पिटल के चेयरमैन डॉ. अनूप मिश्रा का मानना है कि सस्ती दवाओं के आने से गरीब वर्ग के लोग भी डायबिटीज की बेहतरीन दवाओं का नियमित सेवन कर सकेंगे, जिससे इलाज में सुधार आएगा।
डायबिटीज का इलाज अब एक वैश्विक व्यापार बन चुका है। 2024 में डायबिटीज दवाओं का बाजार लगभग 7,400,000 करोड़ रुपये (88.32 अरब डॉलर) तक पहुंचने का अनुमान है और 2032 तक यह आंकड़ा 19,600,000 करोड़ रुपये (233.84 अरब डॉलर) तक जा सकता है। भारत में भी डायबिटीज केयर दवाओं का बाजार 2023 में 56,000 करोड़ रुपये (6.75 अरब डॉलर) का था, जो 2032 तक 95,000 करोड़ रुपये (11.46 अरब डॉलर) तक पहुंच सकता है।