ट्रंप के टैरिफ से हिलते शेयर बाजारों के बीच सोने की कीमतों में उबाल: क्या ₹50,000 तक गिर सकता है सोना?

दुनियाभर के शेयर बाजारों में उतार-चढ़ाव के बीच, सोने की कीमतों को लेकर एक बड़ी खबर वायरल हो रही है। अमेरिकी वित्तीय सेवा फर्म मॉर्निंगस्टार के विश्लेषक जॉन मिल्स के हवाले से यह जानकारी सामने आ रही है कि सोने का भाव 50,000 से 55,000 रुपये तक गिर सकता है। लेकिन क्या यह भविष्यवाणी सही है? क्या सच में सोने की कीमत में इतनी बड़ी गिरावट हो सकती है? आइए जानते हैं इस रिपोर्ट के पीछे की हकीकत और इतिहास क्या कहता है।
जॉन मिल्स की भविष्यवाणी: क्या इसमें है दम?
मॉर्निंगस्टार के जॉन मिल्स के अनुसार, वैश्विक सोने की कीमतें जो वर्तमान में $3,080 प्रति औंस पर हैं, वो घटकर $1,820 प्रति औंस तक पहुंच सकती हैं। अगर ये गिरावट भारत तक पहुंची, तो सोने की कीमत ₹55,000 प्रति 10 ग्राम तक गिर सकती है। हालांकि, इस भविष्यवाणी को लेकर कुछ सवाल भी खड़े हो रहे हैं।
इतिहास कहता है कुछ और!
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार केडिया कमोडिटीज के प्रेसीडेंट ने जॉन मिल्स की भविष्यवाणी को खारिज करते हुए आंकड़ों के जरिए सोने के बारे में अलग राय पेश की है। उनका कहना है कि इतिहास गवाह है कि जब भी वैश्विक शेयर बाजारों में गिरावट आई है, तब सोने ने निवेशकों को सुरक्षा और मुनाफा दोनों दिया है।
वह बताते हैं, "2008 के वित्तीय संकट में एसएंडपी 500 में 57.69% की गिरावट आई, लेकिन सोना 39.56% चढ़ा।" इसी तरह, डॉट-कॉम बबल फूटने के दौरान और कोविड क्रैश के दौरान भी सोने ने अच्छा प्रदर्शन किया।
2008 का संकट: एसएंडपी 500 में 57.69% गिरावट, सोना 39.56% बढ़ा।
डॉट-कॉम क्रैश: एसएंडपी 500 में 49.2% गिरावट, सोना 21.65% बढ़ा।
कोविड क्रैश (2020): एसएंडपी 500 में 35.71% गिरावट, सोना 32.48% बढ़ा।
केडिया का कहना है, "जब भी शेयर बाजार एक तिमाही में 20% से अधिक गिरता है, सोना हमेशा चमकता है।" उनका मानना है कि अगले तीन से छह महीनों में सोना अंतरराष्ट्रीय बाजार में $3,200 तक पहुंच सकता है और भारत में ₹94,000-₹95,000 तक जा सकता है।
सोने की चमक के पीछे के कारण
आज के समय में सोने की कीमतों में मजबूती आने के पीछे कई कारण हैं। इन कारणों में जियोपॉलिटिकल टेंशन (युद्ध और तनाव), डी-डॉलराइजेशन (देशों का डॉलर से हटकर सोना खरीदने का रुझान), और सेंट्रल बैंक व ETF (एक्सचेंज ट्रेडेड फंड) की बढ़ती खरीदारी प्रमुख हैं।
जियोपॉलिटिकल टेंशन: जब भी दुनिया में युद्ध और राजनीतिक तनाव बढ़ते हैं, तब निवेशक अपनी संपत्ति को सुरक्षित रखने के लिए सोने की ओर रुख करते हैं।
डी-डॉलराइजेशन: कई देशों ने अमेरिकी डॉलर से हटकर सोने को अपने रिजर्व के रूप में रखने की शुरुआत की है, जिससे सोने की मांग बढ़ी है।
सेंट्रल बैंक और ETF की खरीदारी: केंद्रीय बैंक और ETF संस्थाएं भी लगातार सोने की खरीदारी कर रही हैं, जिससे इसकी कीमतों में और तेजी आई है।
वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए, सोने की कीमत में गिरावट की संभावना कम ही नजर आती है। केडिया कमोडिटीज के आंकड़े और इतिहास की स्थिति को ध्यान में रखते हुए, विशेषज्ञों का मानना है कि सोना एक सुरक्षित निवेश विकल्प बना रहेगा। जॉन मिल्स की 50,000-55,000 रुपये तक गिरावट की भविष्यवाणी फिलहाल अधिक यथार्थपूर्ण नहीं लगती। इसके विपरीत, सोने की कीमतों में और वृद्धि की संभावना अधिक प्रतीत होती है, खासकर जब वैश्विक बाजार में अस्थिरता और अनिश्चितता बढ़ी हुई हो।
सोना हमेशा से एक सुरक्षित पनाहगाह माना गया है, और मौजूदा स्थिति में भी यही उम्मीद जताई जा रही है कि यह निवेशकों को आश्वस्त करेगा और वैश्विक संकट के बीच भी बढ़ने की राह पर रहेगा।