DSP Adil Bilal Case: डीएसपी आदिल बिलाल पर हत्या का केस दर्ज, CBI ने दर्ज किया 3 मुकद्दमा, बर्थडे पार्टी बनी थी मौत की महफ़िल
DSP Adil Bilal Case: अगर एक डीएसपी ही खुलेआम गोली चला सकता है तो आम आदमी कितना सुरक्षित है?हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने अब मामले की कमान संभाल ली है और तीन अलग-अलग एफआईआर दर्ज की हैं। ...

DSP Adil Bilal Case: बिहार का सासाराम शहर, जहां 27 दिसंबर 2024 की रात जश्न और जाम का माहौल था, अचानक गोलियों की गड़गड़ाहट से दहल उठा। यह कोई आम फायरिंग नहीं थी, बल्कि कानून की रखवाली करने वाला ही कानून तोड़ बैठा। आरोप है कि सासाराम के तत्कालीन यातायात डीएसपी आदिल बिलाल ने अपने सर्विस रिवॉल्वर से बर्थडे पार्टी में गोलियां बरसा दीं। नतीजा युवक राणा ओमप्रकाश उर्फ बादल की मौके पर मौत और दो युवक घायल। इस सनसनीखेज कांड ने पूरे बिहार की पुलिस पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया। अब इस पूरे मामले की जांच सीबीआई कर रही है और तीन-तीन एफआईआर दर्ज कर ली गई हैं।
कैसे हुआ कांड?
सासाराम शहर के हरीजी के हाता में 27 दिसंबर की रात बादल अपने दोस्तों के साथ बर्थडे पार्टी मना रहा था। माहौल में हंसी-ठिठोली और शराब की नशा घुला था। तभी वहां धावा बोल दिया यातायात डीएसपी आदिल बिलाल ने। साथ में थे बॉडीगार्ड सोनू कुमार और कुछ पुलिस वाले। पार्टी में घुसे अफसर ने पूछताछ शुरू की, फिर मारपीट हुई और अचानक सर्विस रिवॉल्वर से छह राउंड फायरिंग कर दी।गोलियां सीधे बादल को निशाना बनाकर चलाई गईं। परिजनों का कहना है कि गोली लगते ही बादल वहीं ढेर हो गया। मौके पर चीख-पुकार मच गई, उसके साथी अतुल सिंह और विनोद भी घायल हो गए।
आरोप और धमकियां
गवाहों का कहना है कि डीएसपी ने फायरिंग के बाद धमकी दी कि “तुम लोगों को झूठे आपराधिक मामले में फंसा कर बर्बाद कर दूंगा।” एक तरफ बादल की लाश, दूसरी तरफ खून से लथपथ उसके दोस्त, और ऊपर से पुलिस का यह खौफनाक चेहरा यह दृश्य सासाराम ने पहले कभी नहीं देखा था।
बवाल और हाईकोर्ट का हस्तक्षेप
इस घटना ने राजनीतिक और सामाजिक दोनों स्तरों पर भूचाल ला दिया। सवाल उठा कि अगर एक डीएसपी ही खुलेआम गोली चला सकता है तो आम आदमी कितना सुरक्षित है? जनता का गुस्सा उबल पड़ा और मामला पटना हाईकोर्ट तक पहुंचा। न्यायमूर्ति संदीप कुमार ने 30 जुलाई 2025 को सीबीआई जांच का आदेश दिया।
सीबीआई ने दर्ज की तीन एफआईआर
हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने अब मामले की कमान संभाल ली है और तीन अलग-अलग एफआईआर दर्ज की हैं। पहला मामला हत्या और हत्या के प्रयास की एफआईआर डीएसपी आदिल बिलाल, उनके बॉडीगार्ड सोनू कुमार और अज्ञात पुलिसवालों के खिलाफ। दूसरा शराबबंदी कानून उल्लंघन की एफआईआर हरीजी के हाता के मालिक कालिका सिंह को नामजद किया गया। तीसरे में अज्ञात के खिलाफ तीसरी एफआईआर ताकि मामले की हर परत को उघाड़ा जा सके।
कानून के रक्षक या भक्षक?
इस पूरे मामले ने बिहार पुलिस की छवि पर गहरी चोट पहुंचाई है। सवाल यह है कि क्या वर्दी की आड़ में अपराध को ढंका जाएगा या फिर न्याय की आवाज बुलंद होगी? बादल के परिजन और घायल दोस्त अब सीबीआई से इंसाफ की उम्मीद लगाए बैठे हैं।सवाल गूंज रहा है कि वर्दी में बैठे कातिल का सच कौन उजागर करेगा? क्या सीबीआई की जांच बादल को इंसाफ दिला पाएगी या यह भी किसी ‘फाइलों की कब्रगाह’ में दफ्न हो जाएगा?