Chhath puja 2025: वैदिक विज्ञान से लोकआस्था तक, सूर्योपासना का विराट स्वर छठ पर्व की दिव्यता और ये है वैज्ञानिकता

Chhath puja 2025: भारतीय धर्म, दर्शन और लोकसंस्कृति का समग्र स्वरूप जब हम परखते हैं, तो स्पष्ट होता है कि यहाँ की जनचेतना और धार्मिक आस्थाएँ केवल कर्मकांड या रूढ़ि नहीं, बल्कि गहन वैज्ञानिक एवं अनुभवजन्य तत्वों से ओत-प्रोत हैं।

Chhath puja
लोक आस्था का पर्व छठ-वैदिक विज्ञान से लोकआस्था तक- फोटो : reporter

Chhath puja 2025: भारतीय धर्म, दर्शन और लोकसंस्कृति का समग्र स्वरूप जब हम परखते हैं, तो स्पष्ट होता है कि यहाँ की जनचेतना और धार्मिक आस्थाएँ केवल कर्मकांड या रूढ़ि नहीं, बल्कि गहन वैज्ञानिक एवं अनुभवजन्य तत्वों से ओत-प्रोत हैं। यह तथ्य अनेक रूपों में आज सिद्ध हो चुका है कि भारतीय धर्म का प्राकृतिक प्रवाह वैज्ञानिक अवधारणा से अभिसिंचित है। वैदिक ऋषि केवल कवि नहीं थे, वे द्रष्टा थे—जिन्होंने सृष्टि और चेतना के अनुभव को देखा, जिया और उसे मानवता के कल्याण हेतु शब्दों में पिरोया।

सूर्य—सृजन, विज्ञान और ब्रह्म का प्रतीक

वैदिक रचनाकारों ने सृष्टि के मूल में ‘ऋत’—अर्थात् नियम—की स्थापना की। उनके अनुसार सृजन की समस्त शक्ति सूर्य में निहित है। सूर्य केवल प्रकाशदाता नहीं, बल्कि चराचर जगत के प्राण हैं। वैदिक वाङ्मय में सूर्य को हिरण्यमय अण्ड कहा गया है—जिससे समस्त सृष्टि का विकास हुआ। यही सूर्य त्रिविक्रम विष्णु हैं, जो तीनों लोकों में व्याप्त हैं, और यही सविता हैं, जो सृजन प्रक्रिया को शक्ति प्रदान करते हैं।

ऋग्वेद में कहा गया है—

“मूर्धा भुवो भवति नक्तमग्निस्ततः सूर्यो जायते प्रातरुद्यन्।”

अर्थात अग्नि पृथ्वी के ऊपर है, वही सूर्य है; और जो मनुष्य इस दैव-विज्ञान को समझ लेता है, वह मायामय जगत के बंधनों से मुक्त हो जाता है। इस प्रकार अग्नि और सूर्य का एकत्व—प्रकाश, ऊर्जा और ज्ञान का प्रत्यक्ष प्रमाण बनकर उभरता है।

शास्त्रों के अनुसार ब्रह्म का अर्थ है—ज्ञान, सत्य और अनंत। इसी भाव में सूर्य को वैश्वानर कहा गया है। यजुर्वेद में सूर्य और अग्नि के संबंध को इस प्रकार व्यक्त किया गया है—

“तदेवाग्निस्तदादित्यस्तज्ज्ञनं तदुचन्द्रमा।”

यहाँ स्पष्ट किया गया है कि अग्नि ही सर्वज्ञ है—उसी से प्रकाश, वायु, जल और जीवन का संचार संभव है।

सूर्य: जीवनदाता, रोगनाशक और काल का नियामक

वैदिक साहित्य में सूर्य को परम कल्याणकारी, रोगनाशक और काल का नियामक माना गया है। अथर्ववेद में सूर्य को सर्व विषाणुनाशक बताया गया है। पृथ्वी की गति, दिन-रात का परिवर्तन और ऋतुओं का आवर्तन—सब सूर्य के नियमबद्ध संचालन से संभव है। सूर्योपासना इसलिए केवल धार्मिक कर्म नहीं, बल्कि प्रकृति के नियमन का वैज्ञानिक स्वीकार है।

छठ पर्व- वैदिक दर्शन का लोकप्रयाण

भारतीय लोकजीवन में छठ पर्व इसी वैदिक चेतना का लोकानुगत रूप है। यह पर्व ‘षष्ठी तिथि’ को मनाया जाता है, जब व्रती सूर्य को साक्षी मानकर अपने संकल्प की प्रतिज्ञा करता है। ‘व्रत’ का अर्थ ही है संकल्प और ‘उपवास’ का अर्थ है ईश्वर के समीप वास करना। इसीलिए व्रती शरीर, भोजन और आचरण—तीनों की शुद्धि रखकर सूर्य के समक्ष उपस्थित होता है।

छठ पर्व की विशेषता यह है कि इसमें वैदिक मंत्रों का प्रयोग नहीं होता, फिर भी इसका हर चरण वैदिक दर्शन की प्रतिध्वनि है। यह लोकमान्यता का पर्व है—जहाँ सूर्य के रूप में मनुष्य प्रकृति के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करता है। व्रती जब जल में खड़ा होकर डूबते या उगते सूर्य को अर्घ्य देता है, तो वह वस्तुतः जल और अग्नि तत्व के संयोजन से ऊर्जा की साधना करता है। यह साधना केवल पूजा नहीं, बल्कि ऊर्जा-संतुलन और जीवन-नवोत्थान का प्रतीक है।

कृषि, समाज और सहकार का पर्व

छठ के गीतों में मुक्ति की नहीं, प्रवृत्ति और सृजन की भावना है। व्रती अपने आराध्य से शक्ति, समृद्धि और संतति की कामना करता है। गीतों में सामाजिक सहकार का भाव गहराई से झलकता है—जहाँ वह स्वीकार करता है कि पूजा में प्रयुक्त हर वस्तु (फल, फूल, दूध, पात्र) समाज के विभिन्न वर्गों के सहयोग से प्राप्त हुई है। यह समग्रता और सहअस्तित्व का संदेश है।

छठ में कृषि और उत्पादन की महत्ता भी स्पष्ट रूप से दिखती है। यह पर्व साल में दो बार—चैत और कार्तिक—मनाया जाता है, और दोनों समय व्रती नवीन अनाज से अपने ईष्ट को अर्घ्य देता है। गीतों में अनाज की रक्षा, फसल की समृद्धि और पर्यावरणीय संतुलन के भाव प्रकट होते हैं।

वैज्ञानिक सूझ और ऊर्जा का संतुलन

छठ की प्रारंभिक विधियों में भी वैज्ञानिक सोच निहित है। ‘नहाय-खाय’ के दिन व्रती सुपाच्य भोजन करता है ताकि आगामी निर्जला उपवास की तैयारी हो। ‘लोहंडा’ के दिन लोहे के पात्र में गुड़, दूध और चावल से बनी खीर खाई जाती है—जो ऊर्जादायी तत्वों से परिपूर्ण होती है। यह वैज्ञानिक व्यवस्था शरीर को दीर्घ उपवास के लिए तैयार करती है।

सूर्य की ओर मनुष्य का नमन

छठ पर्व के माध्यम से भारतीय लोकजीवन यह उद्घोष करता है कि सूर्य केवल आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि जीवन और विज्ञान दोनों का आधार हैं। यह पर्व इस सत्य का उद्घाटन है कि धर्म जब विज्ञान से जुड़ता है, तो वह केवल पूजा नहीं रह जाता—वह प्रकृति के साथ सामंजस्य का शाश्वत संकल्प बन जाता है।

धीरेंद्र कुमार की रिपोर्ट