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शराबबंदी को उठाकर देंगे फेंक, प्रशांत किशोर ने दिया बयान, जानें शराब से कितना कमाती है सरकार

शराबबंदी को उठाकर देंगे फेंक, प्रशांत किशोर ने दिया बयान, जानें शराब से कितना कमाती है सरकार

Bihar news Prashant Kishore: प्रशांत किशोर द्वारा जन सुराज पार्टी की लॉन्चिंग के दौरान शराबबंदी को लेकर दिए गए बयान ने बिहार में राजनीतिक हलचल मचा दी है. उनका दावा है कि अगर उनकी पार्टी की सरकार बनती है, तो वे एक घंटे के भीतर बिहार में लागू शराबबंदी को पूरी तरह समाप्त कर देंगे. यह मुद्दा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि बिहार जैसे राज्य में शराबबंदी एक बड़ा सामाजिक और राजनीतिक मुद्दा है, जिसकी सरकार को भी आर्थिक दृष्टिकोण से बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.

शराब से सरकार की कमाई

भारत में शराब से होने वाली कमाई का एक महत्वपूर्ण हिस्सा एक्साइज ड्यूटी से आता है. शराब की बिक्री पर राज्य सरकार में विभिन्न Tax, जैसे उत्पाद शुल्क, वैट, और राज्य GST लगाती हैं. शराब से होने वाली यह कमाई राज्य के बजट का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती है और इसका उपयोग राज्य में बुनियादी ढांचे के विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी कई आवश्यक सेवाओं में किया जाता है.

वित्तीय वर्ष 2020-21 में भारत में कुल एक्साइज ड्यूटी से 1.75 लाख करोड़ रुपये की कमाई हुई थी, जिसमें उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा योगदान देने वाला राज्य था. इसके अलावा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, दिल्ली, पंजाब और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में भी शराब की बिक्री से सरकार को अरबों रुपये की आय होती है.

शराब पर सबसे ज्यादा टैक्स कहां है?

भारत में कर्नाटक राज्य में शराब पर सबसे अधिक टैक्स लगाया जाता है, जहां शराब की बिक्री पर 83% टैक्स है. इसके विपरीत, गोवा जैसे राज्यों में टैक्स की दरें कम हैं, जहां शराब पर 49% टैक्स लगता है. इन Tax के माध्यम से राज्य सरकारें भारी मात्रा में राजस्व उत्पन्न करती हैं.

शराबबंदी का आर्थिक प्रभाव

बिहार में शराबबंदी लागू होने से सरकार की आय में भारी गिरावट आई है, क्योंकि राज्य की आय का एक महत्वपूर्ण हिस्सा शराब से प्राप्त होता था. शराबबंदी के बावजूद, अवैध शराब का कारोबार भी एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है. प्रशांत किशोर का बयान इस संदर्भ में आता है कि शराबबंदी को खत्म करने से राज्य की आय में बढ़ोतरी हो सकती है और अवैध व्यापार पर रोक लगाई जा सकती है. शराबबंदी जैसे मुद्दे राजनीतिक और आर्थिक दृष्टिकोण से जटिल होते हैं, क्योंकि वे समाज के नैतिक और सामाजिक मूल्यांकन के साथ-साथ सरकार के वित्तीय ढांचे को भी प्रभावित करते हैं.


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