Lady Justice statue: सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) ने अपने सदस्यों से परामर्श किए बिना सुप्रीम कोर्ट के प्रतीक और 'लेडी जस्टिस' की प्रतिमा में किए गए बदलावों के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया है। यह विवाद तब शुरू हुआ जब सुप्रीम कोर्ट में नई 'लेडी जस्टिस' की प्रतिमा का अनावरण किया गया, जिसमें पारंपरिक आंखों पर बंधी पट्टी को हटा दिया गया है और हाथ में तलवार की जगह संविधान को थामा गया है। यह नई प्रतिमा यह संदेश देती है कि भारत में कानून अंधा नहीं है और न ही केवल दंडात्मक है, बल्कि संविधान पर आधारित है।
SCBA की आपत्ति
SCBA का कहना है कि ये परिवर्तन बिना बार के परामर्श के किए गए हैं, जबकि वे न्याय प्रशासन में समान हितधारक हैं। एसोसिएशन का यह भी दावा है कि उन्हें इन बदलावों के पीछे के तर्क के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई थी। एससीबीए ने अपनी आपत्ति में कहा कि पारंपरिक 'लेडी जस्टिस' की प्रतिमा में तराजू संतुलन और निष्पक्षता का प्रतीक था, जबकि तलवार कानून की शक्ति का प्रतिनिधित्व करती थी। लेकिन नई प्रतिमा को औपनिवेशिक विरासत को पीछे छोड़ने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।
संग्रहालय के प्रस्ताव पर असहमति
SCBA ने न्यायाधीशों की लाइब्रेरी में प्रस्तावित संग्रहालय पर भी आपत्ति जताई है। एससीबीए का कहना है कि उन्होंने पहले बार के सदस्यों के लिए एक कैफे-सह-लाउंज का अनुरोध किया था, क्योंकि वर्तमान कैफेटेरिया उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अपर्याप्त है। एससीबीए ने इस बात पर चिंता व्यक्त की है कि उनकी आपत्तियों के बावजूद संग्रहालय के लिए काम शुरू हो चुका है।
यह मामला न्यायपालिका और बार के बीच संवाद की आवश्यकता को उजागर करता है, खासकर जब न्यायिक प्रतीकों और संरचनाओं में बदलाव जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे सामने आते हैं।