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छठ पूजा विशेष : 10 से 15 लाख श्रद्धालु पहुंचेंगे सूर्यनगरी देव, सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम

छठ पूजा विशेष : 10 से 15 लाख श्रद्धालु पहुंचेंगे सूर्यनगरी देव, सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम

AURANGABAD : लोक आस्था का महापर्व छठ को लेकर चारो तरफ उल्लास और भक्ति का माहौल है. हर ओर भगवान भास्कर छठी मईया के गीत गूंज रहे हैं। औरंगाबाद में इसकी तैयारियां जोरों पर है। छठ के मौके पर लगनेवाले चार दिवसीय छठ मेले को लेकर औरंगाबाद का सूर्यनगरी देव सज धज कर तैयार हो गया  है. ऐसी संभावना जतायी जा रही है कि इस बार भी छठ पर्व के मौके पर लगभग 10 से 15 लाख श्रद्धालु यहां जुटेगें और छठ व्रत करेगें। जिसे लेकर सुरक्षा के पूरे इंतजाम किए गए हैं.

देव सूर्य मंदिर का इतिहास 

औरंगाबाद से 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित 8वीं सदी में बना देव सूर्य मंदिर न सिर्फ अपनी वास्तुकला की वजह से लोगों के आकर्षण का केन्द्र बना रहता है बल्कि उत्तर भारत के इकलौते इस मंदिर में स्थित भगवान भास्कर के उदयाचल , मध्यांचल तथा अस्ताचलगामी तीनों स्वरूपों के दर्शन मात्र से श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनायें पुरी भी होती हैं. देव सूर्य मंदिर को काले पत्थरों को तराश कर बनाया गया है, जो करीब 100 फीट उंचा है.

यही वजह है कि न सिर्फ बिहार से बल्कि देश के विभिन्न राज्यों समेत विदेशों से भी श्रद्धालु यहां छठ व्रत करने आते हैं. ऐसी मान्यता है कि यहां स्थित पवित्र सुर्यकुंड में स्नान मात्र से कुष्ठ रोग से मुक्ति तो मिल ही जाती है साथ ही साथ उनकी सभी मनोकामना भी पुरी होती है. पौराणिक ग्रन्थ बताते  हैं कि यहां का सुर्य मंदिर का निर्माण त्रेतायुगीन में हुआ था. यहां स्थित भगवान भाष्कर की प्रतिमाओं को कुष्ठ रोग से ग्रसित राजा एैल ने स्थापित कराया था जो कि स्नान के दौरान उन्हें सुर्यकुंड से मिला था. 

देव सूर्य मंदिर के निर्माण और यहां के पूजन से कई किवदंतियां जुड़ी हुई हैं. देश के अलग-अलग हिस्सों में बने सूर्य मंदिरों का प्रवेश द्वार पूर्व दिशा की ओर होता है, लेकिन देव सूर्य मंदिर का प्रवेश द्वार पश्चिमाभिमुख है. इस बाबत कहा जाता है कि मुगल शासक औरंगजेब ने अपने शासनकाल में मूर्तियों और मंदिरों को ध्वस्त करने का अभियान छेड़ रखा था. वह देव मंदिर भी तोड़ने पहुंचा लेकिन यहां के लोगों ने उसे छोड़ देने का आग्रह किया। उसने चुनौती दी कि यदि प्रवेश द्वार पूर्व से पश्चिम की ओर हो जाए तो वह इसे ध्वस्त नहीं करेगा। अगले दिन इसका प्रवेश द्वार पश्चिमाभिमुख हो गया जिसके बाद इसे बचा लिया गया.

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