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चपरासी से भी कम वेतन देकर और बगैर सेवाशर्त के शिक्षकों से काम लेने वाली सरकार का कोरोना का सहारा लेना शर्मनाक...केदारनाथ पांडे

चपरासी से भी कम वेतन देकर और बगैर सेवाशर्त के शिक्षकों से काम लेने वाली सरकार का कोरोना का सहारा लेना शर्मनाक...केदारनाथ पांडे

PATNA: बिहार में नियोजित माध्यमिक शिक्षकों की अनिश्चितकालीन हड़ताल 25 फरवरी 2020 से चल रही है ।हड़ताल के पूर्व संघ ने  कई बार मुख्यमंत्री से लेकर शिक्षा मंत्री और अपर मुख्य सचिव शिक्षा विभाग का ध्यान आकृष्ट किया था । लेकिन किसी स्तर पर सुनवाई नहीं हुई.

बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष और विधानपार्षद केदारनाथ पांडेय ने कहा कि विवश होकर संघ को 25 फरवरी से हड़ताल पर जाना पड़ा। 22 मार्च को जनता कर्फ्यू और फिर कोरोना संकट के कारण लॉक डाउन का प्रभाव पड़ा। सरकार ने वार्ता का कोई प्रस्ताव नहीं दिया। बिहार सरकार सिर्फ समाचार पत्रों में बयान  देकर नैतिकता के आधार पर हड़ताल वापस ले लेने की अपील करती रही।

उन्होंने कहा कि विडंबना है कि सरकार ने 2015 से राज्य, प्राथमिक और माध्यमिक नियोजित शिक्षकों को नियत वेतन से एक वेतनमान जो चपरासी से भी कम था देना स्वीकार किया । इसी समय यह भी घोषित किया कि इन शिक्षकों की एक सेवा शर्त नियमावली बनेगी जिसके जरिए इनको सेवा के निरंतरता का लाभ वित्तीय उन्नयन यानी 10 वर्ष 20 वर्ष 30 वर्ष पर वेतनमान में प्रोन्नति का लाभ मिलेगा। साथ हीं  इन्हें  प्रधानाचार्य के रूप में नियुक्ति का लाभ तथा ऐच्छिक स्थानांतरण की सुविधा दी जाएगी ।

5 वर्ष बीतने के बाद भी अभी तक सरकार ने सेवा शर्त नियमावली लागू नहीं किया । यदि लागू किया होता तो शिक्षकों को अपना भविष्य दिखाई पड़ता ।लेकिन आज शिक्षकों का भविष्य अंधकारमय  है। 2017 में सरकार ने लौंग टर्म प्लान घोषित किया था । इसके तहत  माध्यमिक विद्यालयों को पंचायती राज व्यवस्था से अलग किया जाएगा। लेकिन उसे भी कार्यान्वित नहीं किया गया ।इसमें भी सरकार को तत्काल कोई वित्तीय भार नहीं पड़ने वाला है। 

केदार पांडेय ने कहा कि इसके साथ ही राज्य में 6000 मध्य विद्यालय माध्यमिक विद्यालय में उत्क्रमित किए गए हैं. उनमें प्राथमिक शिक्षक प्रभारी है। उनकी कोई प्रबंध समिति 13 वर्षों में नहीं बनी। उन्हें वित्तीय अनुशंसा शैक्षणिक अनुशासन नहीं है. राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के माध्यम से उनका वेतन भुगतान होता है । वे माध्यमिक शिक्षक होते हुए भी वे वेतन के लिए तरसते रहते हैं। इन शिक्षकों के नाम के पहले लगा नियोजित शिक्षक शब्द कलंक जैसा लगता है. ये सब गैर वित्तीय सवाल है । यदि इन्हें लागू किया जाए तो तत्काल सरकार पर कोई भी वित्तीय भार नहीं पड़ेगा ।

बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष ने कहा कि सरकार जिद पर अड़ी है, कोरोना संकट का हवाला दे रही है। नियोजित शिक्षकों को यूटीआई योजना से अच्छादित करना था जो आज तक नहीं हुआ. बाद में पटना उच्च न्यायालय ने इन्हें ईपीएफ से आच्छादित  करने का फैसला दिया। शिक्षा विभाग ने उसे भी कूड़ेदान में डाल दिया. अगर यह मांग हल हो जाती तो हड़ताल का कोई औचित्य नहीं बनता लेकिन शिक्षा विभाग अपनी नाकामियों को छुपाने हेतु कोरोना का सहारा ले रहा है ।  

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