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क्या बिहार विधान सभा चुनाव से पहले नियोजित शिक्षकों को उल्लू बना रही सरकार...कहीं भ्रम जाल में उलझाए रखने की साजिश तो नहीं ?

क्या बिहार विधान सभा चुनाव से पहले नियोजित शिक्षकों को उल्लू बना रही सरकार...कहीं भ्रम जाल में उलझाए रखने की साजिश तो नहीं ?

PATNA:  बिहार में करीब 3 लाख 50 हजार नियोजित शिक्षकों को सरकार बड़ा तोहफा देने की तैयारी में है. जानकारी के मुताबिक, नियोजित शिक्षकों की जो मांगें हैं, उसमें से एक बड़े हिस्से पर विभाग मुहर लगाने जा रहा है. दरअसल, बिहार के नियोजित शिक्षक लंबे समय से सेवा शर्त लागू करने की मांग करते आ रहे हैं।अब तक कई दफे इसको लेकर पूरे बिहार में आंदोलन भी हुआ।इस साल भी फरवरी से मई महीने तक शिक्षकों की हड़ताल चली।हालांकि सरकार सालों से आश्वासन देते आ रही थी कि नियोजित शिक्षकों को तमाम सुविधायें मिलेंगी।राज्य सरकार ने 2015 में ही नियोजित शिक्षकों की सेवा शर्त भी देने की घोषणा कर चुकी थी।अब चुनाव से ठीक पहले सरकार की तरफ से सेवा शर्त का लॉली पॉप देने से शिक्षकों के मन में शंका गहराते जा रहा है.जानकारो का कहना है कि नीतीश सरकार सेवा शर्त लागू करने का ऐलान कर शिक्षकों को बरगलाने की कोशिश में है,ताकि गुस्से को शांत किया जा सके। 

भ्रम जाल में उलझाए रखने की साजिश :-


जानकारों का कहना है कि शिक्षक संघ और सरकार मिलकर छलावाकर रही है,ताकि वित्तीय और अन्य मामलों से शिक्षकों को भटकाया जाता रहे। संघ के नेताओँ का कई बयानों पर गौर करें तो उसमें सेवा शर्त आने के बाद भविष्य उज्ज्वल हो जाएगा, मीठे फल मिलने वाले हैं आदि। यानी अल्प और असमान वेतन गौण। क्या सेवा शर्त से सभी समस्याओं का हल होगा? बिलकुल नहीं। आज लगभग 5 हजार माध्यमिक व उच्च माध्यमिक एवं लगभग 68 हजार प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में फिलहाल नियोजित ही हेडमास्टर है. मातृत्व व पितृत्व अवकाश(135 दिन अभी मिल ही रहा है ) , स्थांतरण आदि मिलने से आर्थिक स्थिति से सुदूर जिलों में है उन्हें स्थांतरण होने से कुछ लाभ मिलेगा मगर जिसके नियम और प्रावधान का कोई स्पष्ट संकेत भी अभी नहीं है। मगर क्या शेष शिक्षकों को सेवाशर्त से वेतनमान और असमानता की समस्या दूर हो जाएगी। 

नियोजित शब्द हटाना मात्र उल्लू बनाने जैसा:-

शेिक्षकों का कहना है कि संघ के नेता बड़े जोर शोर से कह रहे हैं कि नियोजित शब्द अब हट जाएगा, तो साथ ही ये भी वे बता दें कि इससे क्या फर्क पडेगा । नियोजित के आगे एक दो बार और नियोजित जुडवा दिजिये या सरकार जोड़ दे मगर पूर्ण वेतनमान और पूर्व की तरह सेवाशर्त और सभी लाभ दे। शिक्षक उदाहरण दे रहे कि दारोगा जो बाद में डीएसपी हो गये  मगर उनके मोहल्ले के लोग, रिश्तेदार और जानने पहचानने वाले व मित्र आज भी दारोगा जी कहते हैं। सरकार चाह कर भी ताउम्र नियोजित रूपी तमगा नहीं हटा सकती। 

सेवाशर्त के प्रावधानों व नियमावली बनाने में क्यों हुई देर:-

 मंत्रिमंडल की संस्तुति एवं शिक्षा विभाग के संकल्प के बाद ही सेवाशर्त में समाहित किये जाने वाले विभिन्न प्रावधानों के लिए एक उच्च स्तरीय कमेटी बनाई गई। यह बात अलग है कि कमेटी को तीन माह के अंदर ही अपनी अनुशंसा /रिपोर्ट देनी थी। मगर पटना उच्च न्यायालय द्वारा समान काम समान वेतन के वाद पर सुनवाई और नियोजन नियमावली को निरस्त करने के आदेश एवं सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर लम्बी सुनवाई के कारण सेवाशर्त के निर्माण में बाधा उत्पन्न हुई। 

कमेटी का क्यूं हुआ पुनर्गठन :-


पिछले दिनों कमेटी के पदनाम को लेकर कुछ तकनीकी अड़चनों के कारण कमेटी का पुनर्गठन किया गया। कमेटी की बैठक 6 जुलाई को हुई भी और सूत्रों के अनुसार उसमें 2017 में बनाए प्रारूप पर ही मंथन किया। 

क्या  है नियम व प्रक्रिया :-

कमेटी द्वारा सेवा शर्त में क्या क्या अनुबंध होने चाहिए इसकी एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर सरकार/शिक्षा विभाग को सौंपेगी। जिसके बाद सरकार के विभिन्न विभागों (यथा वित्त, कानून आदि) से मंजूरी मिलने के उपरांत राज्य मंत्रिमंडल के द्वारा अंतिम रूप से सेवाशर्त प्रारूप पर मोहर लगाने के उपरांत शिक्षा विभाग द्वारा सेवाशर्त का एक विस्तृत आदेश जारी कर दिया जाएगा। 

तत्काल क्या घोषणा कर सकते हैं मुख्यमंत्री :-

यह कहना कि सेवाशर्त की घोषणा 15 अगस्त या 5 सितंबर को होगी। यह सिर्फ महज जानकारी का अभाव और सरकारी नियमों से अनभिज्ञता व अज्ञानता मात्र है। सवाल यह उठता है कि क्या मुख्यमंत्री सेवाशर्त के विभिन्न प्रावधानों, कंडिकाओ, उपबंधों आदि को गांधी मैदान से अपने भाषण में पढेंगे। एक सरकार /मुख्यमंत्री के स्तर से जो सांकेतिक घोषणा होती है वह तो 2015 में ही हो चुकी है।हां, चुनावी वर्ष है, कुछ नई घोषणा हो सकती है मगर सेवाशर्त से इतर। सरकार या विभाग ने किसी संघ /संगठन /नेता से हड़ताल के बाद ना कोई वार्ता किया है और न ही कोई सुझाव लिया है। समय समय पर कोरी अफवाह और ब्यानबाजी की जाती है। छोटी छोटी बातों का क्रेडिट लेने वाले और उसे वायरल करने वाले किसी संघ /संगठन /नेता ने हड़ताल के बाद आज तक सरकार /विभाग द्वारा वार्ता हेतु उनको भेजे गए आमंत्रण पत्र नहीं दिखाया गया। दिखाएंगे भी कैसे जब किसी को पत्र ही जारी नहीं की गई। सीएम नीतीश कुमार ने सदन और सदन बाहर भी स्पष्ट कर दिया है कि जो देना होगा और खजाना से जितना बन पडेगा हम ही समय पर देगें। 



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