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'नीतीश' के घऱ में लगी आग से गदगद है भाजपा...तो तेजस्वी की राह में भी सबसे बड़ी बाधक है BJP ! वरना अब तक CM नीतीश का तख्ता पलट हो गया होता

'नीतीश' के घऱ में लगी आग से गदगद है भाजपा...तो तेजस्वी की राह में भी सबसे बड़ी बाधक है BJP ! वरना अब तक CM नीतीश का तख्ता पलट हो गया होता

PATNA: बिहार विधानसभा में तीसरे नंबर की पार्टी जनता दल यूनाईटेड जिसके नेता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं, उनके दल के अंदर सबकुछ ठीक चल रहा, यह कहना शायद 'ठीक' नहीं होगा. 29 दिसंबर को दिल्ली में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक है. इसके पहले ही घर के अंदर लगी आग की लौ बाहर निकल गई है. स्वाभाविक है जब आग लगी है तो क्षति तो होगी ही. वही हो रहा है. जेडीयू के अंदर लगी आग से कितना नुकसान होगा, इसका आकलन दो दिनों बाद हो जाएगा. इधऱ, मुख्य विपक्षी दल भाजपा पूरे घटनाक्रम पर पैनी नजर रखी हुई है. बीजेपी इस लिहाज से भी आश्वस्त है कि उन्हें सिर्फ लाभ ही है, नुकसान का सवाल ही नहीं. 

जेडीयू में भूचाल और भाजपा की गिद्ध दृष्टि...

बिहार की सत्ताधारी पार्टी जेडीयू के अंदर भूचाल है. राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने इस्तीफे की पेशकश की है. इसकी खबर मीडिया में आई तो मुख्यमंत्री के विश्वस्त मंत्री विजय चौधरी सामने आए और खबर का खंडन किया. लेकिन वस्तु स्थिति कुछ और ही है. नीतीश कुमार को एक साथ कई मोर्चों पर लड़ना पड़ रहा है. सहयोगी राजद ने भी भारी दबाव बनाना शुरू कर दिया है. इधर दल के अंदर भी ठीक नहीं है. नेता नीतीश कुमार को लेकर जेडीयू में भारी नाराजगी है. खबर है कि जेडीयू कोटे के एक वरिष्ठ मंत्री भी नीतीश कुमार को लेकर भारी नाराज हैं. उन्होंने अपनी नाराजगी भी जाहिर की है. दावा है कि उनके पास कुछ विधायक हैं.लेकिन उतने भर से काम नहीं चलने वाला  हालांकि नीतीश कुमार की तरफ से उन्हें मनाने की पुरजोर कोशिश की जा रही है.

जेडीयू में तेजस्वी समर्थक विधायकों की संख्या 10 के नीचे

जेडीयू के भीतर उठापटक से भाजपा काफी खुश है. भाजपा के दोनों हाथ में लड्डू है. सूत्रों का कहना है कि जदयू में जारी खटपट और ललन सिंह के संभावित इस्तीफे के बाद कुछ विधायक अलग अलग रास्ता पकड़ सकते हैं. पार्टी में अगर टूट होती है तो वैसी स्थिति में नीतीश कुमार कमजोर होंगे और इसका सीधा लाभ भाजपा को होगा. यह भी कहा जा रहा है कि सहयोगी दल की तरफ से नीतीश कुमार पर कुर्सी छोड़ने का दबाव है. अगर सीएम नीतीश इसके लिए तैयार नहीं होते हैं तब दूसरा फार्मूला अपनाया जायेगा. यानि जेडीयू विधायकों को तोड़ने की कोशिश होगी. नीतीश कुमार भले ही टेंशन में हों, लेकिन यहां भी भाजपा निश्चिंत मुद्रा में है. विधानसभा स्पीकर की कुर्सी राजद के पास है, लेकिन नई सरकार बनाने में राजभवन की बड़ी भूमिका होती है. केंद्र में मोदी सरकार है. लिहाजा तेजस्वी के नेतृत्व में नई सरकार के गठन में राजभवन बाधक बन सकता है. तब एक बार फिर से नीतीश कुमार और भाजपा नेतृत्व के बीच समझौता होगा, जिसका लाभ भाजपा को मिलना तय है. भाजपा के विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि नेतृत्व पूरे घटनाक्रम पर नजदीक से नजर रखे हुए है. बिहार में जो भी राजनीतिक घटनाक्रम हो रहा है पल-पल की जानकारी केंद्रीय नेतृत्व को है. भाजपा के विश्वस्त सूत्र ने बताया कि जेडीयू के विपक्षी खेमा के पास विधायकों की संख्या 10 से नीचे है.लेकिन इतने भऱ से वे अपने मिशन में कामयाब नहीं होंगे. यानि वर्तमान राजनीतिक हालात में तेजस्वी यादव को सीएम की कुर्सी तक पहुंचने में भाजपा सबसे बड़ी बाधा है. 

तेजस्वी की राह में बीजेपी बनी रोड़ा 

दरअसल, 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में आरजेडी के विधायकों की संख्या वर्तमान में 79 है. बिहार में सरकार बनाने के लिए 122 विधायकों की जरूरत होती है. आरजेडी को कांग्रेस के 19 और लेफ्ट के 16 विधायकों का शुरू से ही समर्थन है.  यानी आरजेडी, कांग्रेस और वामदलों को जोड़कर 114 विधायक हैं. वहीं एक निर्दलीय सुमित सिंह हैं. साथ ही एक ओवैसी की पार्टी के विधायक हैं. इस तरह 114 के अलावा 2 अन्य विधायकों को जोड़ने पर यह राजद के नेतृत्व वाले गठबंधन की संख्या 116 हो सकती है.जबकि बहुमत के जादुई आंकड़े के लिए 122 चाहिए, यानि बहुत से 6 कम है. अगर राजभवन बीच में आड़े नहीं आए तो तेजस्वी यादव जेडीयू के कुछ विधायकों को तोड़कर और विधानसभा में अलग गुट की मान्यता दिलवाकर सीएम की कुर्सी तक पहुंच सकते थे. लेकिन नई सरकार के गठन के लिए राज्यपाल आमंत्रित करते हैं,अगर जेडीयू के कुछ विधायकों की टूट होती है तब नीतीश कुमार चुप नहीं बैठेंगे. ऐसे में गेंद राज्यपाल के पाले में चली जायेगी. वैसी राजनीतिक स्थिति में नीतीश कुमार और बीजेपी नेतृत्व मिलकर बड़ा खेल कर सकता है. भाजपा के विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि हम लोग निश्चिंत हैं. कहीं कोई परेशानी नहीं है.


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