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बिहार में भाजपा का लोकसभा सीट शेयरिंग फॉर्मूला तैयार; चिराग, कुशवाहा, मांझी, पारस को बीजेपी ने साध लिया, इतने सीटों से करना होगा संतोष

बिहार में भाजपा का लोकसभा सीट शेयरिंग फॉर्मूला तैयार; चिराग, कुशवाहा, मांझी, पारस को  बीजेपी ने साध लिया, इतने सीटों से करना होगा संतोष

PATNA- लोकसभा चुनाव 2024 के लिए सियासी बिसात बिछनी शुरु हो गई है. एक तरफ इंडी गठबंधन बिहार में सीट शेयरिंग पर माथा पच्ची करने में जुटा है तो दूसरी तरफ भाजपा ने राज्य में सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तैयार कर लिया है. राज्य की 40 लोकसभा सीटों पर बीजेपी खुद 30-31 सीट पर लड़ेगी. वहीं गठबंधन में शामिल लोजपा के दोनों गुटों को 6 सीट, उपेंद्र कुशवाहा की रालोजपा को 2 और जीतन राम मांझी की पार्टी हम को एक सीट मिल सकती है.  2019 में जब एलजेपी में टूट नहीं हुआ था तो उसने छह सीटें जीती थीं.

अभी बिहार से भाजपा के 17 लोकसभा सांसद हैं, जिसे देखते हुए पूरी संभावना है कि पार्टी 40 में से 30-31 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और 9 से 10 सीटें अपने गठबंधन सहयोगियों के लिए छोड़ेगी. सूत्रों के अनुसार भाजपा ने जिन सीटों पर जीत हासिल की है, उसके अलावा पार्टी उन 16 सीटों में से 13 पर भी चुनाव लड़ेगी, जो जेडीयू ने 2019 में बीजेपी के साथ गठबंधन में जीती थीं. वहीं बीजेपी ने बिहार में 10 ऐसी सीटों की पहचान कर विशेष तैयारी शुरू कर दी है, जिन पर पिछले चुनाव में उसके सहयोगियों ने जीत हासिल की थी. इन सीटों में वाल्मिकी नगर, कटिहार, पूर्णिया, गया, झंझारपुर, सुपौल, मुंगेर, किशनगंज, नवादा और वैशाली शामिल हैं. भाजपा इन सीटों पर किसी भी तरह की लापरवाही नहीं बरतना चाहती। पिछले चुनाव में जिन लोकसभा क्षेत्रों में सहयोगी दल के उम्मीदवारों को जीत मिली थी, वहां बीजेपी का संगठन काफी मजबूत है.

भाजपा 2024 में भी कमोवेश 2014 के फार्मूले पर ही सीटों के बंटवारे का मन बना चुकी है, लेकिन इस बार सहयोगियों के लिए पिछली बार की तुलना में कम सीटें छोड़ सकती है.भाजपा का लक्ष्य है कि 30 से 36 तक सीटें मिल जाएं.बिहार से 17 सांसद हैं और जेडीयू ने पिछली बार साथ मिलकर 16 सीटें जीत ली थीं. हालांकि इस बार दोनों अलग हैं.मौजूदा जानकारी के मुताबिक भाजपा 30 से 31 सीटों पर लड़ेगी. इसके बाद बाकी बची 9 से 10 सीटों को लोजपा के गुटों,उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी और मांझी के दल में बांट दिया जाएगा.

2019 में राजग से बाहर होकर राजद के साथ चुनाव लड़ने वाले उपेंद्र कुशवाहा को इस बार एक सीट पर ही संतोष करना पड़ सकता है. 2014 में सात सीट लड़ने वाली लोजपा को 2019 में छह सीटें मिली थी, लेकिन इस बार उसके सीटों की संख्या चार-पांच हो सकती है.इसी तरह से जीतन राम मांझी की हम को भी एक सीट ही मिल सकती है. भाजपा किसी भी स्थिति में  30 से कम सीटों पर चुनाव नहीं लड़ेगी.  भाजपा  सवर्णों और बहुसंख्यक पिछड़े वर्गों सहित सामाजिक गठबंधन पर नजर गड़ाए हुए है, जिसने 2015 के विधानसभा चुनावों में उसे करारी हार दी थी. इस दिशा में पहला कदम उठाते हुए पार्टी ने सम्राट चौधरी, जो कि कुशवाहा जाति से आते हैं, को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंप दी. एक और कुशवाह नेता नागमणि  भी बीजेपी के खेमे में आ चुके हैं. बीजेपी कई छोटी जातियों के बीच भी अपना जनाधार बढ़ाने की योजना पर काम कर रही है. सभी जातियों में अपनी पैंठ बनाने के लिए पार्टी ने पिछले साल शंभू शरण पटेल को राज्यसभा के लिए नामित किया था. पार्टी ने ईबीसी को लुभाने के लिए, जो राज्य के मतदाताओं का लगभग 30% हिस्सा है और एक अस्थायी वोट आधार माना जाता है, एमएलसी हरि साहनी को विधान परिषद में विपक्ष का नेता बना दिया. सहनी मल्लाह (नाविक) जाति से आते हैं, जो ईबीसी के निषाद समुदाय का एक उप-समूह है, जिसकी उत्तर बिहार के कई लोकसभा क्षेत्रों जैसे वैशाली, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मधुबनी और अन्य में बड़ी उपस्थिति है.

बहरहाल साल 2024 के रण में विपक्षी दलों को मात देने के लिए भाजपा ने ठोस रणनीति बनानी शुरु कर दी है. 

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