PATNA : देश में पहले चरण का चुनाव होने में अब कुछ घंटे ही बचे हैं। जिसके मद्देनजर प्रत्याशी जोर आजमाईश में जुट गए हैं। वहीँ बाकी बचे चरणों के लिए भी प्रचार अभियान तेज है। बिहार की बात करें तो यहाँ के 40 लोकसभा सीटों पर महागठबंधन और एनडीए के उम्मीदवार आमने सामने हैं। लेकिन पिछले आंकड़ों की बात करें तो बिहार में होनेवाले हर चुनाव में जाति बहुत बड़ा फैक्टर माना जाता है। यहीं वजह हैं की राजनीतिक दल भी जातीय समीकरण देखकर ही अपना उम्मीदवार तय करते हैं। इसी कड़ी में आपको बता दें की बिहार की फ़िलहाल 17 लोकसभा सीटें ऐसी हैं। जहाँ पिछले 15 सालों यानी 2009 से एक ही जाति के उम्मीदवार की जीत हो रही है। इनमें भी 8 सीटें ऐसी हैं, जहाँ कम आबादी होने के बावजूद सवर्णों का दबदबा है।
सबसे पहले बात करते हैं उन लोकसभा सीटों की, जहाँ 2009 से केवल राजपूत ही जीत दर्ज कराते आये हैं। इसमें महराजगंज, वैशाली, औरंगाबाद और आरा लोकसभा सीट शामिल है। इनमे सबसे पहले नाम आता है बिहार का चितौडगढ़ कहे जाने वाले औरंगाबाद का, जहाँ से फिलहाल भाजपा के सुशील कुमार सिंह सांसद हैं। इससीट पर बिहार के पूर्व सीएम सत्येंद्र नारायण सिंह ने 1952, 1971, 1977, 1980 और 1984 में जीत दर्ज की। उनकी बहू श्यामा सिन्हा यहां 1999 में जीतीं और फिर उनके बेटे और दिल्ली के पूर्व कमिश्नरनिखिल कुमार ने यहां 2004 में जीत हासिल की। साल 2009 से सुशील सिंह औरंगाबाद के सांसद हैं। वैशाली लोकसभा सीट पर साल 2009 में राजद के रघुवंश प्रसाद सिंह, साल 2009 और 2014 में एलजेपी की रामा किशोर सिंह और साल 2014 में वीणा देवी ने जीत दर्ज की थी। वीणा देवी एलजेपी के टिकट पर यहां से फिर मैदान में हैं। बात अगर आरा लोकसभा सीट की करें तो यहां 2009 में जदयू की मीना सिंह ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद इस सीट पर बीजेपी के आरके सिंह ने विजय हासिल की। बीजेपी ने आरके सिंह को फिर चुनाव मैदान में उतारा है। महाराजगंज में साल 2009 में राजद के उमाशंकर सिंह, साल 2014 और 2019 में बीजेपी के जनार्दन सिंह ने जीत दर्ज की थी। वह यहां से इस बार लगातार तीसरी बार मैदान में हैं।
वहीँ नवादा और मुंगेर में भी 2009 से भूमिहार ही जीत दर्ज कराते आये है। नवादा में बीजेपी के भोला सिंह ने साल 2009 ने नवादा में जीत दर्ज की थी। इसके बाद यहां 2014 में गिरिराज सिंह और फिर 2019 में एलजेपी के चंदन सिंह ने जीत दर्ज की। इस बार इस सीट पर बीजेपी के भूमिहार नेता विवेक ठाकुर किस्मत आजमा रहे हैं। मुंगेर में 2009 में जदयू के ललन सिंह ने जीत दर्ज की थी, साल 2014 में इस सीट पर एलजेपी की वीणा देवी जीतें और फिर साल 2019 में ललन सिंह इस सीट पर वापस काबिज हो गए। वह इस बार फिर यहां से चुनाव लड़ रहे हैं। उधर कायस्थ समाज की बाते करें तो पटना साहिब लोकसभा सीट पर साल 2009 और साल 2014 में बीजेपी के टिकट परशत्रुघ्न सिन्हा ने जीत दर्ज की थी। पिछले चुनाव में यहां रविशंकर प्रसाद जीते। वह इस बार फिर से चुनाव मैदान में हैं। दोनों कायस्थ समाज से आते हैं। वहीँ ब्राह्मणों की बात करें तो दरभंगा लोकसभा सीट पर पिछली तीन बार से ब्राह्मण उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है। साल 2009 और साल 2014 में बीजेपी के टिकट पर यहां से कीर्ति आजाद ने जीत दर्ज की। इसके बाद यहां पिछले चुनाव में गोपालजी ठाकुर ने जीत दर्ज की। गोपालजी यहां फिर से चुनाव मैदान में हैं।
बिहार में यादवों की आबादी 14 फीसदी के आसपास है। लेकिन 2009 से महज तीन सीट पर यादव जीत दर्ज कराते आये हैं। इसमें मधुबनी,मधेपुरा और पाटलिपुत्र शामिल हैं। मधुबनी लोकसभा सीट पर साल 2009, साल 2014 में बीजेपी के हुकुमदेव नारायणयादवने जीत दर्ज की। इसके बाद उनके बेटे अशोक इस सीट पर जीते। अशोक को एक बार फिर से बीजेपी ने चुनाव मैदान में उतारा है जबकि पाटलिपुत्र लोकसबा सीट पर साल 2009 में जदयू के रंजन यादव ने लालू यादव को हराया था। इसके बाद यहां 2014 और 2019 में बीजेपी के रामकृपाल यादव ने लालू यादव की बड़ी बेटी मीसा भारती को मात दी। मधेपुरा लोकसभा सीट पर साल 2009 में शरद यादव, साल 2014 में राजद के पप्पू यादव को जीत मिली थी। इसके बाद 2019 में यहां जदयू के दिनेश चंद्र यादव जीते।
इसी तरह नालंदा और काराकाट लोकसभा सीट पर कुर्मी समाज के लोगों का दबदबा रहा हैं। नालंदा में साल 2004 मेंबिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जीत दर्ज की थी। नीतीश कुमारके बाद यहां हर बार जदयू के कौशलेंद्र कुमार ने जीत हासिल की। वह फिर से चुनाव मैदान में हैं। इसी तरह काराकाट में 2009 से कुर्मी समाज के उम्मीदवार ने जीत दर्ज की। जदयू के महाबली सिंह साल 2009 और साल 2019 में यहा जीत दर्ज की। राष्ट्रीय लोक मोर्चा के उपेंद्र कुश्वाह यहां 2014 में जीते। कुश्वाहाचुनाव में यहां एनडीए के प्रत्याशी हैं। इसी तरह पश्चिमी चंपारण में ओबीसी में आनेवाले संजय जायसवाल, जबकि मुजफ्फरपुर से निषाद समाज के प्रत्याशी जीत दर्ज कराते आये हैं।
वंदना शर्मा की रिपोर्ट