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आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में आज दलित संगठनों का ‘भारत बंद’, राजद-कांग्रेस-बसपा सहित कई बड़े दल कर रहे समर्थन

आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में आज दलित संगठनों का ‘भारत बंद’, राजद-कांग्रेस-बसपा सहित कई बड़े दल कर रहे समर्थन

पटना: अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के विरोध में दलित संगठनों ने मोर्चा खोल दिया है. आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति ने आज यानी बुधवार को 'भारत बंद' का ऐलान किया है. दलित और आदिवासी संगठनों के राष्ट्रीय परिसंघ  ने अनुसूचित जाति , अनुसूचित जनजाति  और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए न्याय और समानता सहित मांगों की एक सूची जारी की है. एनएसीडीएओआर ने सुप्रीम कोर्ट की सात न्यायाधीशों वाली पीठ के हालिया फैसले पर विरोधात्मक रुख अपनाया है.

दलित एवं आदिवासी संगठनों के राष्ट्रीय परिसंघ के अनुसार यह फैसला इंदिरा साहनी मामले में नौ न्यायाधीशों वाली पीठ के पहले के फैसले को कमजोर करता है, जिसने भारत में आरक्षण के लिए रूपरेखा स्थापित की थी. दलित एवं आदिवासी संगठनों के राष्ट्रीय परिसंघ ने सरकार से इस फैसले को खारिज करने का आग्रह किया है.

अनुसूचित जाति और जनजातियों में सब कैटेगरी को लेकर सुनाए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में दलित संगठनों ने 21 अगस्त को भारत बंद का ऐलान किया है. देश के अलग-अलग हिस्सों में सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक बंद की योजना बनाई गई है और सभी दुकानें, स्कूल और कॉलेज बंद रखने के लिए कहा गया है. इस बंद का बहुजन समाज पार्टी की चीफ मायावती, कांग्रेस, आरजेडी, झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और लेफ्ट के कई संगठनों ने समर्थन किया है.

जेएमएम के महासचिव विनोद कुमार पांडेय ने एक बयान में कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आरक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया हालिया फैसला नुकसानदायक होगा. आरजेडी के प्रदेश महासचिव और मीडिया प्रभारी कैलाश यादव ने कहा कि पार्टी ने भारत बंद को अपना समर्थन देने का ऐलान किया है. कांग्रेस प्रवक्ता राकेश सिन्हा ने भी कहा कि कांग्रेस ने भी बंद का समर्थन किया है.

बता दें सुप्रीम कोर्ट ने एक अप्रैल को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली सात जजों की संविधान पीठ ने 6:1 के बहुमत से यह फैसला दिया है कि राज्य सरकारों को SC/ST के भीतर उप-वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है. ऐसा इसलिए ताकि इसमें उन जातियों को आरक्षण का लाभ दिया जा सके, जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से ज्यादा पिछड़ी हैं. 

कोटा के भीतर कोटा होने का अर्थ है कि आरक्षण के पहले से आवंटित प्रतिशत के भीतर ही अलग से एक आरक्षण व्‍यवस्‍था लागू कर देना, ताकि आरक्षण का लाभ उन जरूरतमंदों तक भी पहुंचे जो अक्‍सर इसमें उपेक्षित रह जाते हैं. 

सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश सरकार से जुड़े मामले में साल 2004 में जो फैसला दिया था वो इसका बिल्‍कुल उलट था. तब सर्वोच्‍च अदालत ने कहा था कि राज्य सरकारें नौकरी में आरक्षण के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जातियों की सब कैटेगरी नहीं बना सकतीं.सर्वोच्‍च अदालन ने 2004 के अपने पुराने फैसले को इस फैसले के साथ पलट दिया है. 

भारत बंद के दौरान अस्पताल और एम्बुलेंस जैसी आपातकालीन सेवाएं चालू रहेंगी. बैंक दफ्तर और सरकारी कार्यालय  बुधवार को खुले रहेंगे. 


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