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'अखिल भारतीय चोर महासभा' भी घोषणा पत्र निकाले तो उसे पढ़कर विश्वास हो जायेगा कि भारत का कल्याण चोरों को सत्ता सौप देने में ही है...

 'अखिल भारतीय चोर महासभा' भी घोषणा पत्र निकाले तो उसे पढ़कर विश्वास हो जायेगा कि भारत का कल्याण चोरों को सत्ता सौप देने में ही है...

पटना. टूटी चीजें हमेशा परेशान करती हैं जैसे दिल, नींद, भरोसा और किसी से उम्मीद. सियासत में अक्सर एस होता है जब राजनेताओं से उम्मीद टूटते हैं. ऐसे में राजनीतिक दलों की घोषणाओं पर व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई ने दशकों पहले बड़ी अनोखी बातें कही थी. परसाई कहते हैं ‘ये चुनाव घोषणा पत्र ऐसे बनते हैं कि अगर 'अखिल भारतीय चोर महासभा' भी घोषणा पत्र निकाले तो उसे पढ़कर विश्वास हो जायेगा कि भारत का कल्याण चोरों को सत्ता सौप देने में ही है। प्रसिद्ध लेखक और व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई ने जब ये बातें लिखी थी तब उनका व्यंग्य चुनावों में घोषणा पत्र और जमीनी हकीकत के बीच के अंतर को बताना था. 

मौजूदा दौर की राजनीति के बारे में तो यही कहा जाएगा कि ‘बहुत कुछ है कहने को पर ना जाने क्यूँ, अब कुछ ना कहूँ, वही बेहतर होगा’.  संयोग से वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में इन दिनों सियासी दल और राजनेता भी जमीन से जुड़े मुद्दों को छोड़कर घोषणा पत्र के सियासी संघर्ष में लगे हुए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस के घोषणा पत्र को पहले मुस्लिम लीग की छाप वाला घोषणा पत्र कहा था. उन्होंने फिर से कहा कि कांग्रेस के घोषणा पत्र में है कि लोगों की संपत्तियां सर्वे उपरांत छीनी जाएगी और अल्पसंख्यकों में बांटी जाएगी. 

पीएम मोदी के इस दावे के बाद से कांग्रेस हमलावर है. इसे पीएम मोदी का झूठ बता रही है. टीवी वाले अब डॉ मनमोहन सिंह और पीएम मोदी के बयानों के बीच के अंतर को बताने में लगे हैं. ऐसे में हम तो यही कहेंगे – ‘ मेरी खामोशी से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता, शिकायत के दो अल्फाज कह दू तो चुभ जाते हैं’. लेकिन घोषणा पत्रों में कही जाने वाली बातें और जमीनी हकीकत में कुछ वैसा ही अंतर होता है जैसा हरिशंकर परसाई ने दशकों पहले कहा था. यानी 'अखिल भारतीय चोर महासभा' भी घोषणा पत्र निकाले तो उसे पढ़कर विश्वास हो जायेगा कि भारत का कल्याण चोरों को सत्ता सौप देने में ही है. हालांकि भाजपा ने दावा किया है कि 2014, 2019 में भाजपा ने संकल्प पत्र जारी किया था. 2019 के संकल्प पत्र में 234 संकल्प लिए गये थे, जिसमे पहले 222 पूरे किए गए थे और 223 वां के तौर पर सीएए पूरा किया गया. 

बाकी किसानों के आमदनी दोगुनी करने से लेकर नौकरी और रोजगार सहित महंगाई जैसे कई मुद्दे पर जिन पर विपक्ष लगातार सत्ता पक्ष पर वादे पूरे नहीं होने का आरोप लगा रहा है. ऐसे में सियासतदानों के लिए तो यही कहा जाएगा कि ‘अधूरी ख्वाहिशों का कारवां हैं जिंदगी, मुकम्मल जहाँ तो कहानियों में होते हैं’. वहीं राजनेताओं के तीखे बयानों और सियासत के लिए रिश्तों को तार तार करने वालों को हम तो यही कहेंगे ‘ अपने किरदार से महकता है इंसान, चरित्र को पवित्र करने का इत्र नहीं आता.’ 

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