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जाति की छाती पर नाचती बिहारी राजनीति में जातीय गणना किस नेता के लिए बना गले का फांस और किसके लिए बन गया मल्टी विटामिन...पढ़िए सियासत के नए दौर की इनसाइड स्टोरी..

जाति की छाती पर नाचती बिहारी राजनीति में जातीय गणना किस नेता के लिए बना गले का फांस और किसके लिए बन गया मल्टी विटामिन...पढ़िए सियासत के नए दौर की इनसाइड स्टोरी..

गांधी जयंती के दिन बिहार सरकार ने जाति आधारित गणना का रिपोर्ट जारी कर दिया गया. वहीं, रिपोर्ट जारी होने के साथ ही सियासत भी तेज हो गई. एक तरफ बिहार सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है तो वहीं दूसरी ओर  बिहार में जातीय गणना के बाद अब बिरादरी की सियासत शुरू हो गई है. बिरादरी यानी जातीय समीकरण को दुरुस्त कर सियासत में पांव जमाने वाले दल या नेता एकाएक एक्टिव हो गए हैं. जातीय गणना में संख्या कम होने के आरोप लगाए जा रहे हैं तो कोई अपनी जाति को एक मंच पर लाने की कोशिश में है.

बिहार की सियासत में जाति आधारित समीकरण का गणित हमेसा से हावी रहा है. अब लोकसभा चुनाव होने वाला है तो स्वभाविक है कि इस मुद्दे की राजनीति पुताई भी होगी. दलित और महादलित की राजनीति करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास ) के प्रमुख चिराग पासवान जातीय गणना में हेराफेरी का आरोप लगा चुके हैं तो पटना साहिब के सांसद रविशंकर प्रसाद भी कायस्थों की संख्या की कमी पर अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं .जदयू के सांसद सुनील कुमार पिंटू तेली समाज की सही गिनती नहीं होने का आरोप सगाते हुए अपनी ही पार्टी और सरकार के विरुद्ध मुखर हो गए हैं. पिंटू ने तो यहां तक कह दिया कि वे सही आंकड़ा मुख्यमंत्री को मुहैया कराएंगे.

विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष हरि सहनी भी निषाद जातियों को उप जातियों के वर्गों में बांटकर गणना किए जाने पर नाराजगी जाहिर कर चुके हैं. तो भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ. भीम सिंह चंद्रवंशी दस वर्ष में अपनी जाति की संख्या दस लाख से अधिक घटने का लेकर प्रश्न खड़ा कर रहे. सामान्य प्रशासन विभाग के पूर्ववर्ती आंकड़ों के माध्यम से वे राज्य सरकार को घेर रहे हैं.

वहीं पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने कहा कि लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के इशारे पर तेली, तमोली, चौरसिया, दांगी सहित आधा दर्जन जातियों को अतिपिछड़ा सूची से बाहर करने की साजिश रची जा रही है. वैश्य , कुशवाहा समाज को बांटने और इनकी आबादी कम दिखाने की मंशा जातीय सर्वे में उजागर हो चुकी है. मुसलमानों में मल्लिक, शेखड़ा और कुल्हिया ऊंची जातियां हैं लेकिन, अतिपिछड़ा वर्ग में शामिल कर इन्हें आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है.

नीतीश कुमार कुर्मी जाति से हैं, जो राज्य में महज तीन प्रतिशत है. नीतीश कुमार ने इस छोटे हिस्से की भरपाई के लिए ईबीसी और महादलितों के लिए निर्वाचन क्षेत्र बनाने का काम किया है.अपने पहले कार्यकाल में ही नीतीश कुमार ने इस सोशल इंजीनियरिंग को हासिल कर लिया था, जिसकी मदद से उन्होंने अपनी राजनीतिक स्थिति को एक दशक से भी ज्यादा समय तक मजबूत बनाए रखा है.नीतीश कुमार का सामाजिक आधार एक बार फिर छिटकने का संकेत दे रहा है लेकिन जाति सर्वे के आंकड़ों का इस्तेमाल कर वे एक बार फिर अपने वोट बैंक को एकजुट करने में कामयाब हो सकते हैं.

आरजेडी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि राज्य में नीतीश कुमार का राजनीतिक महत्व कम हो रहा है. पांच से सात प्रतिशत वोटों पर ही उनका दबदबा है.भाजपा के संजय जायसवाल ने आरोप लगाया कि नीतीश और लालू ने इस जनगणना में एक गुनाह ज़रूर किया है कि कुल्हड़िया, शेरशाहबादी जैसी मुस्लिमों की ऊंची जातियों को भी इन्होंने पिछड़ों में लिया है और पिछड़ों के साथ हक़मारी की है. बिहार में जानबूझकर बहुत सारे अल्पसंख्यकों को इसमें शामिल कर लिया गया है जिससे कि अति पिछड़े हिन्दुओं की हक़मारी हो सके.हालांकि सियासी तौर पर अलग-अलग राजनीतिक दल जितनी आसान दावे करते दिखते हैं, ज़मीनी स्तर पर जातियों के आंकड़े मौजूदा राजनीतिक तस्वीर को चुनौती दे रहे हैं.इसमें संख्या के आधार पर जातिगत चेतना हर राजनीतिक दल पर सवाल खड़े करते नजर आ रहे हैं. ऐसे में राजनीतिक विशलेषकों के अनुसार जातीय सर्वे की रिपोर्ट नीतीश के लिए कहीं गले की फांस न बन जाए.

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