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BIHAR के इस शक्तिपीठ में भगवान बुद्ध की तलाश में आई थी अपने बेटे संग आई थी उनकी पत्नी यशोधरा, यहां सिर्फ महिलाओं को पुजारी बनाने की है परंपरा

BIHAR के इस शक्तिपीठ में भगवान बुद्ध की तलाश में आई थी अपने बेटे संग आई थी उनकी पत्नी यशोधरा, यहां सिर्फ महिलाओं को पुजारी बनाने की है परंपरा

BETIA : यूं तो दुनिया में रहस्य व अजूबों की कमी नहीं है। लेकिन कुछ ऐसी मान्यताएं व परंपराएं समाज में विकसित है जो तारीख बन जाती है। इसी में एक है प•चम्पारण के गौनाहा प्रखंड क्षेत्र स्थित सहोदरा (सुभद्रा) शक्तिपीठ। भारत नेपाल की सीमा पर गौनाहा प्रखंड के उत्तरी छोर पर अवस्थित है सुभद्रा स्थान। जो भारत सहित नेपाल के लाखों श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र है। जिसकी गिनती शक्तिपीठों में होती है। चैत्र व आश्विन नवरात्र के सप्तमी से नवमी तक यहा काफी होती है भीड ।

सहोदरा शक्तिपीठ का इतिहास सैंकड़ों वर्ष पुराना है। यहां के लोग इसे महाभारत काल से जोड़ते है। इस मंदिर का सबसे अजूबा इतिहास यह है कि मंदिर के आरंभ से लेकर आजतक इस मंदिर में पुजारी के रूप में सिर्फ महिलाएं ही नियुक्त हुई है। साथ ही यहां विराजमान माता सुभद्रा को प्रतिदिन स्नान कराकर नयी साड़ी पहनाने व खोइछा भरने की परंपरा काफी पुरानी है। यहां के लोग माता को बेटी मानकर प्रतिदिन नया वस्त्र व खोइछा प्रदान करते है। वर्तमान में शंभू गुरो की पत्नी आशा देवी इस मंदिर की प्रधान पुजारी है।

रहस्यमयी है माता का इतिहास

वैसे तो शक्तिपीठ सुभद्रा के संबंध में यहां कई कथाएं प्रचलित है। लेकिन जो माता प्रतिमा की प्रमाणिकता सिद्ध करता है, उसके अनुसार प्राचीन काल में दिव्य आभूषण से सुसज्जित एक ग्वालन स्त्री अपने नवजात शिशु के साथ दही बेचकर जंगल के रास्ते वापस जा रही थी। शाम का अंधेरा गहराने लगा था। इतने में कुछ बदमाश उन्हें घेर लिए। स्त्री की आबरू से खिलवाड़ करने के लिए उन्हें निर्वस्त्र करना शुरू कर दिया।

स्त्री रक्षा के लिए भगवान को पुकारने लगी। इतने में एक दिव्य तेज प्रकाशित हुआ और गोद में बच्चे के साथ स्त्री प्रतिमा बन गई। वहां एक नीम का पेड़ उत्पन्न हो गया। सभी बदमाश मौत को प्राप्त हुए। दूसरी कहानी अनुसार हिमालय में जाते समय पाडुओं से सुभद्रा इसी जंगल में बिछड़ गई थी और कुछ बदमाशों ने उन्हें घेर लिया। जिस कारण उन्हें सती हो जाना पड़ा। 

इसका वर्णन बिहार लोक कथाएंज् के लेखक डा. सीआर प्रसाद ने अपनी पुस्तक में भी किया है। यहां के लोग भी इसे सत्य कथा बताते है। वैसे प्रतिमा के एक हाथ में कमल व दूसरे हाथ में कलश मौजूद है। गोद में एक नवजात बच्चा भी है।इसके अलावे भी  माता से जुड़ी यहां कई कथाएं प्रचलित है।मान्यताएं भले ही भिन्न भिन्न हो लेकिन हकीकत यह है कि माता सुभद्रा बड़ी ही दयालु व जगता मानी जाती है। सच्चे मन से जो पूजा अर्चना करता है उसकी सभी मनोकामा पूर्ण होती है। 

भगवान बुद्ध की तलाश में आई थी अपने बेटे संग आई थी उनकी पत्नी

मंदिर के पुजारी के पती शंभू गूरो ने बताया माता से जुड़ी बातें बताई । उन्होने बताया कि जब भगवान बुद्ध ने घर त्याग किया तो उनकी पत्नी यशोधरा अपने छोटे पुत्र राहुल के साथ उन्हें खोजते हुए यहां तक आई। जहां यहां के बदमाश बंजारों की नजर उनपर पड़ी और उन्होंने उनका सतीत्व भंग करना चाहा। जिससे यशोधरा ने मौत की देवी का आह्वान कर अपने सतीत्व की रक्षा की। वहीं यशोधरा कालांतर में सहोदरा बन गई। मंदिर के प्रधान पुजारी शंभू गुरु एवं पुजारी देवंती देवी ने बताया कि यह शक्तिपीठ है। मां के दरबार से कोई खाली नहीं लौटता। पवित्र मन से कोई मन्नत मांगे तो उसकी मन्नत पूरी होती है।

प्रशासन की अनदेखी

मंदिर समिति के सदस्यों द्वारा मंदिर की देख रेख की जाती हैं।समिति के उप कोषाध्यक्ष ने बताया कि पूजा के समय सरकार द्वारा मेले का डाक तो किया जाता हैं लेकिन माता दर्शन को पहुँचे श्रद्धालुओं के लिए सरकार या जिला प्रशासन के द्वारा कोई व्यवस्था नहीं की जाती हैं न ही पानी की व्यवस्था एवं न ही शौचालय की व्यवस्था प्रशासन द्वारा हो पाती हैं जिससे की मंदिर परिसर के आसपास गंदगी फैल जाती हैं एवं वातावरण दूषित होता हैं। 

REPORTED BY ASHISH GUPTA

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