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कुमार अर्णज : विगत 50 वर्षों से केवल और केवल शिक्षकों के पूर्णकालिक कार्यकर्ता हैं केदार पांडेय

कुमार अर्णज : विगत 50 वर्षों से केवल और केवल शिक्षकों के पूर्णकालिक कार्यकर्ता हैं केदार पांडेय

हमारे बीएसटीए के आदरणीय अध्यक्ष महोदय केदार पांडेय के संघर्ष गाथा सुनकर सभी शिक्षक साथी इस निष्कर्ष पर पहुंचे गये होंगे कि कैसे वे 8 जुलाई 1965 में प्रबंध समिति वाले  अराजकीय विद्यालय उच्च विद्यालय कैलगढ़ में योगदान के तुरंत बाद से शिक्षक संगठन से जुड़कर शिक्षक हितों की संघर्ष यात्रा में निकल पड़े। 

उन्होंने कई तरह की परेशानियां झेले,कई बार गिरफ़्तारी हुई और जेल गए। बहुत ही ऐतिहासिक घटना है कि 1972 में 10000 आंदोलनरत शिक्षक  लंबी अवधि तक जेल में रहे। आदरणीय अध्यक्ष श्री पांडे जी अपने बड़े पुत्र को गंभीर बीमारी की अवस्था में छोड़कर शिक्षक हित सर्वोपरि मानकर जेल गए।15 वर्षों तक आर्थिक कठिनाई के साथ-साथ नौकरी के स्थायित्व की असुरक्षा से चिंतित रहते हुए संगठन पर भरोसा कर के संघर्ष में शामिल रहे। 

उस दौर के शिक्षक कभी भीअपने नेतृत्व के ऊपर अविश्वास नहीं किए। परिणाम स्वरूप शिक्षकों की एकजुटता के बदौलत 02-10-1980 को सरकार ने इनके विद्यालय के साथ-साथ बिहार के सभी और राजकीय विद्यालयों का सरकारीकरण करने को बाध्य हुई। सरकारीकरण के बाद भी चतुर्थ और पंचम वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुरूप वेतन हेतु आंदोलन में इन्होंने ना केवल भाग लिया बल्कि नेतृत्व वर्ग में भी शामिल रहे। 

बिहार के शिक्षकों के लिए भी केंद्रीय वेतनमान और सेवा शर्त लागू कराने के लिए हुए बड़े आंदोलन का नेतृत्व मंडली में शामिल रहे और सफलता दिलाई। लेकिन तब बिहार विधान परिषद् में सभी के सभी शिक्षक विधान पार्षद माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रतिनिधि ही थे जो संघ के प्रवक्ता के रूप में सदन में कार्य करते थे। जिससे सड़क और सदन दोनों जगहों पर शिक्षकों के लिए बहुत मजबूती के साथ संघर्ष चल रहा था। 

90 के दशक के बाद बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के सदस्य बिहार विधान परिषद में 1-2 रह गए। विगत 10-15 वर्षों से बिहार विधान परिषद् में बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के एकमात्र सदस्य श्री पांडे जी ही बच गए। जिससे माध्यमिक शिक्षक संघ के मांगो का समर्थन उनके साथ पुरजोर ढंग से विधान परिषद में नहीं हो पा रहा है।  

आज की तारीख में बिहार विधान परिषद में कोई भी सदस्य बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ का प्रतिनिधि नहीं है। 2006 में नियोजन नियमावली का भी सबसे तार्किक रूप से विरोध विधान परिषद में श्री पांडे जी के द्वारा ही किया गया था। बहुमत की सरकार के द्वारा 2006 में नियोजन नियमावली बनाने हेतु अधिनियम में परिवर्तन कर दिया गया। तब से सड़क और सदन में नियोजन प्रणाली की समाप्ति ,समान काम -समान वेतन एवं  सेवा शर्त लागू करने के लिए संघर्ष श्री पांडे जी और श्री शत्रुघ्न प्रसाद सिंह जी के  नेतृत्व में शुरू हुआ। श्री पांडे जी के नाम से ही पटना उच्च न्यायालय में समान काम समान वेतन संबंधी मुकदमा सबसे पहले दायर हुआ और उसमें सफलता भी मिली। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय में कई संगठनों के विरोधाभासी तर्कों के कारण एस एल पी में असफल हो गए।

नियोजित शिक्षकों के नियुक्ति, वेतनमान , अप्रशिक्षित शिक्षकों को वैतनिक अवकाश, सेवा दशाओं में सुधार श्री पांडे जी के नेतृत्व में संघ के अनवरत संघर्ष का परिणाम है।  श्री पांडे जी का अनुभव और परिपक्व नेतृत्व कीजरूरत  वर्तमान परिवेश में अधिक है। इनके साथ साथ सभी शिक्षक निर्वाचन क्षेत्रों से बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के योग्य प्रतिनिधियों को बिहार विधान परिषद में   भेजना नियोजित शिक्षकों के हित में होगा। सरकार की कुटिल चालों को मात देने के लिए संघ का नेतृत्व और विधान परिषद् में   श्री पांडे जी का बने सदस्य बने रहना समय की मांग है। जब वे बिहार विधान परिषद् में शिक्षकों के सवालों पर मजबूत तर्कों के साथ सरकार को घेरते हैं तब सरकार तिलमिला जाती है, जवाब नहीं जुड़ता है और भागने का रास्ता नहीं मिलता है। 

मेरे जैसे हजारों शिक्षकों को यह पूर्ण भरोसा है कि इनके नेतृत्व में हम सभी नियोजित शिक्षकों की समस्याओं का निदान शीघ्र होगा क्योंकि यह विगत 50 वर्षों से केवल और केवल शिक्षकों के पूर्णकालिक कार्यकर्ता  हैं, उनकी समस्याओं और सवालों के निदान के लिए दिन -रात जूझते हैं और सफल भी होते हैं। हमें गर्व है अपने नेतृत्व और संगठन पर।           

जय शिक्षक एकता ! जय शिक्षक संघ !!    

धन्यवाद।                                                                    

 कुमार अर्णज

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