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खेला होबे! क्या है नीतीश की चुप्पी का राज? कहीं सीएम फिर एनडीए में जाने की फिराक में तो नहीं? पढ़िए इनसाइड स्टोरी

खेला होबे!  क्या है नीतीश की चुप्पी का राज? कहीं सीएम फिर एनडीए में जाने की फिराक में तो नहीं? पढ़िए इनसाइड स्टोरी

PATNA- बिहार के सीएम नीतीश कुमार अपनी पलटी मार राजनीति का एक बार फिर परिचय दे दें तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए. विपक्ष के 28 दलों को लेकर बने इंडी अलायंस में जिस तरह नीतीश की उपेक्षा होती रही है और ऐसी उपेक्षाओं पर जैसी उनकी पलटी मारने की आदत रही है, उसे देखते हुए राजनीतिक विश्लेषक अनुमान लगा रहे हैं कि जेडीयू कार्यकारिणी की 29 दिसंबर को दिल्ली में होने वाली बैठक के बाद नीतीश अपना अगला कदम बढ़ा सकते हैं. इंडिया गठबंधन की चौथी बैठक में 19 दिसंबर को दिल्ली में तीन हफ्ते के अंदर सीट बंटवारा की बात हुई लेकिन उसके बाद सीट बंटवारे की चर्चा से ज्यादा बहस बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू नेता नीतीश कुमार की हो रही है. अटकल का बाजार गर्म है. नीतीश कुमार ने सार्वजनिक रूप से 16 दिनों से मीडिया से बात नहीं की है. नीतीश पहले कार्यक्रमों के बाद पत्रकारों के बीच से गुजरते थे. अपने मन की बात कहते थे और कुछ सवालों के जवाब देते थे. लेकिन 6 दिसंबर को नीतीश आखिरी बार पत्रकारों के बीच पहुंचे. तब इंडिया गठबंधन की मीटिंग में उनके जाने पर अटकलबाजी चल रही थी. उस पर नीतीश सामने आए और कहा कि वो कैसे नहीं जाएंगे, बिल्कुल जाएंगे. उन्होंने तब भी दोहराया कि वो प्रधानमंत्री पद की रेस में नहीं हैं.

नीतीश कुमार चुप हैं तो बाकी सब बोल रहे हैं. कोई अनुमान लगा रहा है. कोई आरोप लगा रहा है. राजनीतिक पंडितों का मानना है कि नीतीश की चुप्पी में गहरा राज होता है.बीजेपी के एक नेता कहते हैं कि ये नीतीश की राजनीति का स्टाइल है. मौन भी उनका हथियार है. जब वो मौन हो जाते हैं तो अपने टार्गेट को और ज्यादा जोर-शोर से मैसेज दे रहे होते हैं.नीतीश कुमार को राहुल गांधी ने फोन कर मनाने की कोशिश जरूर की है, लेकिन ये भी तय है कि नीतीश के दिल से दिल्ली बैठक की टीस खत्म नहीं होने वाली, क्योंकि ये उनके लिए बड़े झटके जैसा रहा. 


सुशील मोदी कह रहे हैं कि 29 दिसंबर को जेडीयू राष्ट्रीय कार्यकारिणी और राष्ट्रीय परिषद की बैठक एक ही दिन बुलाने का मतलब है कि कुछ बड़ा फैसला होने वाला है. मोदी ने कहा कि जब भी ऐसा हुआ है जेडीयू का अध्यक्ष बदल जाता है. उन्होंने आशंका जताई है कि आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव से नजदीकी के कारण ललन सिंह को हटाया जा सकता है. राजनीतिक विद्वानों के अनुसार जेडीयू में यह आम धारणा बन गई है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह की आरजेडी से नजदीकी बढ़ गई है. जेडीयू अध्यक्ष होने के बावजूद ललन सिंह के मन में आरजेडी के प्रति सॉफ्ट कार्नर है. नीतीश के सामने बड़ा संकट यह है कि ललन सिंह को अगर उन्होंने दरकिनार किया तो कमान किसे सौंपेंगे. विजय चौधरी, अशोक चौधरी और संजय झा से नीतीश की नजदीकियां इशारा करती हैं कि इनमें से किसी एक को पार्टी की कमान वे सौंप सकते हैं. एक कयास तो .यह भी लगाया जा रहा है कि पूर्व की भांति नीतीश पार्टी की कमान आधिकारिक तौर पर अपने ही पास रखें. 


उधर नीतीश कुमार की चुप्पी से दिल्ली में कांग्रेस और पटना में आरजेडी के पसीने छूट रहे हैं. नीतीश कुमार अगर अपनी चुप्पी 29 दिसंबर तक खींच गए तो यह तय है कि उस दिन समाचार चैनलों पर कांग्रेस, आरजेडी और इंडिया गठबंधन की पार्टियों के साथ-साथ बीजेपी के भी सारे बड़े नेता नजर गड़ाकर बैठे रहेंगे. बिहार के सियासी जानकारों के अनुसार नीतीश जी के दाएं कान ने क्या सुना, ये बाएं कान को पता नहीं चलता है और वो दाईं आंख से क्या देख रहे हैं वो बाईं आंख को पता नहीं चलता है. जेडीयू में कोई नेता ये समझने लगता है कि वो नीतीश जी के मन-मिजाज को समझ गया है तो उसे गलती का अहसास होने में देर नहीं लगती.

नीतीश कुमार विपक्षी एकता के सूत्रधार रहे हैं. इंडी अलायंस बनने के बाद से ही उन्हें दरकिनार किया जाता रहा है. विपक्षी इंडी गठबंधन  की अब तक चार बैठकें हुई हैं, लेकिन न नीतीश की बात सुनी जाती है और न उनकी सलाह मानी जाती है.इंडी गठबंधन में शामिल आरजेडी और जेडीयू का प्रदेश नेतृत्व नीतीश की नाराजगी से इनकार करता रहा है. नीतीश की नाराजगी की तीन प्रमुख वजहें बताई जाती हैं. इंडी गठबंधन की दिल्ली में हुई चौथी बैठक के लिए लालू यादव और तेजस्वी यादव एक साथ निकले तो नीतीश कुमार अकेले गए. पहले तीनों साथ आते-जाते रहे हैं. वहीं बैठक समाप्ति पर नीतीश, लालू और तेजस्वी यादव बिना मीडिया ब्रीफिंग में हिस्सा लिए निकल गए. बैठक समाप्ति के 36 घंटे बाद भी नीतीश या लालू की ओर से बैठक के बारे में कोई  बयान नहीं आया है.नीतीश ने अपनी ओर से नाराजगी की बात कभी नहीं कही है, आरजेडी नीतीश से कम सीटें लोकसभा चुनाव में नहीं चाहता तो जेडीयू को अपने सिटिंग सांसदों से कम सीटें नहीं चाहिए. आरजेडी टिकट बंटवारे में विधायकों की संख्या को आधार बनाना चाहता है, जबकि जेडीयू सिटिंग सांसदों को.

बहरहाल नीतीश कुमार को जब भी किसी का साथ छोड़ना होता है तो वे बहाने तलाश लेते है.लेकिन उनकी चुप्पी से नाराजगी का संकेत तो मिल ही रहा है. अब निगाह 29 दिसम्बर की बैठक पर है.

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