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11 मई 1998,दिन के 3.45 का वक्त…और मुस्कुरा उठे बुद्ध, जब परमाणु शक्ति बना था भारत, दुनिया रह गई थी हैरान, अमेरिका को चकमा देकर हुआ था परीक्षण, ऐसे बीता पोकरण का दिन

11 मई 1998,दिन के 3.45 का वक्त…और मुस्कुरा उठे बुद्ध, जब परमाणु शक्ति बना था भारत, दुनिया रह गई थी हैरान, अमेरिका को चकमा देकर हुआ था परीक्षण, ऐसे बीता पोकरण का दिन

दिल्ली - दो साल बाद फिर से अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री के दफ्तर में लौटे और इसके दो महीने बाद ही जबरदस्त थमाका हुआ. धमाका ऐसा कि पूरी दुनिया की आंखें फटी रह गईं. दोबारा प्रधानमंत्री बनते ही अटल बिहारी बाजपेयी ने डीआरडीओ प्रमुख डॉ एपीजे अब्दुल कलाम और परमाणु ऊर्जा के प्रमुख राजगोपाल चिदंबरम को परमाणु परीक्षण की मंजूरी दे दी. इस परीक्षण का नेतृत्व एयरोस्पेस इंजीनियर और दिवंगत राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने किया था.संसद में विश्वास मत प्राप्त करने के तुरंत बाद ही अटल बिहारी वाजपेयी ने डॉक्टर अब्दुल कलाम और डॉक्टर राजागोपाला चिदंबरम को बुलाकर परमाणु परीक्षण की तैयारी करने के निर्देश दे दिए थे.डॉक्टर कलाम ने सलाह दी कि विस्फोट बुद्ध पूर्णिमा के दिन किया जाए जो 11 मई, 1998 को पड़ रही थी. भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर  के शीर्ष वैज्ञानिकों को 20 अप्रैल, 1998 तक भारत के परमाणु विस्फोट करने के फ़ैसले के बारे में बता दिया गया था. उन लोगों ने छोटे-छोटे समूह में पोखरण की तरफ़ जाना शुरू कर दिया था.मिशन को गुप्त रखने के लिए हर वैज्ञानिक नाम बदलकर यात्रा कर रहा था और सीधे पोखरण जाने के बजाए काफ़ी घूमकर वहाँ पहुँच रहा था. कुल मिलाकर  भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर  और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान  की टीम में कुल 100 वैज्ञानिक थे.

पोखरण परमाणु परीक्षण के मिशन का नाम 'ऑपरेशन शक्ति' था. इस मिशन में अहम भूमिका निभाने वालों में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के अलावा तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम थे, वह उस समय रक्षा मंत्रालय में सलाहकार वैज्ञानिक के पद पर थे.

परमाणु बमों का कोडनेम था-'कैंटीन स्टोर्स'. बम विस्फोटों को हरी झंडी मिलने के बाद सबसे बड़ी समस्या थी कि किस तरह मुंबई के भूमिगत वॉल्ट में रखे इन बमों को पोखरण तक पहुँचाया जाए. इन वॉल्ट्स को 80 के दशक में बनाया गया था और उन्हें हर साल विश्वकर्मा पूजा के दिन ही खोला जाता था.लेकिन उनके अंदर पैकिंग इस ढंग से की गई थी कि पोखरण ले जाने के दौरान विस्फोटकों को कोई नुक़सान न पहुंचे.भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर  के वैज्ञानिकों का सबसे बड़ा सिरदर्द था इन गोलों को अपने ही सुरक्षाकर्मियों को बिना बताए वहाँ से हटवाना. सुरक्षाकर्मियों को बताया गया कि कुछ ख़ास उपकरणों को दक्षिण में दूसरे परमाणु संयंत्र में ले जाना है. इसके लिए रात में विशेष गेट से ट्रकों का एक काफ़िला आएगा. एक मई की सुबह तड़के चार ट्रक चुपचाप भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर संयंत्र पहुँच गए. हर ट्रक पर पाँच सशस्त्र सैनिक सवार थे.ट्रकों पर आर्मर्ड प्लेट लगी हुई थी ताकि उस पर किसी तरह का बम हमला न किया जा सके. दो काले क्रेटों को दूसरे उपकरणों के साथ तुरंत एक ट्रक पर लाद दिया गया. एयरपोर्ट पर बिना उद्देश्य बताए पहले से ही सारे ज़रूरी क्लीयरेंस ले लिए गए थे. ट्रकों को सीधे हवाई पट्टी पर ले जाया गया जहाँ एक एएन 32 ट्रांसपोर्ट विमान उनका इंतज़ार कर रहा था. हवाई जहाज़ के अंदर सिर्फ़ चार सुरक्षाकर्मियों को रखा गया था. बाहरी दुनिया को ये आभास दिया जा रहा था कि ये सेना का एक रुटीन मूवमेंट है.किसी को इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि उस विमान में जो कुछ रखा था वो पूरे मुंबई शहर को मिनटों में तबाह कर सकता था. सुबह तड़के एएन32 विमान ने मुंबई हवाई अड्डे से टेक ऑफ़ किया. दो घंटे बाद उसने जैसलमेर हवाई अड्डे पर लैंड किया. वहाँ पर ट्रकों का एक और काफ़िला उनका इंतज़ार कर रहा था. हर ट्रक पर हथियारों समेत सैनिक बैठे हुए थे. जब वो ट्रकों से उतरे तो उन्होंने अपने हथियार तौलियों से छिपा लिए. पोखरण के लिए जैसलमेर हवाईअड्डे से जब ट्रक निकले तो सुबह हो चुकी थी.पोखरण में ये ट्रक सीधे 'प्रेयर हॉल' में पहुंचे जहाँ इन बमों को असेंबल किया गया. जब प्लूटोनियम गेंदे वहाँ पहुंच गईं तो भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष राजागोपाला चिदंबरम की जान में जान आई. वो उनका बहुत बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे.

बिजली रहने पर भी उसमें बहुत उतार-चढ़ाव हो रहा था जिससे उपकरणों के जल जाने का ख़तरा लगातार बना हुआ था.आख़िर में तय किया गया कि जेनेरेटर को जिसका कोडनेम 'फ़ार्म हाउस' था उस जगह शिफ़्ट किया जाए जहाँ काम चल रहा था.पोखरण का मौसम भी वैज्ञानिकों के सामने परेशानी खड़ी कर रहा था. एक रात कड़कती बिजली के साथ भयानक तूफ़ान आया. सारे वैज्ञानिक कुछ ही समय पहले 'प्रेयर हॉल' से लौटे थे जहाँ वो परमाणु डिवाइस को असेंबेल कर रहे थे. वैज्ञानिक एसके सिक्का और उनकी टीम के लोगों को चिंता थी कि अगर प्रेयर हॉल पर बिजली गिर गई तो उससे न सिर्फ़ डिवाइस को नुक़सान पहुंच सकता था बल्कि उनके समय से पहले फट जाने का ख़तरा भी था. एक रात इतनी ज़ोर से आँधी आई कि कुछ भी दिखना बंद हो गया.प्रेयर हॉल में दुर्घटनावश आग लगने की आशंका से बचने के लिए एयरकंडीशनिंग की अनुमति नहीं दी गई थी और वैज्ञानिकों को बहुत मुश्किल परिस्थितियों में काम करना पड़ रहा था. गर्मी का आलम ये था कि वैज्ञानिक हमेशा पसीने से तर-ब-तर रहते थे. सिक्का जैसे वरिष्ठ वैज्ञानिक भी स्क्रू कस रहे थे और तार ठीक कर रहे थे.

 पोखरण में वैज्ञानिकों की टीम केवल रात में ही काम कर रही थी ताकि ऊपर से गुज़रने वाले उपग्रह उन्हें देख न सकें. उन दिनों की तारों भरी रातें उनकी यादों का हिस्सा बन गई थीं.एक रात वैज्ञानिक कौशिक को रात में एक उपग्रह दिखाई दिया. तीन घंटे के अंदर उन्होंने चार उपग्रहों को वहाँ से गुज़रते हुए गिना. उन्होंने डीआरडीओ टीम के सदस्य कर्नल बीबी शर्मा से कहा, सर, लगता है उन्हें शक़ हो गया है कि हम कुछ कर रहे हैं, वर्ना एक रात में इतने सारे उपग्रहों के गुज़रने का क्या मतलब है? शर्मा ने कहा, हमें और सावधानी बरतनी चाहिए. हम कोई जोख़िम उठाना गवारा नहीं कर सकते.वर्ष 1998 में भी सीआईए ने पोखरण के ऊपर चार उपग्रह लगा रखे थे, लेकिन परीक्षण से कुछ समय पहले सिर्फ़ एक उपग्रह पोखरण की निगरानी कर रहा था और वो भी सुबह 8 बजे से 11 बजे के बीच उस क्षेत्र के ऊपर से गुज़रता था.परीक्षण से एक रात पहले उपग्रह से प्राप्त चित्रों की समीक्षा के लिए सिर्फ़ एक अमेरिकी विश्लेषक की ड्यूटी लगाई गई थी. उसे पोखरण से खींची गई कुछ तस्वीरों को अगले दिन अपने अधिकारियों को दिखाने के लिए चुना भी था, लेकिन जब तक अधिकारी उन तस्वीरों का मुआयना करते तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

सन् 1995 में जब नरसिम्हा राव ने परमाणु विस्फोट करने का फ़ैसला लिया था तो अमेरिकी उपग्रहों को ताज़ा बिछाए गए तारों से भारत के इरादों के बारे में पता चल गया था.उस समय अमेरिकी उपग्रहों की नज़र शाफ़्ट को बंद करने के लिए बहुत बड़ी मात्रा में बालू के इस्तेमाल पर भी गई थी. वहाँ पर बड़ी संख्या में वाहनों के मूवमेंट ने भी अमेरिकियों को सतर्क कर दिया था.

अब वो दिन आ गया जिसका इंतजार था.परीक्षण से करीब एक घंटे पहले उस रेंज का मौसम विभाग का एक अधिकारी, जिसका नाम अदि मर्जबान था, बंकर में दाखिल हुआ और वो वहां बैठे दो जर्नल्स को सैल्यूट किए बिना ही पास रखी प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठ गया. उसने बताया कि अचानक से इस समय हवा की रफ्तार तेज हो गई है. जब तक हवा नहीं रुके तब तक हमें परीक्षण रोकना होगा. परीक्षण को कुछ देर के लिए रोका गया और सभी की नजरों उड़ रहीं रेतों पर जम गईं. हवा थमी और करीब 3:45 बजे ट्रिगर दबा और फिर हुआ जबरदस्त विस्फोट. ऐसा ताकतवर विस्फोट कि पोखरण की रेतली जमीन कांप उठी, रेत के बवंडर ने सबकुछ ओझल कर दिया और 11 मई 1998 को बुद्ध एक बार फिर से मुस्कुरा उठे. 

परीक्षण वाले दिन एपीजे अब्दुल कलाम ने प्रधानमंत्री निवास पर ब्रजेश मिश्रा को फ़ोन कर बताया कि हवा की रफ़्तार धीमी पड़ रही है और अगले एक घंटे में परीक्षण किया जा सकता है. कंट्रोल रूम में प्लास्टिक स्टूल पर बैठे पोखरण में विस्फोट से जुड़े वैज्ञानिक बेसब्री से मौसम की रिपोर्ट का इंतज़ार कर रहे थे.उधर पोखरण में मौसम विभाग की रिपोर्ट आ गई थी कि सब कुछ ठीक है. ठीक 3 बज कर 45 मिनट पर मॉनीटर पर लाल रोशनी आई और एक सेकेंड के अंदर तीनों मॉनीटरों पर चौंधियाने वाली रोशनी दिखाई दी.अचानक सभी तस्वीरें फ़्रीज़ हो गईं, जो बता रहा था कि शाफ़्ट के अंदर लगाए गए कैमरे विस्फोट से नष्ट हो गए हैं. धरती के अंदर का तापमान लाखों डिग्री सेंटिग्रेड तक पहुंच गया.विस्फोट ने हॉकी के मैदान के बराबर बालू को हवा में उठा दिया. नीचे वैज्ञानिकों ने महसूस किया कि उनके पैर के नीचे धरती बुरी तरह से हिल रही है. वहाँ और देश भर में मौजूद दर्जनों सीस्मोग्राफ़्स की सुइयाँ बुरी तरह से हिलीं. वैज्ञानिक अपने बंकरों से निकलकर बाहर की तरफ़ दौड़े ताकि वो रेत की दीवार को उठने और गिरने के न भुलाये जाने वाले दृश्य अपनी आँखों से देख सकें.सुरक्षित दूरी से ये दृश्य देख रहे सैकड़ों सैनिकों ने रेत का ग़ुबार उठते ही नारा लगाया 'भारत माता की जय. वहीं चिदंबरम ने बहुत ज़ोर से कलाम से हाथ मिलाते हुए कहा, "मैंने आपसे कहा था हम 24 साल बाद भी ये काम दोबारा अंजाम दे सकते हैं.

कलाम के मुँह से निकला, "हमने दुनिया की परमाणु शक्तियों का प्रभुत्व समाप्त कर दिया है. अब एक अरब लोगों के हमारे देश को कोई नहीं कह सकता कि उसे क्या करना है. अब हम तय करेंगे कि हमें क्या करना है. 11 मई 1998 को, राजस्थान में भारतीय सेना के पोखरण परीक्षण रेंज में पांच परमाणु परीक्षणों में से पहले, ऑपरेशन शक्ति मिसाइल को सफलतापूर्वक फायर किया गया था. पोखरण परमाणु परीक्षण भारतीय सेना के पोखरण टेस्ट रेंज में भारत द्वारा किए गए पांच परमाणु बम परीक्षण विस्फोटों की एक श्रृंखला थी.पोखरण में तब तीन बमों का सफल परीक्षण किया गया था. इसके बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत को एक परमाणु देश घोषित किया तथा इसके साथ ही भारत संयुक्त राष्ट्र संघ के ‘परमाणु क्लब’ में शामिल होने वाला छठा देश बना था.दो दिन बाद पोखरण की भूमि एक बार फिर हिली और भारत ने दो और परमाणु परीक्षण किए. एक दिन बाद वाजपेई ने घोषणा की, "भारत अब परमाणु हथियार संपन्न देश है."

इधर दिल्ली में अचानक प्रधानमंत्री वाजपेयी ने वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा को अपने यहाँ बुलवा भेजा.यशवंत सिंहा के अनुसार वाजपेयी मुझसे अपने कार्यालय में नहीं मिले. मुझे उनके शयनकक्ष में ले जाया गया. मुझे तुरंत अंदाज़ा हो गया कि वो मुझे बहुत महत्वपूर्ण और गोपनीय बात बताने जा रहे हैं. जैसे ही मैं बैठा उन्होंने मुझे भारत के परमाणु परीक्षण की तैयारियों के बारे में बताया. वाजपेयी ने कहा कि हो सकता है कि दुनिया की ताक़तें इसके लिए भारत के ख़िलाफ़ कुछ आर्थिक प्रतिबंध लगाएँ इसलिए हमें हर चुनौती का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए, इसीलिए मैंने सोचा कि आपको पहले से इस बारे में ख़बरदार कर दूँ, ताकि जब ऐसा हो तो आप इसके लिए पहले से तैयार रहें.

11 मई, 1998 का वो ऐतिहासिक दिन ...दिल्ली में प्रधानमंत्री आवास में ब्रजेश मिश्रा बहुत नर्वस दिखाई दे रहे थे. वाजपेयी के सचिव शक्ति सिन्हा वाजपेयी के पास कुछ ज़रूरी फ़ाइलें लेकर आए थे.प्रधानमंत्री निवास में फ़ोन के बग़ल में बैठे ब्रजेश मिश्रा ने पहली घंटी पर फ़ोन उठाया.उन्होंने रिसीवर पर कलाम की काँपती हुआ आवाज़ सुनी, 'सर, वी हैव डन इट.' मिश्रा फ़ोन पर ही चिल्लाए, 'गॉड ब्लेस यू.बाद में वतौर पीएम अटल बिहारी  वाजपेयी ने कहा, "उस क्षण का वर्णन कर पाना मुश्किल है, लेकिन हमें अत्यंत ख़ुशी और पूर्णता का एहसास हुआ.बाद में अटल बिहारी वाजपेई के सचिव रहे शक्ति सिन्हा के अनुसार वाजपेयी मंत्रिमंडल के चार मंत्री लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फ़र्नांडिस, यशवंत सिन्हा और जसवंत सिंह वाजपेयी के निवास में डायनिंग टेबिल के चारों ओर बैठे हुए थे. सोफ़े पर बैठे हुए प्रधानमंत्री वाजपेयी गहरी सोच में डूबे हुए थे. कोई किसी से कुछ नहीं बोल रहा था."सिन्हा का कहना था कि वहाँ मौजूद लोगों के चेहरे पर ख़ुशी साफ़ पढ़ी जा सकती थी. लेकिन न तो कोई उछला और न ही किसी से किसी को गले लगाया , ना हीं पीठ थपथपाई. लेकिन उस कमरे में मौजूद लगभर हर शख़्स की आँखों में आँसू थे.बहुत देर बाद वाजपेयी के चेहरे पर मुस्कान दिखाई दी थी. तनाव से मुक्त होने के बाद उन्होंने एक ज़ोर का ठहाका भी लगाया था.उसके बाद वाजपेयी अपने घर से बाहर निकले थे जहाँ लॉन में सभी प्रमुख संचार माध्यमों के संवाददाता मौजूद थे. बतौर प्रधानमंत्री वाजपेयी ने घोषणा की, "आज 3 बज कर 45 मिनट पर भारत ने तीन भूमिगत परमाणु परीक्षण किए हैं. मैं इन सफलतापूर्वक परीक्षण करने वाले वैज्ञानिकों और इंजीनयरों को बधाई देता हूँ.


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