DESK: कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों के बीच ही अब फंगल इंफेक्शन का खतरा सामने आ गया है। दरअसल कोरोना के इलाज में स्टेरॉइड और एंटीबायोटिक दवाओं का हाईडोज कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले मरीजों को ब्लैक फंगस (म्यूकर मायकोसिस) संक्रमण दे रहा है। इसके मामले फिलहाल मध्य प्रदेश के भोपाल में मिले हैं। बीते 10 दिन में शहर के अस्पतालों में ब्लैक फंगस के 50 मरीज मिले हैं। इनमें से एक मरीज की आंख और दूसरे के जबड़े की सर्जरी करना पड़ी है। इंदौर में भी ब्लैक फंगस के 11 मरीज मिले हैं, जिनमें से दो लोगों की आंखों की सर्जरी की जाएगी।
एम्स भोपाल के डेंटिस्ट्री डिपार्टमेंट के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अंशुल राय ने बताया कि ब्लैक फंगस का संक्रमण राइजोफस और म्यूकर नाम की फंगस के शरीर में पहुंचने के कारण होता है। यह नाक और मुंह के रास्ते सूक्ष्म कणों के रूप में शरीर में पहुंचता है। संक्रमण की शुरुआत सायनस से होती है, जो समय रहते इलाज नहीं मिलने पर दिमाग तक को संक्रमित कर देता है। उन्होनें बताया कि बीते 10 दिन में कोविड पॉजिटिव और काेविड रिकवर 7 मरीजों में ब्लैक फंगस का संक्रमण मिला है। इनमें से एक मरीज के जबड़े की सर्जरी करना पड़ी।
ब्लैक फंगस की पहचान के लक्षण
- चेहरे के एक हिस्से में सूजन और आंखाें का बंद हाेना।
- नाक बंद हाेना।
- नाक के नजदीक सूजन
- मसूड़ाें में सूजन, पस पड़ना
- दांताें का ढीला हाे जाना।
- तालू की हड्डी का काला हाे जाना।
- आंखें लाल हाेना। उनकी राेशनी कम हाेना। मूवमेंट रुकना।
डॉ. अंशुल राय ने बताया कि ब्लैक फंगल से पीड़ित मरीज की जान बचाने के लिए संक्रमित हिस्से को निकालना ही बीमारी का एकमात्र इलाज है। ब्लैक फंगल से संक्रमित हिस्से को नहीं निकालने पर वह रक्तवाहिकाओं का खून नहीं पहुंचने देता। संक्रमण बढ़ता रहता है। मरीज की मौत तक हो सकती है।