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पंडित यदुनंदन शर्मा की जयंती आज : स्वतंत्रता संग्राम में निभाई अहम् भूमिका, राजनीतिक एवं सामाजिक उदासीनता का शिकार बना आशियाना

पंडित यदुनंदन शर्मा की जयंती आज : स्वतंत्रता संग्राम में निभाई अहम् भूमिका, राजनीतिक एवं सामाजिक उदासीनता का शिकार बना आशियाना

GAYA : स्वतंत्रता आंदोलन और जमींदारी उन्मूलन अभियान का केंद्र बिंदु रहे बेलागंज के नेयामतपुर आश्रम आज राजनीतिक एवं सामाजिक उपेक्षा का शिकार अपने तारणहार का बाट जोह रहा है। बता दें की वर्ष 1896 के बसंत पंचमी के दिन गया (वर्तमान अरवल) जिला के मंझियामा गांव के एक गरीब शाक द्वीपीय ब्राम्हण परिवार में सुखल पंडित का जन्म हुआ था। वहीं सुखल पंडित आगे चलकर पंडित यदुनंदन शर्मा के नाम से मशहूर हुए और किसानों के लिए मसीहा बनकर उभरे। 

बात उस समय की है जब मंझियामा गांव गया जिला अंतर्गत हुआ करता था। उसी गांव में पंडित रामदेव शर्मा नाम के एक बेहद हीं गरीब शाक द्वीपीय ब्राम्हण हुआ करते थे। जिनका इकलौता पुत्र के रूप में सुखल पंडित का जन्म वर्ष 1896 ई में बसंत पंचमी के दिन हुआ। अपने जीवन के चौदह वर्ष तक सुखल पंडित निरक्षर थे। गांव में बच्चों के साथ मावेसी चराने जाना हीं उनका एकमात्र दिनचर्या था। सुखल पंडित के पिता गरीब पर विद्वान थे। एक दिन गांव के लोगों ने सुखल पंडित को ताना दिया कि विद्वान बाप के भैसचरबा बेटा पैदा हुआ है। ग्रामीणों का यह बात सुखल पंडित के जीवनमार्ग बदलने में सहायक साबित हुआ। जिसके बाद से उन्होंने पढ़ाई शुरू की और 1919 ई में राज स्कूल टिकारी से मैट्रिक का परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास किया। उन्हीं दिनों लंदन यात्रा से टिकारी महाराज कैप्टन गोपाल शरण सिंह विद्यालय के स्थापना दिवस समारोह में शामिल होने आए हैं। उस कार्यक्रम में पंडित यदुनंदन शर्मा ने किसानों के दुर्दशा पर अंग्रेजी में स्वलिखित कविता सुनाई। जिस पर प्रसन्न होकर महाराजा कैप्टन गोपाल शरण सिंह ने पंडित शर्मा के विद्यालय का फीस माफ करने का आदेश सुनाया। जिस पर छात्र पंडित यदुनंदन शर्मा ने कहा कि विद्यालय में हम से भी गरीब और असहाय छात्र हैं। जिन्हे फीस जमा करना मुश्किल होता है। पंडित यदुनंदन शर्मा के इस उदारता को देखते हुए टिकारी महाराज ने विद्यालय के सभी छात्रों का फीस माफ कर दिया। इसके उपरांत उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए शर्मा जी बीएचयू गए और पंडित मदन मोहन मालवीय से गुहार लगाई एवं स्नातक की डिग्री हासिल की। उसी दौरान देश में चल रहे नमक सत्याग्रह आंदोलन में शामिल हो गए। जहां उनकी मुलाकात स्वामी सहजानंद सरस्वती से हुई। स्वामी जी देश के प्रति उनके समर्पण से खासा प्रभावित हुए और उन्हें बिहार के मगध क्षेत्र के नेतृत्व का जिम्मा सौंप दिया। स्वामी सहजानंद सरस्वती के निर्देश पर हीं शर्मा जी ने बेलागंज के नेयामतपुर गांव में नेयामतपुर आश्रम का निर्माण और स्थापना कराई। जो स्वतंत्रता संग्राम के साथ जमींदारी उन्मूलन अभियान का बिहार में मगध क्षेत्र के केंद्र बना। इसी नेयामतपुर आश्रम से अंग्रेजी हुकूमत को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से नजदीकी चाकंद रेलवे स्टेशन को जलाने का रणनीति तैयार कर घटना का अंजाम दिया गया था। 

सन 1936 में नेयामतपुर आश्रम से सटे सहबाजपुर गांव में रेवड़ा किसान आंदोलन का शुरुआत पंडित यदुनंदन शर्मा के नेतृत्व में किया गया था। जहां सहबाजपूर एवं आसपास के गांव की महिलाओं के उग्र प्रदर्शन के आगे टिकारी राज के सिपाहियों को भागना पड़ा था। इस आंदोलन को सफल बनाने के लिए बेलागंज के अगंधा, भलुआ 2, के अलावे टिकारी के संडा, गया शहर के आजाद पार्क, नवादा वरसलीगंज के रेवड़ा में किसानों के बड़ी बड़ी सभाओं को संबोधित किया था। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पंडित यदुनंदन को कुल मिलाकर 36 महीने तक जेल में बिताना पड़ा था। 

स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पंडित यदुनंदन शर्मा का अंग्रेजों में इतना खौफ हो गया था की उन्हें जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए इनाम घोषित किया गया था। उन्हें पकड़ने में उद्देश्य से नेयामतपुर आश्रम पर अंग्रेजी हुकूमत द्वारा अंधाधुंध गोलियां बरसाई गई थी। आश्रम में पकड़े गए कई स्वतंत्रता सेनानियों को लाठी चार्ज कर बेरहमी से पीटा गया था। जिसमें कई स्वतंत्रता सेनानी शहीद हो गए थे। स्वामी सहजानंद सरस्वती के अलावे पंडित यदुनंदन शर्मा को डॉ राजेंद्र प्रसाद, पंडित जवाहरलाल नेहरू, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया जैसे महापुरुषों से काफी गहरा संबंध रहा था। शर्मा जी 1940 के दशक में गया जिला कांग्रेस कमेटी के जिलाध्यक्ष भी रहे थे। 

स्वतंत्र भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पंडित यदुनंदन शर्मा को बिहार के राज्यपाल के पद पर आसीन होने का न्योता दिया था। मगर पंडित शर्मा ने इंदिरा गांधी के इस आग्रह को सहर्ष ठुकरा दिया था। जमींदारी उन्मूलन अभियान में मुख्य और सराहनीय भूमिका निभाने के कारण बिहार के विभिन्न क्षेत्रों में किसानों के बीच मसीहा के रूप में जाने जाते थे। लोगों के बीच एक गीत गाया जाता था " लिहले यदुनंदन अवतार हो, हरले दुख किसान के " मगर इतने बड़े शख्सियत के द्वारा निर्मित और स्वतंत्रता आंदोलन और जमींदारी उन्मूलन अभियान का केंद्र बिंदु रहे बेलागंज के नेयामतपुर आश्रम आज राजनीतिक एवं सामाजिक उपेक्षा का शिकार अपने तारणहार का बाट जोह रहा है।

गया से प्रभात कुमार मिश्रा की रिपोर्ट

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