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पवन सिंह ने पीएम मोदी को दी सीधी चुनौती? NDA का वोट काटने के लिए काराकाट से ठोकी ताल! आखिर किसके इशारे पर चुनावी मैदान में ठोकी ताल जबकि मिल चुका था टिकट

पवन सिंह ने पीएम मोदी को दी सीधी चुनौती? NDA का वोट काटने के लिए काराकाट से ठोकी ताल! आखिर किसके इशारे पर चुनावी मैदान में ठोकी ताल जबकि मिल चुका था टिकट

पटना. लोकसभा चुनाव में भाजपा जैसे राजनीतिक दल का टिकट मिलने के बाद उसे ठुकराने और अब निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर काराकाट से ताल ठोंककर पवन सिंह ने सबको चौंका दिया है. भोजपुरी गायक के रूप में लोकप्रियता हासिल करने वाले पवन सिंह का चुनाव में निर्दलीय उतरना एक तरह से सीधे पीएम मोदी को चुनौती देने की तरह है. भाजपा ने पहले पश्चिम बंगाल के आसनसोल से पवन सिंह को उम्मीदवार बनाया था. लेकिन नाम की घोषणा के बाद पवन ने चुनाव लड़ने से इनकार दिया. अब वे काराकाट में अपने लिए बड़े समर्थन का दावा कर रहे हैं. हालांकि पवन सिंह के दावों की जमीन काफी पथरीली दिखती है. 

दरअसल, काराकाट में वर्ष 2009 से लगातार एनडीए ने अपना परचम फहरा रखा है. वर्ष 2009 और 2017 में महाबली सिंह ने लोकसभा का चुनाव जीता. वहीं 2014 में उपेंद्र कुशवाहा ने बड़ी जीत हासिल की. इस बार भी उपेंद्र कुशवाहा एनडीए उम्मीदवार हैं. एनडीए के मजबूत गढ़ में किसी का निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर सेंधमारी करना बेहद मुश्किल है. यह पिछले चुनावों के आंकड़े ही बयां करते हैं. यहां तक कि जिस जातीय समीकरण या भोजपुरी गायकी की लोकप्रियता के सहारे पवन सिंह मैदान में उतरे हैं वह आम तौर पर मतदान में परिवर्तित करना इतना सरल नहीं है. 

जातियों का बड़ा खेल : काराकाट में कुल 6 विधानसभा क्षेत्र आते हैं. रोहतास जिले का नोखा, डेहरी और काराकाट विधानसभा क्षेत्र तथा औरंगाबाद जिले का गोह, ओबरा और नवीनगर विधानसभा क्षेत्र भी काराकाट में हैं. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक यहां दो से ढाई लाख राजपूत वोटर हैं. पवन सिंह इसी राजपूत जाति से आते हैं. वहीं एक से डेढ़ लाख ब्राह्मण और करीब 75 हजार भूमिहार वोटर हैं. कोइरी-कुर्मी वोटर भी करीब ढाई लाख माने जाते हैं. काराकाट लोकसभा क्षेत्र में यादव मतदाता डेढ़ से दो लाख हैं. इसके अलावा पिछड़ी, अतिपिछड़ी और अनुसूचित जातियों के वोटर करीब दो लाख माने जाते हैं. चुनावों की एक सच्चाई है कि वोट जाति और पार्टी के कैडर वोटरों में बंटा रहता है. इस लिहाज से पवन सिंह को यहां इन दोनों चुनौतियों को झेलना है. 

एनडीए का कटेगा वोट : दरअसल, जिस राजपूत, ब्राह्मण, भूमिहार और कोयरी-कुर्मी मतदाताओं की यहां भरमार है उनका वोट पिछले चुनावों में लालू विरोध में पड़ता आया था. इन वर्गों के वोटरों को प्रमुखता से एनडीए का कोर वोटर माना जाता है. ऐसे में पवन सिंह के पक्ष में मुख्य रूप से इन्हीं वर्गों के वोटरों का बड़ा रुझान हो सकता है. अगर ऐसा हुआ तो यह एक तरह से पवन सिंह का एनडीए के लिए वोट काटने वाली स्थिति बन जाएगी. 

राजाराम साधेंगे समीकरण : राजनीतिक जानकारों का मानना है कि पवन सिंह के चुनाव में उतरने से मुख्य रूप से यह एनडीए के वोटों को काटने से ज्यादा कुछ नहीं हो सकता है. इसके पीछे बड़ा कारण जातीय समीकरण माना जाता है. यादवों सहित पिछड़ी, अतिपिछड़ी और अनुसूचित जातियों के वोटरों पर महागठबंधन उम्मीदवार राजाराम सिंह की नजर बनी हुई है. पिछले चुनावों में भी इन वर्गों में एक बड़े वर्ग का समर्थन एनडीए के प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार को मिला था. इस बार भी राजाराम सिंह इन पर नजर बनाए हैं. साथ ही उनका कुशवाहा बिरदारी से आना इस जाति के वोटों को भी गोलबंद करने की दिशा में पहल हो सकती है. 

पवन की मुश्किल राह : इन स्थितियों में पवन सिंह के लिए अपने बलबूते चुनाव में बड़ा करिश्मा करना एक चुनौती है. वहीं उनके पक्ष में जो वोट आएगा उसमें सवर्णों के एक बड़े वर्ग का वोट आ सकता है इसमें खासकर राजपूतों का वोट आता है तो यह एनडीए के परम्परागत वोटों में सेंधमारी होगी. वहीं भाजपा का टिकट ठुकराने के कारण बीजेपी भी पवन सिंह को सबक सिखाने की तैयारी में है. वहीं सूत्रों का यह भी कहना है कि पवन सिंह किसी भोजपुरी भाषी सीट से भाजपा से चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन उन्हें आसनसोल भेज दिय गया. कहा जा रहा है कि इससे पवन सिंह नाराज हुए. अब वे सम्भवतः किसी खास के इशारे पर एनडीए के खिलाफ वोट काटने की रणनीति से मैदान में उतरे हों. 

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