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राहुल का पहला हीं दांव पड़ा उल्टा, अध्यक्ष के चुनाव में उल्टे पांव लौटे, हार को करना पड़ा स्वीकार, चले थे खेल करने लेकिन उनके हीं साथ हो गया गेम, विपक्ष हाथ मलता रह गया, पढ़िए इनसाइड स्टोरी

राहुल का पहला हीं दांव पड़ा उल्टा, अध्यक्ष के चुनाव में  उल्टे पांव लौटे, हार को करना पड़ा स्वीकार, चले थे खेल करने लेकिन उनके हीं साथ हो गया गेम, विपक्ष हाथ मलता रह गया, पढ़िए इनसाइड स्टोरी

दिल्ली- भारतीय लोकतांत्रिक इतिहार में  लोकसभा में स्पीकर पद के लिए चुनाव होते इस देश ने इससे पहले सिर्फ दो बार देखा है. साल 1952 और 1976 में. तीसरी बार अब जंग छिड़ी. डिप्टी स्पीकर पद पाने की कांग्रेस की शर्त और संसद में बीजेपी के गुनागणित के बीच स्पीकर चुनाव को लेकर आम सहमति बनने की संभावना खत्म हुई तो चुनाव तक बात पहुंच गई. इससे पहले साल  1998 में तत्कालीन कांग्रेस नेता शरद पवार ने पी ए संगमा को अध्यक्ष चुनने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया था, जिसे अस्वीकार कर दिया गया था. पवार के प्रस्ताव के अस्वीकार किए जाने बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने तेलुगू देशम पार्टी के सदस्य जी एम सी बालयोगी को लोकसभा अध्यक्ष के रूप में चुनने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया. वाजपेई द्वारा रखा गया प्रस्ताव स्वीकृत हो गया.

बहरहाल इस चुनाव में एक तरफ एनडीए के ओम बिरला थे तो  दूसरी ओर इंडी गठबंधन की ओर से कांग्रेस के  के. सुरेश मैदान में उतरे. लड़ाई में किसकी होर होती किसकी जीत ..ये सबको पता था फिर भी जंग छिड़ी. अंत में ओम बिड़ला ध्वनि मत से अद्यक्ष चुन लिए गए, क्योंकि विपक्षने वोटिंग की मांग हीं नहीं की. 

राहुल सत्ता पक्ष को धमक दिखाना चाहते थे, नीतीश पर डोरे डालने की खबरें भी मीडिया की सुर्खियां बनी, लेकिन सत्ता पक्ष भी झुकने को तैयार नहीं था. वह विपक्ष के आगे झुकने को तैयार नहीं दिखा. सदन में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ने प्रस्ताव रखा . जब मतदान की मांग विपक्ष करनाी थी तो वह पीछे हट गया और ध्वनि मत से ओम बिड़ला को अध्यक्ष चुन लिया गया.

पांच दशकों में पहली बार लोकसभा स्पीकर का चुनाव हुआ है. ओम बिरला स्पीकर चुन लिये गए हैं. इसके लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष आमने-सामने आ गए. एनडीए उम्मीदवार ओम बिरला की जीत पक्की मानी जा रही थी लेकिन विपक्ष भी के. सुरेश को उतारकर बड़ा सियासी संदेश  दे दिया है. वो मैसेज ये है कि पिछले 10 साल की तरह इस बार सरकार की राह आसान नहीं होगी. इस जंग में जीत-हार कोई मायने नहीं रखता, मायने रखता है अपने सारे पत्तों को एक बार चेक कर लेने का. .

कांग्रेस नेता बलिराम भगत को पांच जनवरी, 1976 को लोकसभा अध्यक्ष चुना गया था. इंदिरा गांधी ने भगत को लोकसभा अध्यक्ष के रूप में चुनने के लिए प्रस्ताव पेश किया था, जबकि कांग्रेस (ओ) के प्रसन्नभाई मेहता ने जनसंघ नेता जगन्नाथराव जोशी को चुनने के लिए प्रस्ताव पेश किया था. भगत को जोशी के 58 के मुकाबले 344 वोट मिले.

आजादी के बाद से, केवल एम ए अय्यंगार, जी एस ढिल्लों, बलराम जाखड़ और जी एम सी बालयोगी ने अगली लोकसभाओं में इस प्रतिष्ठित पद को बरकरार रखा है. जाखड़ सातवीं और आठवीं लोकसभा के अध्यक्ष थे और उन्हें दो पूर्ण कार्यकाल पूरा करने वाले एकमात्र पीठासीन अधिकारी होने का गौरव प्राप्त है.

बालयोगी को उस 12वीं लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में चुना गया, जिसका कार्यकाल 19 महीने का था. उन्हें 13वीं लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में भी चुना गया था, हालांकि बाद में उनकी एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मौत हो गई.


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