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लापरवाह डॉक्टरों को राहत- नए कानून में डॉक्टरों के लिए हल्की सजा का प्रावधान

लापरवाह डॉक्टरों को राहत- नए कानून में डॉक्टरों के लिए हल्की सजा का प्रावधान

DELHI- संसद के शीतकालीन सत्र में अभूतपूर्व हंगामे और निलंबन के बीच कई महत्वपूर्ण विधेयक पारित हुए हैं, जो आजाद भारत में न्यायिक सुधारों की दृष्टि से मील के पत्थर कहे जा सकते हैं.  आईपीसी, सीआरपीसी और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता तथा भारतीय साक्ष्य कानून ने ली है. अब शीतकालीन सत्र के अंतिम दिन तीन विधेयकों को राज्यसभा की मंजूरी मिलने के बाद ये विधेयक राष्ट्रपति की मोहर लगने पर कानून का रूप ले लेंगे.विधेयक में डॉक्टरों के लिये हल्की सजा के प्रावधान को लेकर चर्चाएं जरूर हैं.  कहा जा रहा है कि जीवन से खिलवाड़ के प्रश्न पर हल्की सजा का प्रावधान क्यों? जबकि पहले ही कानून उन्हें संरक्षण देता है. संसद द्वारा हाल ही में पारित भारतीय न्याय संहिता में जो बदलाव किया गया है वह डॉक्टरों के लिये तो निश्चय की राहतकारी है, लेकिन यदि वास्तव में जानलेवा लापरवाही होती है तो क्या मरीज को न्याय मिल सकेगा? 

भारतीय संसद ने इस हफ्ते नए भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) को पारित कर दिया, जो पुराने भारतीय दंड संहित (आईपीसी) का स्थान लेगा। इस बिल में एक बदलाव है जो डॉक्टरों के लिए राहत की बात हो सकती है, लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि यह जरूरी नहीं था.बीएनएस की धारा 106 में लापरवाही से हुई मौत के लिए अधिकतम 5 साल की जेल और जुर्माना का प्रावधान है. हालांकि, इलाज में लापरवाही के मामले में इस सजा को कम करके अधिकतम दो साल की जेल और जुर्माना कर दिया गया है.कुछ लोग इस फैसले की तार्किकता पर सवाल उठाते हैं। दरअसल, भारतीय न्याय संहिता की धारा 106 में किसी लापरवाही से होने वाली मौत के लिये जुर्माने के अलावा पांच साल की सजा का प्रावधान है। मगर इलाज में लापरवाही के प्रकरण में चिकित्सकों को राहत देते हुए इस सजा को घटाकर अधिकतम दो साल व जुर्माना कर दिया गया है। सरकार की दलील है कि लोगों के इलाज करने वाले चिकित्सकों को अनावश्यक दबाव से बचाने के लिये भारतीय मेडिकल एसोसिएशन के आग्रह पर यह कदम उठाया गया है. लेकिन वहीं जानकार मानते हैं कि मरीजों के जीवन रक्षा के अधिकार का भी सम्मान होना चाहिए.

 मेडिकल प्रक्रियाओं में विशेषज्ञता के कारण डॉक्टरों को मुकदमे दर्ज होने से भी बचाया गया है. उदाहरण के लिए, बिना किसी योग्य डॉक्टर की राय के कोई निजी शिकायत दर्ज नहीं की जा सकती. अगर शिकायत दर्ज हो भी जाती है तो जांच अधिकारी को भी अलग से चिकित्सकीय राय लेनी पड़ती है. डॉक्टरों की गिरफ्तारी अपवाद है, नियम नहीं. मौजूदा कानून और कोर्ट के फैसले पहले से ही डॉक्टरों को लापरवाही के आरोपों से काफी सुरक्षा देते हैं. लापरवाही का मामला बनाना मुश्किल है और सफलतापूर्वक मुकदमा चलाना और भी मुश्कि.। ऐसे में एक दुर्लभ मामले में जहां डॉक्टर को लापरवाही का दोषी पाया जाता है, वहां उनके लिए सजा कम करने की आईएमए की मांग का कोई मजबूत आधार नहीं दिखता है.  जब चिकित्सा क्षेत्र में पांच सितारा चिकित्सा संस्कृति का वर्चस्व बढ़ रहा है और धनाढ्य वर्ग का चिकित्सा व्यवसाय में दखल बढ़ता जा रहा है तो आम व साधनविहीन वर्ग के हितों की अनदेखी तो नहीं की जा सकती.

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