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लग गया है दूल्हों का मेला, रिश्ता चाहिए तो सौराठ पहुंचिए

लग गया है दूल्हों का मेला, रिश्ता चाहिए तो सौराठ पहुंचिए


मधुबनी: बिहार प्राचीन काल से ही विविधताओं से भरा राज्य हैं. यहाँ कई ऐसी अनोखी प्रथा है जिसे सुन यकीन नहीं कर पाएंगे. एक ऐसा ही प्रथा के बारे में आपको यहाँ बताने जा रहे हैं. आपने पशुओं के मेला का नाम तो सुना होगा पर मैं आपको यहाँ 'दूल्हों का मेला' के बारे में बताउंगी. बिहार के मधुबनी में 'सौराठ सभा' लगता है. जिसका मतलब होता है 'दूल्हों का मेला'. हालांकि स्थानिए लोग इसे 'मेला' कहने पर नाराज होते हैं और कहते हैं कि यह मेला नहीं है बल्कि एक स्थान हैं जहाँ लोग एकजुट होते हैं. यह मेला प्राचीन काल से लगता आया है और आज भी यह परंपरा कायम है. पर आधुनकीक युग में इस सभा का भी चमक ख़त्म होते जा रहा है. 

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'सौराठ सभा' मधुबनी के सौराठ नमक जगह पर 22 बीघे में लगती है. इसे 'सभागाछी' के नाम से भी जाना जाता है. इस अनोखे मेले में वर, वधु की तलाश में इकट्ठे होते हैं. यह मेला हर साल ज्येष्ठ या आषाढ़ के महीने में एक सप्ताह या 11 दिनों के लिए लगती है. सौराठ में बरगद के पेड़ के निचे यह सभा लगती है. जहाँ वर पक्ष अपने परिजनों के साथ इकट्ठे होते हैं. कन्या पक्ष वाले यहाँ आते हैं और लड़के को पसंद करते हैं. लड़का पसंद आने पर उसके खानदान और घरवालों के बारे में पता किया जाता है और यदि सब सही पाया गया तो 'चट मंगनी पट ब्याह' कर दिया जाता है.  

इस सभा के बारे में स्थानिए लोगों का कहना है कि दो दशक पहले इस सभा में काफी भीड़ होती थी. पर अभी के समय में बस परंपरा का निर्वाह किया जा रहा है. आधुनिक युग के लड़के अब यहां आना पसंद नहीं करते हैं. ऐसा करने को वह अपना अपमान समझते हैं. अब बस इस सभा को परंपरा के नाम पर ढोया  जा रहा है. 

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'सौराठ सभा' की शुरुआत मैथिल ब्राह्मणों ने 700 साल पहले करीब सन् 1310 में की थी. इस सभा के शुरुआत के पीछे कई कारण थें. आवागमन में सुविधा न होने कारण वर-वधु के परिवारवालों ने एक जगह मिलने का सोचा था. मेले में सिद्धांत लिखवाने का भी काम होता है. यह सिद्धांत क़ानूनी रूप से किसी भी शादी को स्वीकृति प्रदान करता है और इसे अदालतों में मान्यता प्राप्त है. ताकि शादी के बाद किसी भी प्रकार का व्यवधान पैदा न हो. प्राप्त जानकारी के अनुसार 1971 में सौराठ में डेढ़ लाख के करीब दूल्हे आए थे, जिनकी संख्या 1991 में घट के पचास हजार के करीब पहुँच गई. अभी के समय में दूल्हों की संख्या न के बराबर है. सौराठ में आने वाले दूल्हों में अब गरीब परिवार से तालुकात रखते हैं. बड़े और आमिर घर के लड़के अब 'सौराठ सभा' में नहीं जाते हैं. इसके साथ ही पहले सौराठ सभा में वर पक्ष दहेज़ नहीं मांगते थें पर अब यहां आने वाले वर पक्ष भी दहेज़ की भी मांग करने लगे हैं. कुल मिलकर अब यह सभा अपने अंतिम अवस्था में दिखाई पड़ रही है.  

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