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24 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के सामने कांग्रेस का सरेंडर, तेवर देख इस बड़े कांग्रेसी नेता ने कर दी बड़ी भविष्यवाणी.पार्टी में सन्नाटा

24 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के सामने कांग्रेस का सरेंडर, तेवर देख इस बड़े कांग्रेसी नेता ने कर दी बड़ी भविष्यवाणी.पार्टी में सन्नाटा

पटना-   "अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा." भारतीय जनता पार्टी के पहले अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी ने 6 अप्रैल 1980 में यानी 43 साल पहले, पार्टी की स्थापना के समय ये बात कही थी.शायद उन्होंने यह बात पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए कही होगी लेकिन उस समय पार्टी कार्यकर्ताओं या फिर विपक्षी दलों में शायद ही किसी ने सोचा होगा कि आने वाले दिनों में वाजपेयी की बातें सही साबित होगीं.आज 43 साल बाद पार्टी केंद्र के अलावा 17  राज्यों में सत्ता में है और पार्टी के नेता कहते हैं कि अभी इसका विस्तार होना बाक़ी है. पिछले नौ साल में नरेंद्र मोदी- अमित शाह की जोड़ी ने भारतीय जनता पार्टी को शिखर पर पहुँचा दिया है तो इसके पीछे नेतृत्व की मजबूत इच्छाशक्ति के साथ सशक्त रणनीति भी थी. चुनाव एक युद्ध है, ये केवल एक चुनावी जुमला नहीं है. इस युद्ध के दो सबसे बड़े योद्धा नरेंद्र मोदी और अमित शाह इस पर अमल भी करते हैं. 

मई 2014 के लोकसभा चुनाव में जब पीएम मोदी सत्ता में आए थे तब कांग्रेस शासित राज्यों की संख्या नौ थी. आज कांग्रेस की कर्नाटक, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश में सरकार है. तो तमिलनाडु, बिहार और झारखंड में सत्ता मेंकांग्रेस  भागीदार है. आखिर कांग्रेस की दुर्गति का कारण क्या है. देश की सबसे पुरानी पार्टी का हश्र ऐसा हुआ तो क्यों हुआ. वहीं पांच राज्यों के चुनाव परिणाम ने कांग्रेस की विश्वसनीयता और नेतृत्व पर फिर से सवाल खड़ा कर दिया है. अब सवाल बाहर से नहीं बल्कि पार्टी के अंदर से ही उठाए जाने लगे हैं.  कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदम्बरम ने स्पष्ट राय रखी है. इससे पहले वीएन गाडगिल ने भी कांग्रेस को जरुरी सलाह दिए थे, लेकिन पार्टी ने उस पर गौर नहीं किया था.

पी चिदंबरम का खुले तौर पर यह स्वीकार करना कि 2024 की चुनावी हवा भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में है, मामूली बात नहीं है। चिदंबरम की यह स्वीकारोक्ति इस बात का प्रतीक है कि कांग्रेस के जिम्मेदार नेता अपनी कमियों को कम से कम खुले तौर पर स्वीकार करने लगे हैं. ऐसे में उसके समर्थकों की ओर से यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या पार्टी अपनी असल कमियों की ओर ध्यान देगी और अपनी खोई हुई राजनीतिक प्रतिष्ठा हासिल करने की गंभीरता से कोशिश करेगी? भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में नरेंद्र मोदी के उभार और उसके बुनियादी आधार को कांग्रेसी नेतृत्व ने कभी स्वीकार नहीं किया. आज का दलीय तंत्र जिस तरह विकसित हुआ है, उसमें नेतृत्व की बात को जमीनी स्तर तक के कार्यकर्ता के लिए आंख मूंदकर भरोसा करना राजनीतिक मजबूरी है. कई बार जमीनी स्तर के कार्यकर्ता और मंझला-निचला नेतृत्व तक आलाकमान की सोच से सहमत नहीं भी होता तो दलीय अनुशासन के नाम पर उसे आलाकमान की गलत और आसमानी सोच को ही स्वीकार करना पड़ता है. ऐसे में कभी जमीनी राजनीतिक हकीकत का तथ्य कम से कम खुले तौर पर सामने आ ही नहीं पाता. इन्हीं संदर्भों में चिंदबरम की स्वीकारोक्ति गंभीर और महत्वपूर्ण हो जाती है.चिदंबरम ने यह भी स्वीकार किया है कि विपक्ष समेत कांग्रेस को बीजेपी की ताकत को समझना होगा. उसको उसी की भाषा में मुद्दों की बुनियाद पर आक्रामक जवाब देना होगा. भाजपा की ही तरह रणनीतिक तौर पर चुनावी मैदान में उतरना होगा. पूरी तैयारी करनी होगी. चिदंबरम की इस स्वीकारोक्ति का एक मतलब यह भी है कि कांग्रेस को अब यह मानकर चलने वाली सोच से आगे बढ़ना होगा कि सांप्रदायिकता के खिलाफ देश की जनता उठ खड़ी होगी और उसे जिता देगी. कांग्रेस को यह भी मानना होगा कि नरेंद्र मोदी की भाजपा अतीत की भाजपा से कहीं आगे निकल गई है.

वहीं अमित शाह और नरेंद्र मोदी ने ये बता दिया कि अगर आप चुनाव से छह महीने पहले अपने एसी कमरों से निकलेंगे, लोगों के पास जाएंगे तो आप चुनाव नहीं जीत पाएँगे. अगर आप चुनाव जीतना चाहते हैं तो आपको लगातार काम करते रहना पड़ेगा." कद्दावर नेता अमित शाह से पूछा गया कि उत्तर प्रदेश में देश की सबसे बड़ी पार्टी ने इतनी बड़ी मुसलमान आबादी के बावजूद राज्य में किसी मुसलमान को चुनाव लड़ने के लिए टिकट क्यों नहीं दिया, तो इसके जवाब में उन्होंने कहा, "चुनाव में उम्मीदवार के जीतने की संभावना को देखना ज़रूरी होता है." अयोध्या में मंदिर निर्माण, तीन तलाक पर रोक, हज सब्सिडी का खात्मा और कश्मीर में 370 की समाप्ति से लेकर मथुरा-काशी के नारे, ये सब कई ऐसे मामले हैं जिनका सीधा असर मुसलमानों पर पड़ता है, और इस असर को नकारात्मक मानने वाले मुसलमान और ग़ैर-मुसलमान दोनों हैं, लेकिन इन फ़ैसलों और नीतियों को देश का एक बड़ा तबका 'मु्स्लिम तुष्टीकरण के ख़िलाफ़ उठाए गए क़दम' के तौर पर देखता है और पार्टी को समर्थन देता है.

बीजेपी ने पिछले दसेक वर्षों में पार्टी संगठन को निचले स्तर से लेकर शीर्ष तक लगातार मज़बूत किया है, सत्ता में आने के बाद से देश के हर ज़िले में पार्टी के शानदार दफ्तर बने हैं और पार्टी से जुड़ने वाले लोगों की तादाद लगातार बढ़ती रही है.  बीजेपी के विकास में कांग्रेस पार्टी का भी हाथ है. वो कहते हैं, "भारतीय जनता पार्टी की सफलता के पीछे कांग्रेस का बहुत कमज़ोर होना एक बड़ी वजह है. और दूसरा कारण ये है कि राष्ट्रीय स्तर पर कोई और विकल्प नहीं है."इंडी गठबंदन के सहारे लोकसभा चुनाव2024 की वैतरणी कांग्रेस पार करना चाहती है, वहीं विशेषज्ञों के अनुसार मोदी बीजेपी को बिलकुल अलग दिशा में ले जा रहे हैं. उन्होंने हिंदुत्व के नाम पर बीजेपी को केवल एक हिन्दू पार्टी बना दिया है. वो अल्पसंख्यक पर प्तरहार तो नहीं करते लेकिन लोकतंत्र में बहुसंख्यक की शक्ति को वे जानते हैं.

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