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सियासत के सबसे बड़े जादूगर के खेल में फंस गया पूरा विपक्ष, चुनाव -दर-चुनाव दुश्मनों को राजनीति के दंगल में चित्त करने का नुस्खा क्या सिर्फ नरेंद्र मोदी- अमित शाह के पास हीं है? जानिए जा

सियासत के सबसे बड़े जादूगर के खेल में फंस गया पूरा विपक्ष, चुनाव -दर-चुनाव दुश्मनों को राजनीति के दंगल में चित्त करने का नुस्खा क्या सिर्फ नरेंद्र मोदी- अमित शाह के पास हीं है? जानिए जा

पटना- कभी जादूगर का खेल देखा है? हाल ही में समपन्न पांच राज्यों के चुनाव परिणाम में मोदी -शाह के जादूगरी के नमूने को देखा गया। चुनावी धूल बैठ चुकी है, घायल अपने घावों की साज-संभाल में लगे हैं, विजेता अपनी जीती कुर्सियां झाड़-पोंछ रहे हैं, तो जादू का खेल था क्या, इसे समझना होगा।

सियात का जादूगर

मोदी-शाह ने जिस नई चुनावी-शैली की नींव 2014 से डाली है उसकी विशेषता यह है कि न उसका आदि है, न अंत ! यह अहर्निश चलंत है। मोदी-शाह की राजनीति तारीखें देखकर नहीं चलती, नई तारीख़ों की इबारत लिख देती है।चुनावी सफलता को  तौलकर अपना हर काम करती है। मोदी - शाह के लिए  चुनाव वसंत नहीं है कि जिसका एक मौसम आता है; यह बारहमास चलने वाला उत्सव है।इस बार पांच राज्यों के चुनाव को 2024 के बड़े चुनाव का पूर्वाभ्यास करार दिया गया था। 

छटपटाती कांग्रेस

कांग्रेस ने हिसाब लगाया कि कहां-कहां 'लंबी सत्ता का जहर' भाजपा को मार सकता है, कहां-कहां हमारी सरकार का 'अच्छा काम' हमें फायदा दे सकता है। कांग्रेस की नजर इस पर भी थी कि चुनाव का परिणाम ऐसा ही होना चाहिए कि 'इंडिया' महागठबंधन में डंडा हमारे हाथ में रहे। वहीं  राजनीतिक पंडितों के अनुसार राहुल गांधी अब तक राजनीतिक भाषा का ककहरा भी नहीं सीख पाए हैं, उनके पास राजनीतिक दूरदृष्नटि भी नहीं है और राहुल को छोड़ दें तो कांग्रेस के पास उसका कोई शाह, कोई योगी, नहीं है.

विपक्ष के नेतृत्व पर मगजमारी

नरेंद्र मोदी! उनके पास हर वेदर की लिटरेचर है, वह राजनीतिक नजर है जो हर मुद्दे को अपने हित में इस्तेमाल करने की विद्वत्ता है। आज की तवारिख में मोदी के कद को कोई छूने वाला दिख भी नहीं रहा। नीतीश कुमार हों, ममता बनर्जी, शरद पवार हों मोदी के कद- काठी तक वे नहीं पा रहे। ये सभी क्षेत्रिय नेता है,वे मोदी के आस पास भी ठहरते नहीं दिख रहे तो इसका कारण भी है. पीएम मोदी काअपना आभा मंडल है। इन सबके साथ है, एक व्यपक प्रचार-तंत्र के साथ धनी दल साथ योग्य नवरतन की टीम है. इंडि गठबंधन के सहयोगी दल जानते हैं कि कांग्रेस के कारण ही वे 'इंडि' हैं, लेकिन वे केवल  जानते हैं, वह इसे स्वीकार नहीं कर सकते हैं दूसरी ओर एनडीए के सर्वमान्य नेता नरेंद्र मोदी हीं हैं। 

सेमिफाइनल में जीत का सोंटा

लोकसभा चुनाव से पहले पांच राज्यों के हुए विधानसाभा चुनाव में भाजपा का जलवा कायम रहा। इसे ऐसे भी कहा जा सकता है कि सेमिफाइनल में जीत का सोंटा नरेंद्र मोदी ने लगाकर 2024 में होने वाले फाइनल के फैसले का शानदार आगाज कर दिया है। जातीय जनगणना पर सवाल खड़ा करते हुए विपक्ष को पीएम ने स्पष्ट तौर पर बता दिया कि वे भारत में केवल चार जातियों को जानते हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ चुनाव में पूर्ण बहुमत हासिल करने के बाद पीएम मोदी ने दिल्ली मुख्यालय में कहा था कि वह केवल चार जातियों महिलाओं, युवाओं, किसानों और गरीबों में विश्वास करते हैं और कहा कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में उनकी जीत हुई.उन्होंने कहा कि आज हर गरीब कह रहा है कि हम जीत गए, हर वंचित बच्चे को जीत की उम्मीद है, हर किसान सोच रहा है कि मैं जीत गया, हर आदिवासी भाई-बहन ये सोच कर खुश है कि ये उनकी जीत है। 

अमित शाह ने दिवाली के एक दिन बाद ही कहा था कि बीजेपी इन सभी तीन राज्यों में जीत दर्ज करेगी। शाह ने इस जीत की गोटियां बहुत पहले से बिछानी शुरू कर दी थी। उन्होंने इंदौर से लेकर रायपुर और जयपुर तक नाप डाला था। 50 से ज्यादा मीटिंग करके उन्होंने कार्यकर्ताओं के फीडबैक के आधार कैंडिडेट का चयन किया। नतीजा आज सबके सामने....दरअसल, शाह का स्टाइल एक जनरल की तरह होता है। जो अपने कार्यकर्ताओं को अपनी बात दोहराने से नहीं हिचकते हैं। उन्होंने जमीनी कार्यकर्ताओं से लेकर बूथ लेवल के कार्यकर्ताओं से मुलाकात की। सभी कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी सौंपी गई और इसके परिणाम को करीबी से परखा गया। एमपी के पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में सभी कांग्रेस की जीत की भविष्यवाणी कर रहे थे। लेकिन यहां भी शाह बीजेपी की जीत के प्रति आश्वस्त थे। राज्य में दर्जनों सभाओं के दौरान उन्होंने भरोसे के साथ कहा था कि यहां बीजेपी की वापसी होगी। यही नहीं, शाह ने राजस्थान और तेलंगाना में भी जमकर प्रचार किया। शाह ने राजस्थान में दर्जनों सभाओं में हिस्सा लिया तेलंगाना में उन्होंने करीब 23 सभाएं कीं। इन राज्यों में भी बीजेपी के नंबर बढ़े।

राजनीति असंभव को संभव बनाने का खेल है. राजनीति को  संभावनाओं का खेल भी मानते  है। 2023 के विधानसबा का चुनाव  बताता है कि असंभव में असंख्य संभावना छिपी होती है। भाजपा वैसी असंख्संय संभावनाओं को अपने पक्ष में हर संभव कोशिश करने की अहर्निश प्रयत्न करने में विशवास करने वाली पार्टी दिखती है। लोकसभा चुनाव 2024 की विसात पर मोहरे सजने लगे हैं. देखना है कि कौन इस पर सधा हुआ खेल कर राजा के तख्त तक पहुंचता है।


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