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अंग्रेजों से लोहा लेने वाले को अपने ही औलाद ने जिंदगी कर दी बदतर, राष्ट्रपति पदक से सम्मानित पिता को घर से किया बेघर,दर दर भटकने को किया मजबूर

अंग्रेजों से लोहा लेने वाले को अपने ही औलाद ने जिंदगी कर दी बदतर, राष्ट्रपति पदक से सम्मानित पिता को घर से किया बेघर,दर दर भटकने को किया मजबूर

PATNA: माँ-बाप अपने बच्चों को बड़े ही नाजों से पालते हैं। ताकी बच्चे बड़े होकर उनके बुढ़ापे का सहारा बनेंगे। लेकिन कई बार बच्चे अपने बुढ़े माँ-बाप को ही सबसे अधिक कष्ट दे देते हैं। माँ-बाप के सबसे नाजुक वक्त जब उन्हें उनके बच्चों को सबसे अधिक जरुरत होती है ऐसे समय में कई बच्चे उन्हें तड़पने के लिए छोड़ देते हैं। वर्षों अपने बच्चों के लिए अपनी पसंद के हर चीज की कुर्बानी देने वाले माँ-बाप तड़पते हुए इस दुनिया को अलविदा कह देते हैं। वहीं कई माँ-बाप आज भी किसी वृद्धाश्रम में तड़प रहे हैं और सोच रहे हैं कि आखिर उनका कसूर क्या था। ऐसा ही एक मामला यूपी के आगरा से सामने आया है। जहां 300 से अधिक बुजुर्गों आज भी अपनी किस्मत को कोस रहे हैं। 



उन्हीं में से राष्ट्रपति पदक से सम्मानित 96 साल के एक शिक्षक भी हैं। जिन्होंने  घर के लिए ही देश के भविष्य को बनाने के लिए 1948 से 1993 तक का समय दिया। लेकिन, अंतिम समय वो वृद्धाश्रम में पहुंचा दिए गए। ये बुजुर्ग बमरौली कटारा निवासी हरीशंकर कटारा वृद्धाश्रम में पहुंचे हैं। रामलाल वृद्धाश्रम के संचालक शिव प्रसाद शर्मा ने बताया कि उनकी हालत सही नहीं थी। 



लगभग 96 साल के हरीशंकर कटारा को बिठाया। उन्हें पानी पिलाया खाना खिलाया। इसके बाद उन्होंने आप बीती सुनायी। हरीशंकर कटारा का कहना है कि 1969 में उन्हें शिक्षा विभाग में बेहतर काम करने के लिए सम्मानित किया गया था। उनका कहना है कि ताउम्र उन्होंने बच्चों के लिए काम किया। इसके साथ ही उनका सिद्धांत था कि ईमानदारी के साथ जीवन यापन करें। उनके दो बेटे हैं। छोटा बेटा शराब पीने का आदी हो गया। उसको समझाया, लेकिन नहीं माना। 



आंखों में आंसू भरकर बोले कि वो अभद्रता पर उतर आया। उम्र के इस पड़ाव में हर दिन अपमान सहन करना भारी पड़ गया। अंग्रेजों के सामने जो नहीं झुके वो अपनी ही औलाद की गाली सुनकर तिल-तिल कर मरने को मजबूर थे। उन्होंने बताया कि गाली गलौच तक मामला पहुंचा। इसके बाद अभद्रता की हर सीमा पार कर दी। नहीं सहन हुआ। पहले सोचा कि आत्महत्या कर लूं। लेकिन, सामाजिक और पारिवारिक हालातों को देखकर आत्महत्या नहीं कर पाया। रोज-रोज जलील होकर परेशान हो गया था। बेटे ने भी घर से निकालने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने कहा कि, अब तो मैं आश्रम में ही रहना चाहता हूं।  


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