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'अबकी बार 400 पार' का रिकॉर्ड पहले ही दर्ज है कांग्रेस के नाम, भाजपा के लिए मोदी के नारे को हकीकत में बदलने की कठिन चुनौती

'अबकी बार 400 पार' का रिकॉर्ड पहले ही दर्ज है कांग्रेस के नाम, भाजपा के लिए मोदी के नारे को हकीकत में बदलने की कठिन चुनौती

DESK. लोकसभा चुनाव में भाजपा इस बार काफी कॉन्फिडेंस से अबकी बार 400 पार का नारा लगा रही है. लेकिन देश में पहले भी यह करिश्मा हो चुका है जब किसी एक सियासी दल ने  400 लोकसभा सीटों पर विजय हासिल किया था. यह इतिहास वर्ष 1984 के लोकसभा चुनाव में हुआ था. तब कांग्रेस ने रिकॉर्ड सीटों पर जीत हासिल की थी. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में राजीव गांधी और कांग्रेस के लिए जबरस्त सहानुभूति की लहर देखने को मिली. उस चुनाव में कांग्रेस ने '400 पार' का नारा लगाए बिना ही अपर जन समर्थन पाया. राजीव गांधी के नेतृत्व में बनी सरकार में कांगेस के 404 सांसदों ने जीत हासिल की थी. ऐसे में 1984 में जसी इतिहास को कांग्रेस ने अपने नाम किया था उस रिकॉर्ड को 2024 में तोड़ने का नारा भाजपा लगा रही है. 

कई राज्यों में भाजपा का कमजोर जनाधार: पीएम मोदी हों या भाजपा के अन्य नेता पूरे आत्मविश्वास के साथ अबकी बार 400 पार का नारा लगा रहे हैं. हालांकि इस नारे को हकीकत में बदलने की एक बड़ी चुनौती भी है. यानी कांग्रेस के रिकॉर्ड को तोड़ने में भाजपा के रास्ते में कई प्रकार की बाधाएं हैं. इसमें मुख्य रूप से कई राज्यों में भाजपा का कमजोर जनाधार है. खासकर उत्तर भारतीय राज्यों और हिंदी भाषी राज्यों के बाहर भाजपा को आज भी जनाधार बढ़ाने की चुनौती है. पिछले लोकसभा चुनाव में कई ऐसे राज्य रहे थे जहाँ बीजेपी को एक भी सीट नहीं आई थी. 

77 सीटों ने बढाई चिंता : लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी की जीती 77 सीटों पर जीत-हार का अंतर एक लाख से भी कम वोटों का रहा था. ऐसे में लोकसभा चुनाव के हिसाब से यह वोटों का काफी कम अंतर था. यह भाजपा के लिए इस बार बड़ी चिंता का कारण बन सकता है. वहीं , पिछले आम चुनावों में 303 सीटें जीतने वाली भाजपा ने 40 सीटें ऐसे जीतीं थीं जिन पर हार-जीत का अंतर 50 हजार से भी कम वोटों का था. वहीं 23 ऐसी सीटें थी जिस पर भाजपा के जीत का अंतर मात्र 20 हजार के आसपास था.

दक्षिण भारत आज भी चुनौती : दक्षिण भारतीय राज्यों में कर्नाटक को छोड़कर किसी भी राज्य में भाजपा का मजबूत जनाधार नहीं रहा है. पिछले चुनावों में, भाजपा ने पांच दक्षिणी राज्यों आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना में 129 में से 29 सीटों पर जीत हासिल की थी. उसमें भी अकेले कर्नाटक में बीजेपी ने राज्य की 28 लोकसभा सीटों में 25 सीटों पर जीतीं. तमिलनाडु और केरल में पार्टी का खाता नहीं खुला. वहीं पिछले पांच साल में कर्नाटक से जहाँ भाजपा को सत्ता गंवानी पड़ी, वहीं पिछले साल हुए तेलंगाना चुनाव में भी कांग्रेस सत्ता में आ गई. ऐसे में दक्षिण भारत के 129 सीटों पर करिश्मा हुए बगैर अबकी बार 400 पर का नारा साकार करना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है. 

विपक्ष की एकजुटता बड़ी चुनौती : लोकसभा चुनाव के पहले बने विपक्ष के इंडिया गठबंधन ने भी एक बड़ी चुनौती पेश कर रखी है. खासकर दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी संग कांग्रेस का साथ, यूपी में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस और बिहार में राजद संग कांग्रेस -वाम दलों का गठबंधन है. इसी तरह मध्य प्रदेश, झारखंड, गुजरात, महाराष्ट्र में भी महागठबंधन की एकजुटता वोटों के बिखराव को रोक सकती है. ऐसे में इन राज्यों में अगर पिछले चुनाव की तुलना में इस बार भाजपा कुछ सीटों पर कमजोर होती है तो यह अबकी बार 400 पार की राह में बाधक बनेगा. पश्चिम बंगाल और ओडिशा में भी कड़ी चुनौती है. 

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