बिहार उत्तरप्रदेश मध्यप्रदेश उत्तराखंड झारखंड छत्तीसगढ़ राजस्थान पंजाब हरियाणा हिमाचल प्रदेश दिल्ली पश्चिम बंगाल

LATEST NEWS

बिहार के सरकारी बंगले की कथाः ....जब DGP ने मुख्यमंत्री के आदेश को मानने से कर दिया इंकार, CM हुए असहज और 2 दिनों बाद आ गई चिट्ठी

बिहार के सरकारी बंगले की कथाः ....जब DGP ने मुख्यमंत्री के आदेश को मानने से कर दिया इंकार, CM हुए असहज और 2 दिनों बाद आ गई चिट्ठी

PATNA:  बिहार में सरकारी बंगले की एक से बढ़कर एक कहानी है। वरिष्ठ अधिकारी हों या विधायक-मंत्री हर किसी कि ख्वाहिश होती है कि राजधानी पटना में बड़ा सरकारी बंगला मिले। बंगला मिलने ही शानो-शौकत में चार चांद लग जाती है। बिहार में हाल ही में एक बड़े नेता से सरकार ने बंगला छीन लिया। कभी सीएम नीतीश के सबसे करीबी माने जाने वाले व जेडीयू में नंबर दो की हैसियत रखने वाले आरसीपी सिंह सिंह को शानदार बंगले से बेदखल कर दिया गया है। वैसे वो बंगला उनके नाम पर अलॉट नहीं था लेकिन सेटिंग के तहत रामचंद्र प्रसाद सिंह उस शानदार बंगले में रहते थे। नीतीश कुमार से दूरी बनते ही सरकार ने अपरोक्ष रूप से उस बंगले से बेदखल कर दिया। सरकारी बंगले की कथा को बिहार के पूर्व डीजीपी ने आगे बढ़ाया है। बिहार के तेजतर्रार डीजीपी माने जाने वाले अभयानंद ने एक वाक्या साझा किया है। 

जब अभयानंद ने सीएम नीतीश के आदेश को मानने से किया इंकार 

 बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद कहते हैं कि आजकल बिहार सरकार में सरकारी बंगले की कथा चुस्की के साथ बताई और सुनाई जा रही है। इस कहानी का कुछ अंश थोड़ा हास्यास्पद भी है। सहसा मेरे सरकारी नौकरी के दौरान सरकारी बंगले का एक प्रसंग याद आ गया जो थोड़ा दुखदायी है। DGP का पद संभालते ही, सरकार के मुखिया ने बुलाकर गंभीर स्वर में आदेश दिया कि मैं हार्डिंग रोड में अवस्थित बड़ा सरकारी बंगला जो मुझे आवंटित किया गया है, उसमें जाऊँ। मैंने उनसे करबद्ध होकर वहाँ जाने से इन्कार किया क्योंकि मैं अपने पिता द्वारा निर्मित मकान के दो कमरों में रह रहा हूँ और खुश हूँ। सरकार के प्रमुख थोड़े असहज हुए। दो दिनों के बाद सरकार की चिट्ठी आई जिसमें आदेश था कि मैं आवंटित आवास में जाऊँ। मैं सोच में पड़ गया। आखिर मना करने के बाद भी यह लिखित आदेश क्यों आया ? 

बंगले में नहीं जाने से 4.8 लाख का हुआ नुकसान 

अभयानंद अपने फेसबुक पेज पर लिखते हैं कि थोड़ा सोचने पर, कारण तुरंत समझ में आ गया। अगर मैं अपने निर्णय के अनुसार नहीं जाता हूँ और HRA (रु 16,000 प्रति माह) लेता रहता हूँ तो मुझपर एक आरोप लगाया जा सकता है कि मैं यह HRA गलत तरीके से ले रहा हूँ। बिना समय गंवाए, मैंने AG बिहार को एक पत्र लिख कर, मेरे वेतन पुर्जे से रु 16,000 को हटा देने का अनुरोध किया और सरकार को सूचित कर दिया कि मैं आवंटित सरकारी बंगले में नहीं जाऊँगा। निष्कर्ष यह निकला कि रु 16,000 x 30 = रु 4,80,000 का नुकसान मेरा हुआ लेकिन मैं अपने पिताजी के मकान के दो कमरों में आनंद से रहा। न बड़े सरकारी बंगले में रहने की ख्वाइश पाली और न ही उसको छोड़ने का कष्ट हुआ। बड़ा फैसला, बड़ी सीख। 


Suggested News