चुनाव है, गजब लगा रहे दांव हैं, मुस्लिम नेतृत्व की जरूरतों को भी पूरी कर रहे हिंदू नेता, मुद्दों को छीनाझपटी में जुटे बिहार के सियासतदां

PATNA : बिहार में 2024 के लोकसभा चुनाव के पूर्व राजनीतिक बयानबाजी का एक नया प्रचलन शुरू हो चला है. हिंदू धार्मिक पृष्ठभूमि वाले सत्तारुढ़ महागठबंधन के समाजवादी- साम्यवादी हिंदू नेता ही हिंदू सम्मान, स्वाभिमान और संस्कृति के खिलाफ बोलने लगे हैं. ये मुसलमानों के लिए अधिक से अधिक प्रशासनिक और राजनीतिक सुविधाओं की मांग भी करने लगे हैं. जाहिर है मुसलमानों के हीत और सारोकार के लिये अब प्रदेश में महज मुस्लिम नेता होना ही जरुरी नहीं है.
हिंदुओं पर ही साध रहे निशाना
राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के बड़े बेटे और मंत्री तेजप्रताप यादव संत धीरेंद्र शास्त्री का विरोध कर रहे हैं तो शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर खुलेआम हिन्दुओं के धार्मिक ग्रंथ रामचरित्र मानस की आलोचना करते सुने जा सकते हैं. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह भी बयानबाजी की दौड़ में पीछे नहीं रह रहे और राम मंदिर को नफरत की जमीन पर बनने वाला धर्मस्थल बताया तो जदयू के गुलाम रसूल विधान पार्षद पूरे देश को कर्बला बना देने की धमकी दी, लेकिन उनके बयान पर राजद और जदयू दोनों ने ही चुप्पी साध रखी है.
हाल के राजनीतिक घटनाक्रमों पर एक सत्यशोधक छलांग लगायें तो पायेंगे कि सत्ता वापसी के साथ ही राजद हिंदू संस्कृति, राम मंदिर, राम चरित मानस, धीरेंद्र शास्त्री जैसे संतों और ब्राह्मणों की भावनाओं से छेड़खानी कर रहा है. साथ ही ब्राह्मणों पर अमर्यादित टिपण्णी और कानून की आड़ में अपने M-Y समीकरण के कुख्यात अपराधियों को जेल से रिहा करवा रहा है.
आरोप- प्रत्यारोप
इन तमाम प्रकरणों के बीच उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव राजद को A टू Z की पार्टी बताते रहे हैं. उधर भाजपा के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी राजद नेतृत्व को चुनौती देते हुए कहा है कि दल के मंत्रियों और अधिकारियों में यदि साहस है तो वे इस्लाम और इसाई पंथ के प्रचारकों पर भी टिपण्णी करें.
मंदिर विरोध से चमकाई राजनीति
मंडल- कमंडल पर छिड़ी बहस के बीच भारतीय राजनीति ने 1990 के दशक में प्रवेश किया. उसी दौर में भाजपा के नेता लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में राम मंदिर निर्माण के समर्थन में रथ यात्रा निकाली गयी. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने इसी दौर का भरपूर इस्तेमाल किया और लाल कृष्ण आडवाणी के रथ को बिहार में रोककर मुसलमानों के चेहेते बन गए. मुसलमानों ने भी लालू प्रसाद के नेतृत्व को हाथों- हाथ अपना लिया. मुसलमान कौम से आने वाले बड़े- बड़े नाम लालू प्रसाद के साथ जुड़ते गए.
हैसियत वोट मांगने की टीम भर
सीमांचल के बड़े चेहरे तस्लीमुद्दीन, मध्य बिहार के बाहुबली शहाबुद्दीन, मिथिला के अली अशरफ फातमी, इलियास हुसैन आदि नाम हैं जो उस दौर की राजनीति में लालू प्रसाद के करीबी सक्रीय मुसलमान नेताओं में थे. लेकिन संजीदा नेतृत्व और सज्जन मुसलमान होने की वजह से दिवंगत गुलाम सरवर, जाबिर हुसैन आदि को पार्टी में उतनी तवज्जो कभी नहीं मिली. पार्टी एक नया मुस्लिम नाम अपने साथ फिलहाल जोड़ नहीं सकी है और जो बचाखुचा मुस्लिम चेहरा है वह बस वोट मांगने की टीम भर है.
पार्टी को हर चुनाव में मुसलमानों का भरपूर समर्थन तो मिला, लेकिन पद और प्रतिष्ठा लालू परिवार के पास ही रही. बेटी मीसा भारती सांसद, बड़े बेटे तेजप्रताप यादव मंत्री और छोटे बेटे तेजस्वी प्रसाद यादव उपमुख्यमंत्री बने. वहीँ पार्टी में एकमात्र जाना पहचाना मुसलमान चेहरा अब्दुल बारी सिद्दीकी ही बचे हैं जो लगभग दरकिनार ही हैं.
जाहिर है लालू प्रसाद की पार्टी ने बिहार की सक्रीय राजनीति में किसी मुस्लिम नेता के कद को इतना नहीं बढ़ने दिया कि वो राज्यस्तर पर कौम की तरक्की और तालीम की आवाज उठा सके
REPORTED BY NEERAJ SAHAY