पटना. जीत का चौका लगाने की हसरत से लगातार चौथी बार पश्चिम चंपारण के चुनावी रण में उतरे भाजपा के संजय जायसवाल प्रतिष्ठा की लड़ाई लड़ रहे हैं. उनके मुकाबले में कांग्रेस के मदन मोहन तिवारी हैं जो ब्राह्मण जाति से आते हैं. ऐसे में ब्राह्मण वोटों के मजबूत साथ से पिछले तीन चुनावों में बड़ी जीत हासिल करने वाले संजय जायसवाल इस बार जातीय चक्रव्यूह को भेदने की चुनौती भी झेल रहे हैं. पश्चिम चंपारण में लोकसभा चुनाव के छठे चरण में यानी 25 जून को मतदान होना है. उसके पहले यहाँ प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी और अमित शाह की चुनावी सभा हो चुकी है. साथ ही एनडीए के कई अन्य नेता लगातार कैंप कर रहे हैं. यह संकेत है कि कैसे पश्चिम चंपारण एक प्रतिष्ठा की लड़ाई वाली सीट है जहाँ भाजपा हर हाल में जीत हासिल करना चाहती है.
भाजपा का मजबूत गढ़ : दरअसल, पिछले लोकसभा चुनावों में वर्ष 2009 में डॉ संजय जायसवाल ने पहली बार 47 हजार 343 वोटों के अंतर से जीत हासिल की. अगले चुनाव में मोदी लहर के बीच 2014 में संजय जायसवाल की जीत का अंतर बढ़कर एक लाख 10 हजार के पार हो गया. वहीं 2019 में संजय जायसवाल दो लाख 93 हजार से ज्यादा वोटों के बड़े अंतर से जीते. इतना ही नहीं पश्चिम चंपारण के छह विधान सभा क्षेत्रों में चार विधानसभा सीट भाजपा के पास है. नौतन में नारायण प्रसाद (भाजपा), बेतिया में रेणु देवी (भाजपा), चनपटिया में उमाकांत सिंह (भाजपा), रक्सौल में प्रमोद कुमार सिन्हा (भाजपा) का कब्जा है. वहीं, मात्र दो सीटों पर राजद का कब्जा है। जिसमें नरकटिया से डॉ. शमीम अहमद राजद, सुगौली से ई. शशिभूषण सिंह राजद विधायक हैं. यह आंकड़ा पश्चिम चंपारण में संजय जायसवाल को बड़ी उम्मीद दे रहा है.
तिवारी का समीकरण खास : हालाँकि जमीनी स्तर पर कांग्रेस के मदन मोहन तिवारी कई समीकरणों को अपने पक्ष में साधते दिख रहे हैं. इसमें जातीय समीकरण सबसे अहम है. यहां मुस्लिम, यादव और वैश्य सबसे प्रमुख जातियों में आते हैं. वहीं ब्राह्मण जाति के मतदाताओं के साथ ही सवर्ण में राजपूत, भूमिहार और कायस्थ वोटर सबसे प्रमुख हैं. आंकड़ों के अनुसार मुस्लिम करीब 3 लाख 12 हजार, वैश्य करीब 2 लाख 50 हजार, यादव करीब 2 लाख 50 हजार, ब्राह्मण करीब 1 लाख 40 हजार, कुशवाहा करीब 2 लाख 50 हजार हैं. वहीं राजपूत, भूमिहार और कायस्थ तीनों ही जातियां 90 हजार-90 हजार के आसपास मानी जाती हैं.
जातियों का असली खेला : मदन मोहन तिवारी के ब्राह्मण जाति से होने के कारण उनके साथ ब्राह्मणों का बड़ा वोट शिफ्ट होने की उम्मीद है. वहीं यादव और मुस्लिम गठजोड़ का बड़ा साथ भी मिल सकती है. साथ ही तिवारी की नजर अन्य सवर्ण वोटरों को गोलबंद करने पर है. अगर तिवारी इसमें सफल हुए तो यह संजय जायसवाल को बड़ा झटका होगा. इतना ही नहीं संजय जायसवाल को एक बड़ी चुनौती 15 साल से सांसद रहना भी है. उनके खिलाफ कई जगहों पर एंटी इनकमबेंसी भी देखने को मिली. इससे पार पाने की जुगत के रूप में जायसवाल ने अपने चुनाव प्रचार में बार बार यह उल्लेख किया है कि नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट दें.
प्रचार में दिग्ज्जों की कमी : भाजपा के मुकाबले कांग्रेस का चुनाव प्रचार उतने आक्रामक स्तर का नहीं दिखा है. जहाँ भाजपा के कई दिग्गज चुनाव प्रचार में उतर चुके हैं. वहीं कांग्रेस के शीर्ष नेताओं में ना तो राहुल गांधी और ना ही पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की कोई सभा हुई है. हालाँकि तेजस्वी यादव सहित महागठबंधन के कई अन्य नेताओं ने बड़े स्तर पर मदन मोहन तिवारी के लिए प्रचार किया है. अब मतदाताओं की बारी 25 मई को है जब वे तय करेंगे कि किसी दौर में ब्राह्मण सांसदों के पैठ वाले बेतिया में इस बार कांग्रेस का ब्राह्मण पर दाव चलना कितना कारगर होता है.