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मणिपुर हिंसा का क्या है अफीम की खेती से कनेक्शन, मणिपुर में हुई घटनाओं का म्यांमार से क्या है रिश्ता, आखिर मणिपुर में क्यों भड़की हिंसा, क्या है मैतेई और नगा- कुकी समुदाय के बीच विवाद?

मणिपुर हिंसा का क्या है अफीम की खेती से कनेक्शन, मणिपुर में हुई घटनाओं का म्यांमार से क्या है रिश्ता, आखिर मणिपुर में क्यों भड़की हिंसा, क्या है मैतेई और नगा- कुकी समुदाय के बीच विवाद?

मणिपुर हिंसा की आग में जल रहा है. विपक्ष सत्तापक्ष पर इसे लेकर हमला कर रहा है. इस मुद्दे पर संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा चल रही है . सवाल है कि हिंसा का कारण क्या है.

मणिपुर की घटनाओं के चलते म्यांमार से हमारे रिश्तों पर भी ध्यान गया है. संघर्ष भले ही बहुसंख्यक मैतेई हिंदुओं और ईसाई-बहुल कुकी जनजातियों के बीच हो, मणिपुर की सरकार ने दावा किया है कि इस विवाद की जड़ में है म्यांमार में नशीले पदार्थों की खेती और वहां से मणिपुर के पहाड़ी इलाकों में अवैध प्रवासियों का आगमन.मणिपुर की कुकी जाति को करीब ड़ेढ़ सौ साल पहले अफीम की खेती के लिए अंग्रेजों ने मणिपुर में इन्हें लगाया.विडम्बना है कि अंग्रेजों ने तो देश छोड़ दिया लेकिन तमाम कानूनों को ताक पर रख कर कुकी जाति के लोग अभी भी अफीम की खेती करते हैं.मणिपुर में वर्तमान में जो हालात हैं, उससे कहीं पहले से वहां नशीले पदार्थों की सप्लाई की जा रही है और अलगाववादी-उग्रवादी घटनाएं भी वहां नई नहीं हैं.

कुकी को मैतेई राजाओं ने बर्मा से बुला कर उन्हें बसाया था.क्योंकि इन्हें कम मेहनताना देना पड़ता था..खुला बोर्डर होने के कारण अभी भी कुकी अवैध तरिके से वर्मा से आकर मषिपुर से सीमावर्ती इलाकों में बस रहे हैं.सरकार के तमाम उपायों के बाद भी घुसपैठ रुक नहीं रहा है.आजादी के बाद जब उत्तर पूर्व में मिशनरियों को छूट मिली तो इन्होंने कथित तौर पर धर्म परिवर्तन भी कराया.अभी करीब करीब सभी कुकी ईसाई हैं,सरकार अफीम की खेती को अवैध बताती है फिर भी अफीम की धड़ल्ले से खेती हो रही है.

मणिपुर के 10 प्रतिशत भूभाग पर ग़ैर-जनजाति मैतेई समुदाय का दबदबा है.मणिपुर की कुल आबादी में मैतेई समुदाय की हिस्सेदारी 64 फ़ीसदी से भी ज़्यादा है.  मैतेई समुदाय का बड़ा हिस्सा हिन्दू है , जिन 33 समुदायों को जनजाति का दर्जा मिला है, वे नगा और कुकी जनजाति के रूप में जाने जाते हैं, ये दोनों जनजातियां मुख्य रूप से ईसाई हैं.

कोर्ट का कहना है कि मैतेई भी अनुसूचित जाति के हैं, मैतेई मणिपुर के मूल निवासी हैं.जनसंख्या में ये आधे हैं.लेकिन इनके पास दस फिसदी जमीन है जबकि कुकीयों की संख्या तीस फिसदी हैं लेकिन मणिपुर की 90 फिसदी जमीन पर उनका कब्जा है.कुकियों की मांग है कि मैतेई समुदाय को आरक्षण नहीं दिया जाए. कुकी का कहना है कि मैतेई को अगर आरक्षण दिया तो हमारा विकास नहीं होगा.मणिपुर में, जनजातीय भूमि के हस्तांतरण को रोकने के लिए विशेष कानून बनाकर गैर-आदिवासी समुदायों द्वारा भूमि की खरीद को हतोत्साहित किया जा सकता है. 

मणिपुर में सरकार समर्थकों का कहना है कि जनजाति समूह अपने हितों को साधने के लिए मुख्यमंत्री नोंगथोंबन बीरेन सिंह को सत्ता से हटाना चाहते हैं, क्योंकि उन्होंने ड्रग्स के ख़िलाफ़ जंग छेड़ रखी है. प्रदेश में बीरेन सिंह की सरकार अफ़ीम की खेती को नष्ट कर रही है और कहा जा रहा है कि इसकी मार म्यांमार के अवैध प्रवासियों पर भी पड़ रही है.जिन्हें म्यांमार से जुड़ा अवैध प्रवासी बताया जा रहा है, वे मणिपुर के कुकी जाति से संबंध रखते हैं. कहा जा रहा है कि सरकार इन्हें सरकारी ज़मीन पर अफ़ीम की खेती करने से रोक रही है.पहला हिंसक विरोध प्रदर्शन 10 मार्च को हुआ था, जब कुकी गाँव से अवैध प्रवासियों को निकाला गया था.

मणिपुर में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने फ़रवरी महीने में संरक्षित इलाक़ों से अतिक्रमण हटाना शुरू किया था, तभी से तनाव था, लोग सरकार के इस फैसले का विरोध कर रहे थे, लेकिन हालात बेक़ाबू तीन मई को मणिपुर हाई कोर्ट के एक आदेश से हुआ.हाई कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया था कि वह 10 साल पुरानी सिफ़ारिश को लागू करे जिसमें ग़ैर-जनजाति मैतेई समुदाय को जनजाति में शामिल करने की बात कही गई थी.


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