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किस बात की है जल्दबाजी ? जातीय गणना के पीछे CM नीतीश का हिडेन एजेंडा, राजनीतिक अस्तित्व बचाने को चला है अंतिम अस्त्र

किस बात की है जल्दबाजी ? जातीय गणना के पीछे CM नीतीश का हिडेन एजेंडा, राजनीतिक अस्तित्व बचाने को चला है अंतिम अस्त्र

PATNA : बिहार में चल रहे जाति आधारित गणना पर पटना उच्च न्यायालय ने गुरुवार को अंतरिम रोक लगा दी है. पटना उच्च न्यायालय के इस अंतरिम आदेश को नीतीश सरकार के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है. पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति मधुरेश प्रसाद की पीठ ने मामले पर बुधवार को सुनवाई की थी. गणना पर रोक लगते ही राज्य में पक्ष और विपक्ष के नेता आमने- सामने आ गए हैं. भाजपा उच्च न्यायालय के फैसले को लेकर नीतीश की नीयत में खोट बता रही है. वहीं राजद रोक को दुर्भाग्यपूर्ण बता रहा है तो जदयू का कहना है कि जातीय सर्वे पर सभी दलों ने मंजूरी दी थी.

क्यों है इतनी जल्दबाजी  

बिहार की नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली भाजपा विरोधी महागठबंधन सरकार गणना के मुद्दे पर मोदी सरकार की सहमती का इंतजार नहीं करना चाहती. उधर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने फिलहाल स्पष्ट नहीं किया है कि कोरोना महामारी की वजह से दो साल पहले जो राष्ट्रीय जनगणना का काम रोका गया था वह कब शुरू होगा?किंतु मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जल्दबाजी में हैं. उनकी मंशा सर्वेक्षण कराकर कम से कम अपने राज्य बिहार में अन्य पिछड़ा वर्ग और अत्यंत पिछड़ा वर्ग में यह साबित करना चाहते हैं कि वो ही उनके असली शुभचिंतक हैं और आंकड़े आने के बाद वो इन वर्गों के लिए कल्याणकारी योजनायें लागू करेंगे.लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या नीतीश कुमार की यही एकमात्र मंशा है या सर्वेक्षण के माध्यम से वो कुछ और साधना चाह रहे हैं. जाहिर है गणना के बहाने उसकी राजनीति को भी समझना होगा.

जातीय गणना के आंकड़े आने के उपरांत नीतीश कुमार अपने समाजवादी- कामरेड साथियों के साथ एक सुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के विरोध में मुखर होंगे और इन संगठनों को अगड़ों और सवर्णों का संगठन साबित करना चाहेंगे. यह भी आरोप लगायेंगे कि ये पिछड़ों की भलाई नहीं चाहते हैं इसलिए गणना कराना ही नहीं चाहते हैं.    

वोट बैंक खिसकने का डर

जो नीतीश कुमार 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता की तुलना में लगभग विलुप्त से हो चुके थे वे 2024 के लोकसभा चुनाव पूर्व गणना को मुद्दा बनाकर भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन को घेरना चाह रहे हैं और अपनी अत्यंत पिछड़ा वर्ग वोट बैंक को और खिसकने नहीं देना चाह रहे हैं और अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता को बनाये रखने के लिए गणना को आधार बना रहे हैं.

जाहिर है राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की निरंतर बढ़त को देखकर नीतीश कुमार ठिठक से गए हैं. वर्ष 2014 के बाद से पिछड़ा वर्ग का एक बड़ा तबका भाजपा के साथ चला गया है और 2019 के लोकसभा चुनाव ने तो यह साबित कर दिया था कि क्षेत्रीय पार्टियों का जान रहा OBC वर्ग का एक बहुत बड़ा हिस्सा मोदी का समर्थन करने लगा और खुलकर भाजपा के पक्ष में वोट भी कर रहा है.

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