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माफिया मुख्तार के मरने के बाद अखिलेश यादव को क्यों हो रहा है इतना प्यार, जिंदा रहते तो बात भी करने से बचते थे ! अब कब्र पर रोंदू रोने की मजबूरी क्या है? समझिए...

माफिया मुख्तार के मरने के बाद अखिलेश यादव को क्यों हो रहा है इतना प्यार, जिंदा रहते तो बात भी करने से बचते थे ! अब कब्र पर रोंदू रोने की मजबूरी क्या है? समझिए...

LUCKNOW: मुख्तार अंसारी के मौत के बाद उत्तर प्रदेश समेत कई अन्य प्रदेशों के दिग्गज नेताओं का जमावड़ा गाजीपुर में लगा हुआ है। सभी नेता मुख्तार अंसारी के मौत पर शोक जताने के लिए गाजीपुर पहुंच रहे है। मुख्तार अंसारी की मौत पर शोक जताने के लिए समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी रविवार को गाजीपुर पहुंचे। शोक जताने के लिए फाटक स्थिति सांसद अफजाल अंसारी के घर पहुंचे। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जिस मुख्तार अंसारी के जिंदा रहते हुए अखिलेश यादव उससे बात करने से भी परहेज करते थे। आज उसी मुख्यतार अंसारी के क्रब पर जाकर श्रद्धांजलि  अर्पित क्यों कर रहे हैं। आखिर माफिया की मौत के बाद अखिलेश यादव के इस प्यार को क्या नाम दें? 

मुख्तार की पार्टी का नहीं होने दिया था सपा में विलय 

अगर बात आज से 7 साल पहले की करे तो यह वहीं अखिलेश यादव हैं जिन्होंने सपा में मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का विलय नहीं होने दी थी। तब अखिलेश यादव ने कहा था कि सपा को मुख्तार की पार्टी की कोई जरुरत नहीं है। सपा अपने बलबूते पर चुनाव जीतेगी।  दरअसल, साल 2016 के 21 जून को तत्कालीन समाजवादी पार्टी सरकार में कैबिनेट मंत्री और मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई शिवपाल यादव की मौजूदगी में मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल के सपा में विलय का ऐलान किया गया। उस समय त्कालीन सीएम अखिलेश यादव जौनपुर में थे। उन्होंने कहा कि सपा में किसी के विलय की जरूरत नहीं है। हम अपने बलबूते जीतेंगे। उसी शाम अखिलेश लखनऊ लौटे और कौमी एकता दल के सपा में विलय के मध्यस्थता की भूमिका निभाने वाले बलराम यादव को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया। जिसके बाद तीन दिनों के अंदर सपा और कौमी एकता दल का विलय रद्द हो गया। 

7 साल बाद उमड़ रहा प्यार 

वहीं अब 7 साल के बाद आज वहीं अलिखेश यादव मुख्तार अंसारी के क्रब पर रोंदू रोने को मजबूर हैं। यहीं नहीं अखिलेश मुख्तार की मौत का जांच कराने की भी मांग कर रहे हैं। अगर सीधी तौर पर दिखा जाए तो कहीं ना कहीं सपा के रणनीतिकारों को लग रहा है कि उन्हें लोकसभा चुनाव में इस सहानुभूति का फायदा मिल सकता है। इस पूरे मामले को अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न का रंग भी दिया जा रहा है। मुख्तार के मामले में राजनेता मुस्लिम वोटों की लाभ उठाना चाहते हैं। राजनीतिक पार्टियां इस मुद्दे पर संभावनाओं की तलाश भी कर रही है। 

मुस्लिम वोटों पर सपा की नजर?

एक ओर बड़ी वजह को देखा जाए तो यूपी की राजनीति में मुख्तार को बसपा से लेकर सपा तक सबका साथ मिला। लेकिन, अखिलेश यादव सीएम रहते हुए सार्वजनिक तौर पर हमेशा दूरी बनाते नजर आते थे। हालांकि सत्ता से अखिलेश मुख्तार के परिवार से नजदीक होने लगे। 2019 के लोकसभा चुनाव में मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी गाजीपुर से बसपा के उम्मीदवार थे। उस समय अखिलेश ना सिर्फ अफजाल का प्रचार किया बल्कि साथ ही मुख्तार के परिवार से और नजदीकियां भी बढ़ी। 2022 के विधानसभा चुनाव में मुख्तार के बेटे अब्बास अंसारी को सुभासपा से मऊ का टिकट दिया गया। भतीजे मन्नू अंसारी को मोहम्मदाबाद से उम्मीदवार बनाया गया। दोनों ही जीत कर विधानसभा पहुंचे।

सहानुभूति का फायदा उठाने में जुटी सपा !

वहीं जब रविवार को अखिलेश यादव से इससे जुड़ा सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि, 'राजनीति हमेशा वर्तमान परिस्थितियों में होती है।' हालांकि राजनीतिक तौर पर दिखा जाए तो सपा पिछले एक दशक से विधानसभा से लेकर आम चुनाव तक में हार का सामना कर रही है। ऐसे में मुख्तार के मसले में वोटों की उम्मीद नजर आ रही है। पूर्वांचल की तीन सीटों गाजीपुर, बलिया व घोसी से मुख्तार परिवार का सीधा नाता जुड़ता है। गाजीपुर मुख्तार का गृह जिला है। बलिया लोकसभा की मोहम्मदाबाद विधानसभा व घोसी की मऊ विधानसभा से भतीजा व बेटा विधायक है। सपा के रणनीतिकारों को लग रहा है कि इन तीनों लोकसभा सीटों में सहानुभूति का फायदा मिल सकता है।  

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